अपने रचना का कर गर्जन,
विश्व साहित्य का किया, सृजन,
नोबॉल पुरस्कार धारी वो,
बांग्ला साहित्य मात्र नहीं
विश्व साहित्यकारी वो,
अटखेलियां दिखाते बादल, नदी सुनहरी।
गुरुदेव की कविताएं है, सागर सी गहरी।
विपत्ति से जूझना सीखा दे
गुरुदेव की रचना, मुझे भावना दे।
कड़ियां देखो, गीतांजलि की।
परिलक्षित करें, देश को शुभ अंजलि सी।
कलमकार मात्र नहीं, कलम के थे, वीर वो
असीम ऊर्जा के प्रवीण वो।
देश के लिए सम्मान ठुकराया,
राष्ट्रगान दे, समृद्ध बनाया,
कलकत्ता भूमि पर हो, अवतरित।
किया, देश की भूमि को प्रज्ज्वलित।
बंग्ला साहित्य को नई दिशा दी,
दर्जनों रचना ने शोभा बढ़ा दी।
राष्ट्र चेतना से देश जब कट सा गया था।
पश्चिमी संस्कृति से बट सा गया था।
गोरा उपन्यास ने जीवन्तता दी।
रवि की प्रभात सा था, उनमें नाद
नाम था, उनका, रवीन्द्रनाथ।
नोबॉल पुरस्कार धारी वो,
विश्व साहित्यकारी वो।
~ पूजा कुमारी बाल्मीकि