देख पीड़ा श्रमिक की मन रहा है डर
स्याह हर उम्मीद है जाए तो किस दर
रेल की पटरी हो या हो कोई सड़क
हो रक्त रंजित चीखती है सभी डगर
धैर्य की भी सीमा, होती है संसार में
पार उसके पार करलूँ कैसे ये सफर
पीड़ा उनकी आज साहिब जरा सुनो
चिलचिलाती धूप है भूख और बेघर
चलने में पैदल कभी वो नही रुकते
पर रेल, ट्रक के संग न दौड़ता शहर
कई वायुयान से कई बसों से भेजे
जान तो मुझमें भी है देखलो इधर
चुप रहे कैसे ऋषभ देखके अबोध
रो रहा है सड़क पे सब गये है मर
~ ऋषभ तोमर