बालिका हूँ

बालिका हूँ

आज जब हम बालक-बालिका में समानता की बात करते हैं तो क्या यह अपवाद होता है। कलमकारों को इस विषय पर लिखना ही पड़ता है। हम सभी समाज का हिस्सा हैं, आइए एक बेहतर कल के निर्माण की ओर अग्रसर हों। कलमकार मुकेश बिस्सा की यह कविता पढें।

अजन्मी हूँ मैं
भाग हूँ तुम्हारा
मत बनाओ मुझे पराया
क्या कसूर मेरा है
ईश्वर की मर्जी मत झुठलाओ तुम।

सरस्वती हूँ, गायत्री हूँ
लक्ष्मी, दुर्गा भवानी हूँ
आकाश से फेंका पिंड नहीं
भावनाओं से निर्मित
मानवता की कहानी हूँ
साथ मेरा निभाओ तुम।

उज्ज्वल सी एक ज्योति हूँ
चमकता हुआ मोती हूँ
पाप की निशानी नहीं
लड़कों से मैं कम नहीं
सौभाग्य मुझे बनाओ तुम।

अभी तो दुनिया में आई हूं
किलकारी संग लायी हूँ
चिंता में खोना नहीं
दहेज अभी सहेजना नहीं
जीवन बोझ न समझो तुम।

~ मुकेश बिस्सा

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