हंदवाड़ा, जम्मू कश्मीर में पाँच शहीदों की शहादत पर एक कविता।
बुझे आग को फिर सुलगायें।
जो माता को शीश चढ़ायें।
उनपें हम नत मस्तक हो जायें।
भारत माँ के सच्चे लाल।
देश की जो रक्षा में अपने
जीवन का देकर बलिदान।
अपने प्राणों की लौ से वह
देश की रक्षा में बलिदान।
तन देकर के, धन दे कर के।
अपना ये जीवन देकर के।
भारत को अक्षुण्ण जो बनाते।
देश प्रेम की राग जगाते।
अपने लहू का फाग मनाते।
उनकी श्रद्धांजलि देने में
हम भी एक क्षण न गँवाये।
आओ हम फिर दीप जलाये।
बुझे आग को फिर सुलगाये।~ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन