कलमकार अजय प्रसाद उस घड़ी का इंतज़ार कर रहें हैं जब लोग एक दूसरे की मदद करने हेतु स्वयं आगे आएं। आइए उनकी एक गजल पढ़ते हैं।
जाने वो लम्हा कब आएगा
जब कुआँ प्यासे तक जाएगा।झाँकना अपने अन्दर भी तू
खोखला खुद को ही पाएगा।
कब्र को है यकीं जाने क्यों
लाश खुद ही चला आएगा।थूका जो आसमा पे कभी
तेरे चेह्रे पे ही आएगा।
इश्क़ में लाख कर ले वफ़ा
बेवफ़ा फ़िर भी कह लाएगा।वक्त के साथ ही ज़ख्म भी
देखना तेरा भर जाएगा
रख अजय तू खुदा से उम्मीद
वो रहम तुझ पे भी खाएगा।~ अजय प्रसाद