अपनी आंचल के साए में सदा महफ़ूज रखा
हर बला से तुमने मुझको बहुत दूर रखा
मेरी उंगली पकड़कर तुमने चलना सिखाया
दुनियां के झंझावातों से निपटना सिखाया
तुम्हीं ने मुझे सबसे पहले पढ़ना सिखाया
पंख देकर आसमानों में उड़ना सिखाया
एक तुम ही तो मेरी हर गलती माफ करती थी
जब मैं बीमार पडती मंत्रों का जाप करती थी
तपते रेगिस्तान में तुम मीठा ताल बन जाती थी
मुसीबत जब सर आती तुम ढाल बन जाती थी
एक तुम थी तो जिन्दा सारे अहसास थे
मेरी सारी समस्याओं के हल मेरे पास थे
बिन कहे सब जान लेती थी ये हकीकत है
माँ कहाँ हो तुम मुझे तुम्हारी जरूरत है
मुझे जिंदगी जीने का हर राज बता गई
फिर मुझे छोड़ तारों में क्यों समा गई
तुम क्या गई मेरी दुनियां उदास हो गई
वो हंसी वो खुशी बीते दिनों की बात हो गई
ओ मेरी बिछुड़ी माँ तेरे बिन वो बात कहाँ
मेरे बीते प्यारे दिन सब हो गए धुआं धुआं
जरा रूक जाना ठहरना मेरा इंतजार करना
हर जनम में बस तुम ही मेरी माँ बनना
~ डाॅ0 तारिका सिंह