एक हिन्दू था और एक मुसलमान। दोनों अच्छे दोस्त थे। सूरत के एक कपड़ा मिल में साथ साथ ही काम करते थे। कोरोना के कारण कपड़ा मिल बन्द हो गया। दोनों बेरोजगार हो गए।किसी तरह अपने गांव जाने के लिए कुछ लोगो के साथ एक ट्रक पाए और चल पड़े अपने गांव। बीच रास्ते में ही हिन्दू दोस्त की तबियत खराब हुई। बुखार हुआ और उल्टियां करने लगा और हालत खराब होती चली गई। कोरोना होने के भय से ट्रक में बैठे लोगों ने उसे धक्के देकर ट्रक से निकाल दिया। मुस्लिम दोस्त भी उसे अकेला कैसे छोड़ देता? वह भी वहीं उतर गया।रास्ते में रो रोकर गिड़गिड़ाकर किसी की मदद से हिन्दू दोस्त को लेकर अस्पताल पहुंचा लेकिन हिन्दू दोस्त ने अपना दम तोड़ दिया और सन्नाटा पसर गया लेकिन आज, जब इस चित्र को देखकर बेमिसाल जोड़ी पर, हमें गर्व हो रहा है, तब दो शब्द गीत के रूप में बुना हूं, आप भी पढ़ें।
आज ऐसी एकता भरे मिसाल को भी लोग छिन्न भिन्न करने में लगे है… जिसे बचाना ज़रूरी है…
मुसाफिर ही थे, कोई मजहबी पहचान नहीं
राम रहीम की प्रेम देख, कैसे करें बखान नहींमिलकर काम
वर्षों तलक किए
एक साथ खाए
एक साथ जिएवबा के कहर ने
रोज़ी मिटाया
भूखा पेट भी
रह रहकर सतायाअब निकलना ही था मुलूक, यहां मचान नहीं
मुसाफिर ही थे, कोई मजहबी पहचान नहींसवारी एक नहीं
ट्रक ही सही
दोनों के कदम भी
सागर सी बहीरास्ते में राम
बीमार हो गया
कुछ ही पल में
होशो खो गयाखैरियत का क्या कहें? किसी का एहसान नहीं
मुसाफिर ही थे, कोई मजहबी पहचान नहींगला सूख गया
पानी अभाव में
दर्द उठ रहा
था, पूरे पांव मेंअब क्या था
तेज़ बुखार हो गया
भीड़ में अकेला ही
बीमार हो गयाभीड़ धक्का दिया ऐसे राम को, जैसे जान नहीं
मुसाफिर ही थे, कोई मजहबी पहचान नहींसाथी को छोड़ कर
रहीम गया नहीं
रहीम को छोड़ कोई
राम का हुआ नहींसाथी को ले गया
किसी तरह अस्पताल
अब कैसे सुनाए
राम जी का हालमौत ने निगल लिया था, कोई सुरतान नहीं
मुसफिल ही थे, कोई मजहबी पहचान नहींमिसाल बन गए
हिन्दू मुसलमा भाई
राम की मौत से
गला भर आईंयही ही मुहब्बत
यही तो गान है
मेरे मुल्क की गंगा
जमुनी पहचान हैइतना करम भी कर गया कहीं गुणगान नहीं
मुसाफिर ही थे, कोई मजहबी पहचान नहीं~ इमरान सम्भलशाही