बालपन में उंगली पकड़े, जब
मम्मी संग कभी कदार
अस्पताल जाता था तो
मुझे नहीं पता होता कि हम अस्पताल आए है
और आए है तो क्यों आए है?
ये अस्पताल होता क्या है?
अस्पताल में
अपनी छोटी आंखों से मम्मी को
मम्मी की ही तरह किसी दूसरी
मम्मी से बात करते हुए देखता था और
सारी बातें सुनता था
सफेद कमीज़ पहने
बालों को ढके
चेहरे पे मासूमियत लिए
होठों पे मुस्कान बिखेरे
सीधी सादी सी दिखने वाली,
सपाट ऊंचाई लिए
वलयाकार अंदाज़ में बात करती हुई
हमे अपनी दूसर वाली मम्मी नजर आती थी
मेरी मम्मी बार बार दूसरी वाली मम्मी को
सिस्टर कहती थी
हमें तो सिस्टर के मायने भी नहीं पता था उन दिनों
मन में बाते आती ज़रूर थी कि
ये तो मम्मी ही की तरह बड़ी सी है
फिर क्यों मम्मी इन्हे सिस्टर कहती है?
एक बार हैरत तो तब हुई मुझे, जब
मैंने पूछा! मम्मी ये कौन है?
मम्मी मुझे तुरंत बताई, बिना समय गंवाए ही
बेटा! ये सिस्टर है!
मैंने तोतली अंदाज़ में बोला था, मम्मी जी
ये तो बिल्कुल तुम्हारी तरह बड़ी सी है
तो इन्हे मम्मी क्यों नहीं बोल सकते हम?
मम्मी बोली थी!
नहीं बेटा! ये सिस्टर है! इन्हे सिस्टर बोला जाता है
मैंने जिद की और पूछा, क्यों मम्मी इन्हे सिस्टर ही बोलूं?
मम्मी मुझे बताई थी,
देखो बालक! ये सिस्टर इसलिए है क्योंकि
ये दूसरों की सेवा करती है
बिना कोई मोल लिए प्रेम करती है
मरीज अस्पताल में इन्हे कितना ही क्यों ना परेशान करें!
ये कभी दुखी नहीं होती है
प्यार की दो मीठे बोल ही बोलती है
पूरी निष्ठा से सेवा में लगी रहती है
ये शांति, सेवा की मूर्ति होती है
इनके मन में प्रेम के सिवा कुछ नहीं होता है
ये केवल मुस्कुराती है और दुलारती है
अपना घर बार त्यागकर
गर्मी सर्दी बरसात में अनवरत लगी रहती है
बीमारी बड़ा हो या छोटा, हमेशा निडर हो डटी रहती है
दुनिया में अगर महामारी भी फैल जाए
तो भी नहीं विचलती है
जब लोग घरों में रहते है और
अपनी फ़िक्र और अपने लोगो की फ़िक्र के लिए घरों में बैठ ही अपनी सुरक्षा करते है
तब यही, सिस्टर बाहर निकल कर रात दिन महामारी की चपेट में आए हुए,
ना जाने कितने इंसानों की हिफाजत व मदद करती है
अपनी जान की परवाह भी नहीं करती है
इन्हे बीमारी हो जाए या स्वयं ये काल के गाल में
समा जाए लेकिन कभी कोई सिस्टर पीछे नहीं हटती है
हम लाख गुस्सा करें लेकिन
ये तनिक भी गुस्सा नहीं करती है
बल्कि दुलारती ही है
ये सेवा व ममता की मूर्ति होती है
ये ममता की देवी भी होती है
उपकार की साक्षात अप्सरा भी!
मैंने कोमल आंखों से देखा था, उस दिन!
मम्मी सारी बाते बताते बताते भावुक हो गई थी
उसकी आंखे भर आईं थीं!
गला भररा गया था!
मै कुछ समझ था!
कुछ नहीं भी समझ पाया था!
मम्मी की कहीं हुई सारी बातों को!
पर
मैनें, इतना ज़रूर पूछा था कि मम्मी
ये सारी बातें तो, तुममें भी पाई जाती है
मै तो देखता हूं, हर रोज़ तुम्हे!
तो ये भी मेरी दूसरी मम्मी हुई ना!
मम्मी मेरे दोनों गालों पर हाथ फेरकर प्यार भरी
नज़रों से देखती हुई बोली थी कि
हां! बेटा हां! ये भी तुम्हारी मम्मी ही है
बहुत बाद में,
जब मै बड़ा हो गया
तब जान पाया कि मम्मी मेरी स्वयं एक सिस्टर थी!
जिसे वो सिस्टर कह रही थी उन्हीं की तरह!
और उम्र के बढ़ते पड़ाव पर, ये भी जान पाया कि
मम्मी समान सिस्टर को नर्स कहा जाता है!
जो मम्मी की प्रतिमूर्ति होती है?
मेरी दूसरी मां!
~ इमरान सम्भलशाही
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day 2020) की शुभकामनाएं
~ इमरान सम्भलशाही