महान परियोजनाए, महान कार्य के लिए थे बने, स्वर्णिम चतुर्भुज,
दिन रात दौड़ने वाले वाहन धीमे पड़ गए
मजदूर उससे ज्यादा सफर कर गए
धूं धूं कर जलने वाला ईंधन पेट्रोल, डीजल, गैस सब टैंक मे धड़े के धड़े रह गए
मजदूर शहर से गांव अपने लहू पर आ गए
वो बुलेट ट्रेन की ख्वाब दिखाने वाली पटरियां बिरान पड़ गए
मज़दूर उस पर अपने हौसले के उड़ान भड़ गए
अफसोस, हजार किलोमीटर चलना विश्व रेकॉर्ड बना था
उसे एक नही लाखो मजदूरों ने चकनाचूर कर दिया
लाखो का बजट खाक हो गया, कुछ मजदूरों पर ही सब साफ हो गया
~ सुशांत सिंह