कलमकार मनीष दिवाकर आजकल के आपराधिक माहौल से दुखी होकर यह कविता लिखतें हैं और खुदा से कुछ सवाल कर रहें हैं।
ऐ ख़ुदा तू है कहाँ, क्या-क्या जमीं पर हो रहा
भेड़िये सा मन क्यूँ इंसान लेकर ढ़ो रहा!इंसान ही उत्कृष्ट रचना हैं तुम्हारीं क्या प्रभु
जो धरा पर बीज़ कुत्सित नित् नये दिन बो रहा!तू हैं तो फिर अवतार ले.. तलवार अपनी धार ले
होता सब कुछ देखकर क्यूँ स्वर्ग में तू सो रहा!इक दूसरे के ख़ून का प्यासा हुआ इंसान अब
इंसानियत इंसान सचमुच आज अपनी खो रहा!हैं गूँजती चीत्कार अब जलती हुई बेटी की सुन
हो शून्य सा स्तब्ध सा आखिर दिवाकर रो रहा!~ मनीष दिवाकर