मुक्तक व क्षणिकाएँ

मुक्तक व क्षणिकाएँ

हिन्दी बोल इंडिया के पाठक कई क्षणिकाएँ प्रस्तुत करतें हैं, उनमें से कुछ इस पृष्ठ पर संकलित की गई हैं।

मैंने परिंदों की जिद्द को उड़ते देखा है
कोशिश करने वालों को आगे बढ़ते देखा है
मैंने मांझी की जिद्द को पहाड़ तोड़ते देखा है
सपने पूरे करने का अगर इरादा कर लिया
तो मैंने भी लोगों को आसमां पर चढ़ते देखा है

उत्कर्ष श्रीवास्तव
८ अगस्त २०२०

प्रकृति हमे देती है सब कुछ,
हमको भी कुछ देना है।
पर्यावरण करें संरक्षण,
सीख “प्रखर” हमे लेना है।

Dr. K .N. Sachan “प्रखर”
६ अगस्त २०२०

कविता लिखूं, गजल लिखूं या कोई शायरी लिखूं
ईश्वर से बस यहीं मांगता हुँ कि
जिसमें सबकी खुशियाँ और सपनें छिपे हो मै वैसी कोई डायरी लिखूं,
दर्द लिखूं, धोखा लिखूं, दुःख और परेशानी लिखूं,
जिसमें किसी एक का भी बुरा ना हो,
हे खुदा में गलती से भी कभी ना कोई ऐसी कहानी लिखूं

पिन्टु सिंह
३ अगस्त २०२०

रगों में हम अपनी रक्त की जगह बारूद रखते हैं
दुश्मन देश की धमकी को हम जेब में रखते हैं
टकराकर हमसे औंधे मुंह गिर जाता है बार-बार
होंसला शेरों जैसा हम अपने सीने में रखते हैं।

निलेश जोशी “विनायका”
१५ जुलाई २०२०

धमकी देने की फितरत से वह बाज कहां आता है
हर बार छूने की कोशिश में हमें खाक हो जाता है
धमकियों से टूट कर बिखर जाने का इंतजार है तुमको
गीदड़ भभकी से रिश्ता तुम्हारा हमें बहुत भाता है।

निलेश जोशी “विनायका”
१५ जुलाई २०२०

तुझसे हट कर सकूं ऐसा एहसान दे,
मुझको मीरा के जैसी ही पहचान दे,
भक्ति रस के चरम को चखूँ मैं कभी,
इस अभागन को तू ऐसा वरदान दे।

प्रिया राठौर
१३ जुलाई २०२०

पीर सारी मिटादे वो मुस्कान दे,
इस परेशान मन को तू आराम दे,
इस समय ज़िन्दगी बेसुरी है मेरी,
रख के अधरों पे मुरली मधुर तान दे।

प्रिया राठौर
१३ जुलाई २०२०

विष पीकर भी हंसने की, कला है जिंदगी
घाव हृदयों के सीने की, कला है जिंदगी
दुख के अनुभव से, गुजर कर जग में
सुख से जीने की, कला है जिंदगी।

निलेश जोशी “विनायका”
१८ जून २०२०

पर पीर को अच्छे से, समझना है जिंदगी
धोखे को उपहार समझ, संभलना है जिंदगी
मधुरता भरे चुंबन की, विष ज्वाला में जल
जीवन सारा लुटा कर भी, मुस्कुराना है जिंदगी।

निलेश जोशी “विनायका”
१८ जून २०२०

अभी अभी जो लाख था वह डेढ लाख हो गया
सब नीति पाॅलिसिया धरातल पर खाक हो गया
कोई नहीं समझ रहा कि अब भी लाॅकडाउन है
कोरोना का खौफ सब के दिल से साफ हो गया

सुमित रंजन दास
२९ मई २०२०

माँ के आँचल के जैसा कोई छाँवन नही,
माँ के लोड़ी के जैसा कोई गावन नही।
माँ के गोदी के जैसा कोई बिछावन नही,
माँ के दूध के जैसा कोई पावन नही।

सिकन्दर शर्मा
९ मई २०२०

हसीन पलों को बटोरते चलो जिंदगी की दौड़ में,
बस खिलखिलाते मुस्कुराते चलो जिंदगी की दौड़ में!
कोई साथ देगा इस खुशफैमी को दिल में जगह न दो,
मुश्किलों को रौंद वादे निभाते चलो जिंदगी की दौड़ में!

अशोक सरसवाल
१७ मई २०२०

जिन्दगी का बस इतना ही फसाना था
शाम ढल गयी अब घर जाना था
चले गये वो जिस्म को आजाद कर के
अब यादे रहेगी दिल मे घाव बन कर

धीरज गुप्ता
३० अप्रैल २०२०
सितारो को श्रधाजंलि

जरा सी आँखे क्या बंद हो गयी
की लोग मुझे मुर्दा समझने लगे।
उन्हें ये मालूम नहीं की,
मेरा शरीर मुर्दा हैं।
मेरा ज़मीर नहीं।

विक्की कुमार आनंद
१८ मार्च २०२०

सब खड़े है मुझ से आगे और मैं सब से पीछे हूँ
सब छूने लगे आसमान और मैं जमीं के नीचे हूँ
सब जानता हूँ मैं नहीं है मुझसे कुछ छिपा हुआ
तुम को ही बस ये लगता है कि मैं आँखे मीचे हूँ

सुमित रंजन दास
२७ जनवरी २०२०

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