केरल में एक गर्भवती हथिनी के साथ दुर्व्यवहार का मामला सामने आया है जिसमें हथिनी की मौत हो गई। कुछ स्थानीय लोगों ने उसे पटाखों से भरा अनानास खिलाया और वह हाथी के मुंह में फट गया जिससे वह बुरी तरह से जख्मी हो गई थी। मलप्पुरम जिले में एक वन अधिकारी मोहन कृष्णन्न ने सोशल मीडिया पर हथिनी की दर्दनाक मौत से जुड़ी ख़बर पोस्ट की थी। उन्होने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ”हथिनी ने सब पर भरोसा किया। जब उसके मुंह में वो अनानास फटा होगा तो वह सही में डर गई होगी और अपने बच्चे के बारे में सोच रही होगी, जिसे वह 18 से 20 महीनों में जन्म देने वाली थी। ”
यह घटना मानवता पर कई प्रश्न उठाती है। हमारे हिन्दी कलमकार भी आहत हुए हैं और अपनी संवेदनाओं को अपनी कलम से व्यक्त किया है।
कलमकार मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’ लिखतें हैं- कल मैंने मानवता को मरते देखा
कल मैंने मानव में
मानवता को मरते देखा,
एक गर्भवती हथिनी को
मानवीय पशुता की बलि चढ़ते देखा।
कितना निर्मम, कितना पीड़ादायक
दर्द सहा था उस माँ ने,
जिसके मुँह में फल के साथ
निवाला मौत का खिलाया गया।
वह माँ थी ममतामयी,
मौन हो मर्मांतक पीड़ा सह गई,
उसकी अधखुली-सी
खामोश आँखें पूरी कहानी कह गई।
सौंपकर स्वयं को
जल में समाधिस्थ हो गई
ना विद्रोह किया, ना ही प्रतिकार कोई।
उस माँ ने पशु होकर
अपनी मर्यादा निभाई
कल मैंने माँ की ममता को
नि:चेष्ठ दम तोड़ते देखा।
अरे नराधम! अरे निर्दयी!
तुमने उसे मौत देकर जब मानवता दिखाई,
मारकर अपने जमीर को,
कर कलंकित मानव जाति जो वीरती दिखाई,
तत्काल उसी क्षण मैंने तुझमें
दानवता को नर्तन करते देखा
जिसके सम्मुख सृष्टि नियंता
ईश्वर को भी डरते देखा।
कल मैंने मानव में
मानवता को मरते देखा।
आज बतला दो जगत को हे नर पिशाच!
और कितना गिरना बाकि है तेरे चरित्र का
हैवानियत की सब हदें पार कर
साबित क्या करना चाहते हो तुम
हे नरातंक! ऐसे पाश्विक अत्याचार कर
कल मैंने सभ्य मानव में
दानव को करवट भरते देखा।
कल मैंने एक माँ को वेदना में
पल-पल आहें भरते देखा।
नीरव कानन एकांत वास
सृष्टि को क्रदंन करते देखा।
कल मैंने मानव में
मानवता को मरते देखा।
कलमकार खेम चन्द ठाकुर लिखतें हैं- बेजुबाँ
अधिकार इस धरा पर हमने भी रहने का पाया है
बेजुबाँ है हम इसलिए शायद आज फिर एक बेजुबाँ को रुलाया है।
हे!खुद को मानुष कहने वालों
इसी धरा पर रहने वालों।
किसने तुमको पढ़ाया है
आज फिर एक गर्भवती माँ को मरवाया है।
मानवता का पाठ किसने तुम्हें सिखाया है
भोजन का निवाला देकर मेरी संतान को भी तड़पाया है।
याद रखेगा वक़्त भी इस पल को
पाँवों तले खिसका दे तेरे तल को।
सुनसान कर दिया था तुने मेरे आँचल को
फिर तू रोयेगा मन अपने चंचल को।
ऐसा पाप तुने करवाया है
मानव बुद्धिमान है इस बात को झूठलाया है।
कलमकार ऋषभ तोमर लिखते हैं- बेजुबान हथिनी
प्रेम, दया, करुणा रखने का
तुम कैसा पाठ पढ़ाते हो
या फिर आत्म क़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
हे मानव! तेरी निष्ठुरता से
ये मानवता शर्मसार हुई
जितने कुछ भी पुण्य कर्म थे
वो सारी पुंजी बेकार हुई
मेरे सृजित सभी जीवो में
श्रेष्ठ कैसे कहलाते हो
या फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
बेजुबान हथिनी को तड़पता
देख ह्रदय सबका रोया
हे मानव ! तुम्हारे अत्याचारों ने
दो दो जीवो को खोया
समझ नहीं आता है खुद को
कैसे इंसा बतलाते हो
या फिर आत्मकसीदे गढ़के
खुद को श्रेठ बताते हो
फल में रखकर के विस्फोटक
कैसा निर्मम गर्भपात किया
प्रकृति का रक्षक कहलाकर
प्रकृति पर ही आघात किया
समझ नहीं आता मानवता
कैसी तुम सिखलाते हो
या फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
गर बचा नहीं सकते हो जीवन
तो लेने का अधिकार नहीं है
ये कृत्य तुम्हारे देखके लगता
ह्रदय तो है पर प्यार नहीं है
तुम बड़े बड़े शिक्षा केंद्रों में
क्या बर्बरता सिखालते हो
और फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
ईश्वर का ये नियम है प्यारे
जिसने जो बोया वो काटा है
सबका रखता है हिसाब वो
कर्मो को लिखता विधाता है
प्रश्न कर रही हूँ मैं प्रकृति
क्यों तुम जीवो को सताते हो
और फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
कलमकार शिम्पी गुप्ता लिखतीं हैं- मानव के रूप में दानव
आज फिर एक मानव ने ही मानवता को मार दिया।
एक ‘अबोध’ मानव के हाथों अपना जीवन हार गया।
एक इंसान ने ही उस पर इंसानियत ना दिखाई।
उसके प्राणों को लेने में उसे तनिक शर्म ना आई।
अबोध था मूक था वह इंसान का दोस्त था।
पर इंसान ही ना बन पाया उसका मीत था।
फल दिखा कर उसने भोले-भाले पशु को ललचाया था।
भूख से व्याकुल प्राणी भी कुछ समझ ना पाया था।
अपने मन में तुमने जो किया इरादा, वह जान न सका।
तुम्हारे निर्मम इरादों को वह अबोध पहचान न सका।
तुमने उसकी भूख को ही अपना हथियार बना डाला।
फल में बम रखकर उसको अपना शिकार बना डाला।
भूखा प्राणी अपनी भूख मिटाने को फल पर लपका था।
मुँह में फल के आते ही पड़ा जोर का उसको झटका था।
फल के मुँह में जाते ही उसके जबड़े के परखच्चे उड़े थे।
पर फिर भी ये भोले-भाले जानवर मन के सच्चे बड़े थे।
दर्द से बेहाल था गाँव भर में बिलख रहा था।
सब देखे उसे, ना कोई उसकी मदद कर रहा था।
क्रुद्ध था मानव के इस कुकृत्य पर फिर भी सह रहा था।
जिस गाँव से गुजरा उससे नम आँखों से कुछ कह रहा था।
पीड़ा जब हुई न कम तो नदी को सहारा बनाया था।
उसके जल में पड़ा रहा ना फिर वो बाहर आया था।
मरने को भी अब वह क्षण-क्षण तड़प रहा था।
अपने गर्भ के बच्चे की चिंता बस कर रहा था।
माँ की ममता का ना कोई जग में पैमाना होता है।
उसका बच्चा ही उसकी ममता का ठिकाना होता है।
अंत समय आया तो उसके प्राण तन से निकल गए।
मरते-मरते हे इंसान! उसके मुँह से ये शब्द निकल गए।
वह भी मरा उसका अजन्मा शिशु भी मारा गया।
उस भोले-भाले अजन्मे शिशु ने माँ से यह प्रश्न किया।
कि हे माँ! भगवान ने इंसान को जब दिमाग है दिया।
फिर उसने बिना कसूर क्यों हमको है मार दिया।
मानव के इस कुकृत्य से आज मानवता भी थरथराई है।
पर हैवानियत करने वालों को जरा सी भी शर्म ना आई है।
कलमकार शंकर फ़र्रुखाबादी लिखते हैं- जघन्य पाप
अभिशाप बने हो धरती के मानवता तुमने खोयी है
तुम जैसे दुष्टों को पाल पाल धरती माता भी रोयी है
भूख से बिलखती माता को बच्चे के सहित है मार दिया
कलयुग के पापी दानवों जघन्य पाप तुमने है किया
क्या कसूर उस बच्चे का था जो दुनिया में ना आया था
या कसूर फिर उस माँ का था भूख ने जिसे तड़पाया था
तुम ना देते खाने को पर ये भीतर आघात तो ना करते
अपने एक पल के हास्य हेतु दो प्राणों को तो ना हरते
तुमने दो भूखों को मार दिया तुम मानव नहीं राक्षस हो
है चाह यही अब हम सब की परिणाम तुम्हारा घातक हो
कलमकार राजेश रजवार लिखते हैं- हम इंसान है
हम इंसान है
अपनी इंसानियत कैसे भूल सकते हैं।
बेजुवान लाचार जानवर के जान से कैसे खेल सकते है।
हम प्रकृति में समस्त जीव-जंतु में से समझ
बुद्धि दया भाव प्रकट करने में समक्ष है तभी तो हम इंसान है।
हम अपनी इंसानियत को कैसे भूल सकते है।
गलती क्या थी उस बेजुवान की बस भूख से
खाना ही तो ढूंढ रहा था।
भूख प्यास से हम इंसान से ज्यादा कोई वाकिफ नही
भूख में होने का दर्द फिर हम कैसे भूल सकते है।
हम इंसान है ।
अपनी इंसानियत को कैसे भूल सकते है।
सुना है वो हथनी होने वाले एक बच्चे की माँ थी
बच्चे ने तो दुनिया देखने से पहले देख लिया कि
इस दुनिया मे कितने जालिम हम इंसान है।
खाना देकर जान से खेलने का हमारा जरिया भी देखो
अरे भूखे को खाना खिलाना हम इंसान की पहचान है।
तभी तो हथनी ने भरोसे से खाया था खाना पर
उसे क्या पता ये खाना नही मौत का पैगाम है ।
हम इंसान है
अपनी इंसानियत को कैसे भूल सकते है।
मौत के आखिरी सांसों तक भी उसने हमे इंसानियत
सिखलाया है तभी तो इतनी आहत में भी हमे
छोटी सी भी क्षति नही पहुचाया है।
उसकी मौत से हर भूखे का इंसानों से भरोसा टूटा गया है
और एक बड़ा सा शर्मिंदगी का तमाचा
हम इंसानों के इंसानियत पर मारा गया है।
हम इंसान है
हम अपनी इंसानियत को कैसे भूल सकते है।
बेजुवान जानवरो के जान से कैसे खेल सकते है।
Post Codes
SWARACHIT935E – जघन्य पाप
SWARACHIT935D – मानव के रूप में दानव
SWARACHIT935C – बेजुबान हथिनी
SWARACHIT935B – बेजुबाँ
SWARACHIT935A – कल मैंने मानवता को मरते देखा
SWARACHIT1801A – हम इंसान है