डॉ. राजेश पुरोहित जी की दस कविताएं

१) माँ शारदे की आराधना

विद्या की देवी माँ शारदे से
आराधना करता हूँ।
मैं दो हाथ फैलाकर
बस दुआ मांगता हूं।।

मेरी कलम में ताकत दे।
अल्फ़ाज़ों का खजाना दे।।

मैं गरीबों का दर्द बांट सकूँ।
अपनी कलम से भला कर सकूं।।

जो काम नहीं करते कलम से।
ओर गरीब दम तोड़ देता बेचारा।।

ऐसे लोगों के जख्म भर सकूँ।
मां पैनी कलम बने ऐसी ताकत दें।।

मेरे शब्दों से दूसरों को हौंसला मिले।
जो भी मुझसे मिले दिल से गले मिले।।

माँ सुर में इतनी मिठास दें कि
जो सुनें निहाल हो जाएं।
कटे जन्म के बंधन
और जीवन संवर जाए।।


२) कलम

शब्दों का भंडार लिख देती है कलम।
तलवार से भी ताकतवर होती है कलम।।

शास्त्रों महाकाव्यों को लिखती है कलम।
चौपाई छन्द सोरठे दोहे लिखती है कलम।

असहायों का दर्द पीड़ा उत्पीड़न लिखती है कलम।
न्याय व अन्याय को लिखती है कलम।।

नामुमकिन को भी मुमकिन कर देती है कलम।
माँ शारदे के नाम से रचनाकारों की चलती है कलम।।

महिमा जिसकी कोई लिख न सके वह है कलम।
भोजपत्र ताम्रपत्र से लिखती कागज़ लिखती कलम।।

कोई शोधपत्र कोई हिसाब किताब लिखता वह है कलम।
कोई शायरी कोई गीत कोई कहानी लिखता वह है कलम।।

सुख दुख हानि लाभ जन्म मरण सब लिखती कलम।
कभी खुशी तो कभी गम दे जाती है कलम।।

कवि की कलम सियासत को नई दिशा देती।
आम जनता का दर्द लिख देती है कलम।।

वर्तमान भूत भविष्य लिख देती है कलम।
व्यक्तित्व व कृतित्व लिख देती है कलम।।


३) पैगाम नया

होंसलों से उड़ने का जज्बात दे
तू जरा जमाने को नया पैगाम दे

मोहब्बत से रहे चमन में दोस्तो
गुलों को खिलने का आयाम दें

सर्द रातों में दर्द से जो सिमटे हैं
उन यतीमों को कुछ आराम दें

जो ईमान से जी रहे हैं जिन्दगी
उन लोगों को कभी तो इनाम दें

वतन की आबरू जो बचाते हैं
उन शूरवीरों को रोज सलाम दें

इल्म इतना दे दो नोजवानों को
बेरोजगारों को “पुरोहित “काम दें


४) तन्हाई

जुदाई का दुख तुम क्या जानो
तन्हाई में जीना क्या होता है
यादों के सहारे कटती रातें
दिन सारा कैसे गुजर जाता है
भीड़ में भी तन्हा तन्हा सा
खोया खोया रहता है
बेचैनी रहती है हर पल
दर्द दुगुना हो जाता है
तन्हाई के आलम में बस
ख्वाबों में ताने बाने चलते हैं
कभी बरसात की रातें
कभी सर्द सिहरन होती
कभी गरम लू के थपेड़े सहते
मुश्किल में जिन्दगी गुजरती है
न खाने पीने का सलीका
न तन की सुध रहती है
प्रेमी पागल सा हो जाता
अतीत के पन्नो में सिमट जाता
कभी झर झर आंसू बहते
कभी हँसता खिलखिलाता
तन्हाई में ऐसा ही हाल होता


५) हर हाथ कलम

हर हाथ कलम अभियान चलाकर मानेंगे।
हम सरकारी स्कूल की सूरत बदल कर मानेंगे।।

श्रम से अपने बच्चों को आगे बढ़ाकर मानेंगे।
गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का परचम हम ही लहरायेंगे।।

पेन पेंसिल और रबर से दुनियां का ज्ञान सिखाएंगे।
जरूरतमंद बच्चों की मदद करने हम आएंगे।।

गाँव गाँव ढाणी ढाणी मिलकर अलख जगायेंगे।
स्टेशनरी किट सजाकर स्कूल तक पहुचायेंगे।।

हर स्कूल में स्टेशनरी बैंक एक खुलवाएंगे।
सरकारी स्कूल शिक्षा को आगे हम बढ़ाएंगे।।

नहीं रुकेंगे नहीं झुकेंगे नहीं कोई विश्राम लेंगे।
हर हाथ कलम अभियान से शिक्षा का दीप जलाएंगे।।

तेजस्वी मन को शक्तिशाली भारत की नींव बनाएंगे।
हर प्रतिभा को निखार संवार कुशल बना दिखाएंगे।।

मिशन कलाम पूरा करने में अग्रणी रोल निभाएंगे।
हर घर गाँव शहर में शैक्षिक क्रांति लाएंगे।।


६) सलीका

हज़ारों सवालात दिल मे न रखिये
तहजीब को तुम ताक में न रखिये

यूँ ही नहीं मिलता अपनों का साथ
बुजुर्गों को अपनों से जुदा न रखिये

बदलते दौर में रिश्ते तार तार हो रहे
खुदगर्जी के रिश्ते हरगिज न रखिये

जो करते वतन की हिफाजत दोस्तों
उनसे “राजेश”कभी दूरियां न रखिये


७) कंक्रीट के जंगल

खेतों में अब कंक्रीट के जंगल हैं
कहें कैसे हम दोस्तों सब मंगल है

रात भर परेशान रहे वनचर सारे
ख़ौफ़नाक जंगल का ये मंजर है

ठूँठ खड़े अब नहीं मिलते वहाँ
हर जगह लगती धरती बंजर है

बचाने जंगल को अब कौन चले
सिर्फ फ़ोटो खिंचाने का दंगल है


८) आवाज

मुफलिसों की आवाज कौन सुनता है यहाँ।
हर कोई मतलबपरस्ती में जीता है यहाँ।।

बादल फट जाए आफतों का भले ही यहाँ।
कौन आकर देखता है गरीब का झोंपडा यहाँ।।

आवास कागजों में भले ही हज़ारों बन रहे होंगे।
हकीकत में तो सर ढँकने को नहीं है छत यहाँ।।

योजनाओं के भरोसे देश का गरीब जीता यहाँ।
किसी को अन्न भी मुफ्त में नहीं मिलता यहाँ।।

सदियों से लड़ रहे जो दो जून की रोटी के लिए ।
उनके रोजगार की फिक्र कौन करता है यहाँ।।

फुटपाथ पर जिनकी पीढियां गुजर गई दोस्तों।
उन गरीब लोगों की सुध, कौन लेता है यहाँ।।

कोई अपने जमीर की आवाज सुनता क्यों नहीं।
जो देती है आदमी को सदा सच का साथ यहाँ।।

लालची मन ने न जाने कितनों के अरमान छीने हैं।
रूह की आवाज को “पुरोहित” कौन सुनता है यहाँ।।


९) बेटियों की सुरक्षा

आगत का स्वागत नवागत का स्वागत करें।
करें विस्मृत अतीत को वर्तमान से सन्तुलन करें।।

आँख नम हो गई सुन शहीदों के परिवार की बातें।
आओ हम वतन की हिफाजत के रखवालों की बात करें।।

दे सके न जान सरहद पर भले ही हम दोस्तों।
मगर देश हित छोटे छोटे काम अवश्य शुरू करें।।

हम सुभाष आज़ाद भगतसिंह के देश से हैं याद रखो।
स्वाभिमान से स्वच्छन्द उड़ने की फिर से बात करें।।

बेटियों को बचाने का नारा देकर चुप जो बैठ गए।
उनको जगाकर बेटियों की सुरक्षा की बात करें।।


१०) पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ

धूल धुँआ कहाँ तक झेलेगा आदमी
ध्वनि वायु जल प्रदूषित हो रहा है

जंगल के पेड़ धीरे धीरे कम हो रहे
वन्य जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हैं

हरियाली अब दिखती नहीं कहीं भी
धरती तवे सी जल रही दिनों दिन है

ओजोन परत में छेद हो गया
सूरज की किरणें सीधी पड़ रही

प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ गया है
जिम्मेदार कौन है इन सभी का

केवल मनुष्य जो स्वार्थी हो रहा
पेड़ों को काट रहा और तरस रहा

शुद्ध हवा पेड़ देंगे फल फूल सभी
गोंद लकड़ी दवाई पेड़ देंगे फिर भी

पेड़ लगाओ पृथ्वी बचाओ मिलकर
ये आज की महती जरूरत है दोस्तों

जिसने जीवन मे पेड़ नहीं लगाया
वह गाड़ी के लिए छाया देखता

प्राणवायु कहाँ से लाओगे तुम
सारे पेड़ काट दोगे अगर तुम


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