कवि हर एक स्मरण से कविता की रचना कर सकते हैं। यादों ने तो न जाने कितनी कविताएँ लिखवाईं हैं। कलमकार प्रीतम भी उन दिनों को याद कर कहते हैं कि ऐसा अब कहाँ?
वो कॉलेज का आँगन
वो साथी वो मस्ती
अब कहाँ अब कहाँवो लेट लतीफी
वो अय्यासी
वो नजरें चुरा कर
वो धीमे से गुनगुनाना
अब कहाँ अब कहाँवो गपशप वो ठिठोली
वो बेसमय घंटियां
वो अद्भुत अंग्रेजी
वो अंगुली सटाना
अब कहाँ अब कहाँवो धड़कन बढ़ जाना
वो नाम से ही हिल जाना
वो सर्वज्ञ के अवतार
वो उनका आईना दिखाना
अब कहाँ अब कहाँवो जो है सो सुनना
वो क्लास में झुकना
वो रावण जैसी हँसी
वो बन्दरियों सी खीं-खीं
अब कहाँ अब कहाँवो विदेशिया सुनाना
वो सर पे हाथ फेराना
वो ममता सी कोमल
वो अटपटी सी खिंचाई
अब कहाँ अब कहाँवो लंच खिलाना
वो पार्टी की ज़िद
वो टांगे खींचाना
वो अबसेंटी की जिद
अब कहाँ अब कहाँवो सिखना सिखाना
वो कृतज्ञता दिखाना
वो रोज आंखे मिलाना
वो सुख-दुख बतियाना
अब कहाँ अब कहाँ~ पीताम्बर कुमार ‘प्रीतम’