भारत ने दो दिन के अंदर अपनी दो बेहतरीन शख्सियत खो दी हैं। कल इरफ़ान ख़ान जी और आज ॠषि कपूर जी को…. दोनों महान कलाकारों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
शाख से पत्ते टूटते रहते हैं,
एक दूसरे से छूटते रहते हैं,
दस्तूर धरा का बड़ा निराला है,
नए पत्ते आते हैं तो पुराने छूटते रहते हैं।
जीना भी यहीँ है और मरना भी यहीं,
बिकना है माटी के मोल कहीं ना कहीं,
पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो मर कर भी,
दुनिया की यादों मे हमेशा महकते रहते हैं।
दो सितारे इस जमीन से रूठ गए हैं,
उनके सारे चाहने वाले अंदर से टूट गए हैं,
जिनको जाना होता है वो चले ही जाते हैं,
बस उनके बोल हमारे कानों मे चहकते रहते हैं।~ शंकर फ़र्रुखाबादी