पलायन करते मजदूर

पलायन करते मजदूर

कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव।
तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।।

पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार।
कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।।

पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम।
जब तक मंजिल न मिले, मिले कहाँ विश्राम।।

रोटी बिखरी राह में, खाने वाले मौन।
सियासती माहौल में, पूछनहारा कौन।।

अंतस में जलती रही, मौन व्यथा की ज्वाल।
जनता के ही राज में, जनता का यह हाल।।

सूनी राहें ताकते, कातर-कातर नैन।
बिन साधन भोजन बिना, कैसे काटे रैन।।

करे पलायन शहर से, मजदूरों की भीड़।
मंदिर के पट बंद हैं, किसे बताएँ पीड़ ।।

विनती करते आपसे, सुन लो अब सरकार।
पहुँचा दो निज धाम बस, मन में है दरकार।।

~ मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.