विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आइए हम सभी पर्यावरण के संरक्षण का संकल्प लें। पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन १९७२ में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
प्रकृति का संतुलन बनाने और प्रकृति से मिली सम्पदाओं के सरंक्षण करने के लिए हमें आगे बढ़ना चाहिए। आज हमारे हिन्दी कलमकारों ने अपने विचार, अभिव्यक्ति और संदेश अपनी कविताओं में प्रस्तुत किए हैं।
• प्रकृति की गुहार ~ शिम्पी गुप्ता
कहती है प्रकृति यही बार-बार
मैं हूँ तेरे जीवन का आधार
जो करोगे तुम मेरा शिकार
हो जाएगा तुम्हारा संहार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
पेड़ ही हैं प्रकृति का विस्तार
जिसमें है जीवन का सार
इसमें छिपी है जड़ी-बूटी अपार
करती है जो जीवन का संचार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
प्रकृति है पक्षियों का संसार
जिनमें करते हैं वे विहार
वन-वन हिरण कुलाचे मार
पक्षी उड़ते पंख पसार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
प्रकृति का है अपरिमित विस्तार
नगपति का विशाल आकार
इनमें ही है झरनो का स्वर
नदियों की स्वच्छ निर्मल धार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
सूर्य करे दिन को उजियार
रात्रि गगन में चाँद निहार
प्रकृति के हैं भिन्न प्रकार
जिन पर ना कर तू प्रहार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
जब कोयल गाए मल्हार
प्रकृति में बजे सितार
मन का छिड़ जाता तार
हृदय में होती मधुर झंकार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
प्रकृति है नव शक्ति का भंडार
करती हममें ऊर्जा का प्रसार
अब ना मानो तुम भी हार
कर दो प्रकृति का उद्धार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
संयत करो अपना व्यवहार
अति उत्तम है यह विचार
प्रकृति के अनंत उपकार
जिन्हें तुम समझो उपहार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
जो ना समझे तुम इस बार
मानव जीवन पर है धिक्कार
एक दिन करेगा तू चीत्कार
मचेगा दुनिया में हाहाकार
अब तो सुन लो ये गुहार।।
ईश्वर है सर्वत्र निराकार
है प्रकृति का रचनाकार
छोड़ तू अपना अहंकार
कर इस सपने को साकार
अब तो सुन लो ये गुहार।
अब तो सुन लो ये गुहार।।
• पर्यावरण दिवस विशेष ~ वंदना मोहन दुबे
झर-झर बहते शीतल,
झरनों का तिलिस्म देखकर,
मैं ठगी सी रह जाती हूँ।
मन से पोर-पोर,
आप्लावित हो जाती हूँ।
समंदर की अथाह गहराई-
शांतिपूर्ण मंथन-मनन,
हर बार आकृष्ट करता है मुझे।
तरुवर की तरुणाई, सघन परछांई,
अमराइयों की महक
टिकोरों की झूमती मादकता।
धरा हर बार अपने बहुआयामी
रूप से मूक करती है मुझे।
कानों में मिसरी घोलती,
कोयल का टिहुकना।
सरसों की पियरी चूनर,
गेहूँ की लहलहाती बालियाँ।
नदियों के कल-कल करते,
मधुर मुखरित कंठ।
वन उपवनों का आँचल।
धरती अपने आप में
कितनी अकूत संपदायें समेटे है।
नि:स्वार्थ भाव से, जीवन-प्रदायिनी है।
पिछले एक दशक से शस्य श्यामला धरा,
भयंकर रूप से तृषित है।
मानव ज्ञान-विज्ञान हर दृष्टि से
समर्थ होने के बावजूद
संकेतों को नहीं समझ पाया।
पोषण उसने दिया नहीं सिर्फ़
शोषण ही शोषण किया है।
समय है हमको उसका
ऋण चुकता करना है शांत रहकर।
धरा स्वयं ही सुष्मितवान होगी।
अवनि स्वयं उल्लसित होकर,
नवल अंखुओ से सज्जित होगी।
आशान्वित रहिये सर्वत्र मंगल होगा।
• पर्यावरण संदेश ~ डॉ कन्हैया लाल गुप्त
विश्व पर्यावरण दिवस आया है, यह संदेशा लाया है,
बसुंधरा को बचाना है तो पर्यावरण को बचाना है,
धरती माता के छाती के घावों को मरहम लगाना है,
जीव, जंगल, जमीन बचाना है तो हरियाली लाना है,
प्रकृति के कोप से बचना है तो पर्यावरण संतुलन लाना है,
नदियों को स्वच्छ कलकल निनादनी सरिता बनाना है,
अब हमने ये ठाना है कि धरती को शस्यश्यामलाम् बनाना है,
वायु के जहरीले रसायन को मिटाना है तो धरती मित्र बनना है,
मिट्टी की ऊर्वरा शक्ति लौटाना होगा, हरित क्रान्ति लाना है,
विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी को यह शपथ खाना है.
• पर्यावरण रक्षक कोरोना ~ प्रीति शर्मा “असीम”
मानव पर्यावरण संरक्षण के नारे लगाता था।
हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाता था।
जल प्रदूषण, गाड़ियों का, फैक्ट्रियों का धुआं कम करें।
घटते वन्य जीवन और जैवीय दुष्प्रभावों का कुछ मनन करें।
जनसंख्या विश्व की अगर इसी तरह बढ़ेगी ।
विश्व वृद्धि से पर्यावरण की गति घटेगी।
मानव बस नाटकीय सोपान पर चिल्लाता रहा।
पर्यावरण का गला घोट जीव-जंतुओं को खाता रहा।
अधिनियम बनाता रहा।
प्रदूषण के नाम पर पर्यावरण सरंक्षण को भक्षक बन खाता रहा।
कोरोना रक्षक बनकर आया।
पर्यावरण को दूषित मुक्त बनाया।
सारे प्रदूषण साफ कर दिए।
मानव को घर में कैद कराया।
कोरोना तो सचमुच पर्यावरण का रक्षक बनकर आया।
• सुरभित-मुखरित पर्यावरण ~ इमरान सम्भलशाही
है जो व्याप्त, चहुँओर ईश-प्रदत्त प्रकृति वैभव
शस्य-श्यामला भू पर, चारु शाश्वत दुर्लभ गौरव
कल-कल नदियाँ, ध्वनियाँ, झरने, अथाह अर्णव
आओ! नहीं उजाड़ें, उच्छवासें, हरित विटप व जल कण,
क्योंकि, अति आवश्यक है! सुरभित-मुखरित पर्यावरण!
विद्यमान जो हैं, उद्योग-धन्धे और औद्योगिक-कचरे
निर्यात हो रही क्षेत्र-शस्यागारें, सम्पूर्ण जगत हरे-भरे
ताप वृद्धि से खण्डित जो, ओजोन परत व चर्म जरे
रखो, मनु! नियन्त्रित कर्म स्वयं का व सम्हालो नग्न तन,
क्योकि, अति आवश्यक है! सुरभित-मुखरित पर्यावरण!
गमक ज्वालामुखी का अग्नि उगलता, कारण जानो
धुआं लपेटे घने अरण्य संग सुलगता जोहड़ जानो
सघन कुंज में कर्ण कटु ध्वनियों का निवारण जानो
हमें चाहिए! सुरुपा सुरहरा सुललित सुशीतल श्वेत-पवन!
क्योकि, अति आवश्यक है! सुरभित-मुखरित पर्यावरण!
आरोही अवरोही लू-थपेड़ों, वृष्टियों, शीतों की स्थित
जो गर्जन,आंधी, धुंध, धराधर, भानु पुंज अनियंत्रित
व द्रवित हिमानी, भूस्खलन, भाषित बंजराभिव्यक्ति
बचा लो! तीव्रतम उर्वरा कृषि-भूमि का मरूस्थलीय हरण,
क्योंकि, अति आवश्यक है! सुरभित-मुखरित पर्यावरण!