कुदरत का तोहफा है
कितना लाजवाब।
आओ बैठे सोचे,
हम मिलकर जनाब।।१।।
हरे हरे पेड़ों की,
हरी हरी टहनियाँ।
जिस पर ये करते हैं,
पंछी अठखेलियां।।
दे रही है सबकुछ,
सबको बेहिसाब।
आओ बैठे सोचे,
हम मिलकर जनाब।।२।।
झर झर झरता है,
झरनों का पानी।
नदियों की कलकल,
सुनाएं सुनो कहानी।।
कुदरत के रंग रंगा
जीवन का आब।
आओ बैठे सोचे,
हम मिलकर जनाब।।३।।
हरे हरे खेतों में,
लग जाते मेले।
कुदरत के तोहफे है,
चाहे जो ले ले।।
धूमधाम उत्सव की,
कुदरत किताब।
आओ बैठे सोचे,
हम मिलकर जनाब।।४।।
कभी धूप – छांव में,
जीवन के मोड़।
धीरे-धीरे जीवन में,
सब को ले जोड़।।
कर लेना तू अमन
जो चाहे हिसाब।
आओ बैठे सोचे,
हम मिलकर जनाब।।५।।
~ मुकेश बोहरा अमन