हाय! कैसी है ये,
मजबूरी मजदूरों की।
अपने परिवार का
भरण-पोषण करने के लिए
चले जाते है,परिवार से दूर
ताकी कही मजदूरी कर,
पाल सके, परिवारों का पेट।
हाय! कैसी है?
ये पेट की आग।
जो मजदूरों को
कर देती,अपनों से दूर।
हाय! यही चार रोटी है,
जिसके लिए आए थे,
घर छोड़…….!!
आज यही चार रोटी के
कारण हो गये, दर्दनाक
हादसे के शिकार…
हाय! कैसी है ?
ये मजबूरी मजदूरों की।
~ स्नेहा कुमारी