तबाही के आसार नज़र आने लगे
लोग घरों में बीमार नज़र आने लगे
रौनक ए शहर फ़ीकी पड़ गई यहाँ
ठप्प सारे कारोबार नजर आने लगे
मुख्तलिफ रंगों सी ज़िंदगी जीने वाले
सुफियाने उनके विचार नज़र आने लगे
घर से निकलना तो ख़तरे में पड़ना है
वक़्त के आगे नाचार नज़र आने लगे
शहर ए ख्याल में ही मिला किए जो
जिंदगी के तलबगार नज़र आने लगे
देते थे तेज दौड़ने की मिसाल सबको
एक अरसे से बेकार नज़र आने लगे
इंसान की रफ़्तार धीमी पड़ गई मगर
कुदरत संग खिलवाड़ नज़र आने लगे
वक्त है मुश्किल मगर गुज़र ही जाएगा
लोग भी अब होशियार नज़र आने लगे
आज भी वो भूखों को रोटी खिलाता है
मुसीबत में अच्छे संस्कार नज़र आने लगे
दुनियां को बना डाला हथियारों का ज़खीरा
एक विषाणु के आगे लाचार नज़र आने लगे
फिर भी उम्मीद है ये जंग जीत जाएंगे हम
जरा थम कर जीत के दावेदार नज़र आने लगे
~ तारिका सिंह ‘तरु’