कलमकार अनिरुद्ध तिवारी जीवन की उलझनों का जिक्र अपनी कविता में करते हैं। हर इंसान कई तरह की कठिनाइयों से जूझ रहा होता है और इसका पूर्ण ज्ञान सिर्फ और सिर्फ उसे ही होता है।
कुछ दिनों से
बड़ी उलझन में फंसा हूं
ऐसे संस्कारों में पला
जहां सीखा
दायित्व निभाने की कलाl
पर दायित्व एवं व्यक्तित्व
के बीच
लड़ा रहा हूं जंग
क्या करूं?
बड़ी उलझन में फंसा हूंl
खड़ा हूं
पर रण में हूं अकेला
कौन है विश्वासी ?
बड़ी उलझन में फंसा हूंl
हर वक्त
बदल रहा सोच
सम्मान की लड़ाई में
आ गई है मोच
क्या बताऊं ?
बड़ी उलझन में फंसा हूंl
किसी को मुझसे है आश
कोई हो रहा निराश
मैं हूं “अहम “नही
क्या करूं? पता नहीं
बड़ी उलझन में फंसा हूंl
~अनिरुद्ध तिवारी