तेरे अन्तस
मेरे अन्तस,
कुछ औंर नही
केवल छवि है।
जो गुजरे वो दिन सुनहरे,
उज्जवल गीत तेरे, मेरे।
तुम नहीं
है सिर्फ आत्माएं
गुंचा, गुंचा व्याप्त कवि है।
सुधियों के मिस पावन प्रसंग
सत्य, निष्ठा रंजित हर अंग
अजब मनोरम,
शान्ति तोरण,
मन्दिर प्रागंण सुरभित छवि है।
स्मृति अंकित युगों-युगांतर
नहिं विकल्प है वट समानांतर,
भ्रमर गाथा
गत प्रणय धारा
इक समदर्शी गंगा पवि है।~ नमिता “प्रकाश”
मेरे अंतस
हमारे तुम्हारे मन में न जाने कितनी यादें, कल्पनाएँ और इरादे भरे पड़े हैं। कलमकार नमिता प्रकाश ने इस कविता में इसी संदर्भ में अपने भाव प्रकट किए हैं।