हमारे भीतर अच्छाई और बुराई दोनों ही रहती है, अंदर की ऊर्जा का सदुपयोग कर हम कर्तव्यवान बन सकते हैं। कलमकार हिमांशु बड़ोनी हम सबका मनोबल बढ़ाती हुई कुछ पंक्तियाँ इस कविता मे लिखीं हैं, आप भी पढ़ें।
तुझमें हैं – तुझमें हैं,
बापू के प्यारे दुलारे,
तीन बन्दर तुझमें हैं!
गहरी पीर चीरने वाले,
सात समन्दर तुझमें हैं!
तुझमें हैं – तुझमें हैं,शिवा, राणा, भगत जैसे,
लाख़ सिकन्दर तुझमें हैं!
बहादुरी का परिचय देते,
सभी धुरंदर तुझमें हैं!
तुझमें हैं – तुझमें हैं,सुन्दरता पर राज करते,
सभी खंडहर तुझमें हैं!
शोषण से लड़ते भिड़ते,
मस्त बवंडर तुझमें हैं!
तुझमें हैं – तुझमें हैं,हर बन्धन को ठेंगा दिखाते,
मदमस्त कलंदर तुझमें हैं!
बाहर तू क्या ढूंढ़ता फिरे,
सर्वगुण अन्दर तुझमें हैं!बापू के प्यारे दुलारे,
तीन बन्दर तुझमें हैं!
गहरी पीर चीरने वाले,
सात समन्दर तुझमें हैं!~ इं० हिमांशु बड़ोनी (शानू)