जिंदगी सड़कों पर,
लाचार बैठी है।
अपने घर और काम से,
बेजार बैठी है।
कोरोना क्या मारेगा।
इन जिंदगियों को,
जो जिंदगीयां,
जिंदगी से लड़ने को,
तैयार बैठी हैं ।
जिंदगी सड़कों पर,
लाचार बैठी है।
घर -काम से,
निकाल दिया इनको,
गाड़ी -बसों के लिए,
अपने घर तक जाने को,
लाचार बैठी हैं।
सरकारें कहती है।
मिलेगा खाना।
जिंदगी बदहालीयों में भी,
मुस्कुरा कर जिंदगी के साथ बैठी है ।
~ प्रीति शर्मा “असीम”