हिन्दी कलमकारों ने इस सुअवसर पर अपनी रचना के माध्यम से गुरुजनों के प्रति अपने विचार और भाव प्रकट किए हैं। हमारे मन से गुरु का आदर कभी भी कम नहीं होना चाहिए।
गुरु – दोहे ~ प्रिया राठौर
गुरु चरनन रज राखीये, गुरु सम कृपा निधान।
गुरु बिनु जीवन कुछ नहीं, सह गुरु होत महान।।
अखिल गुणों से तृप्त हैं, धीर और गम्भीर।
गुरु मिलावे केशवा, कहि गये सन्त कबीर।।
जाकर गुरु से सीखिये, जीवन का अभिप्राय।
हर दुविधा में हैं खड़े, होबत सदा सहाय।।
पाछे हरि के पूजिये, गुरु मात और तात।
मात पिता पालन करें, गुरु विद्या बोध करात।।
सबसे बड़ा गुरु ~ प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
हमारे माता पिता और शिक्षक हमारे प्रथम गुरु होते हैं।
हमारे जीवन की सफलता हेतु अथक परिश्रम करते हैं।
उन्हीं के आशीर्वाद से हम सफल जीवन प्राप्त करते हैं।
और इसीलिये हम ताउम्र उनके ऋणी रहते हैं।
एक नवजात शिशु की भूख ही उसे दूध पीना सिखलाती है।
आवश्यकता की चाह से ही सीखने की प्रेरणा मिल पाती है।
आवश्यकता मात्र जरुरत नहीं ज़िंदगी की गुरु कहलाती है।
कुछ पाने की चाह से ही सीखने की प्रेरणा मिलती है।
जितना बड़ा ख़्वाब महत्वाकांक्षा पूर्ण करने का होता है।
उतना ही बड़ा जज़्बा जीत प्राप्त करने का होता है।
इसीलिये कुछ लोग आम से खास बन जाते हैं।
और महत्वाकांक्षा को ही प्रेरणा स्त्रोत बना लेते हैं।
वैज्ञानिक नित्य नए आविष्कार में व्यस्त रहते हैं।
अपने इस जुनून में दिन रात प्रयत्नशील रहते हैं।
आविष्कार ही उनके जीवन का लक्ष्य मात्र होता है।
यह लक्ष्य ही उन्हें मंज़िल पाने के लिये प्रेरित करता है।
सबसे बड़ा गुरु हर प्राणी का वक़्त ही होता है।
जो हर एक पल अवश्य ही कुछ सिखलाता है।
जिसने वक़्त के साथ चलना सीख लिया,
समझो उसने जीवन जीना सीख लिया।
गुरु की महिमा ~ सविता मिश्रा
जिसके शीश गुरु का साया
उसके पास न फटके माया
भटक रहे थे अंधकार में
हाथ पकड के राह पै लाया
अंधकार को दूर करे जो
ग्यान का सूरज जो उगाये
ना कोई स्वार्थ ना ही लालच
वही गुरु कहलाये
हम तो थे नादान मूढ मति
सत्य से अवगत हमे कराया
जीवन को दी गूढ गति
पाप पुण्य का भेद बताया
गुरु ग्यान का सागर है
अथाह ग्यान भरा है उसमें
अपने उपदेशों के अमृत से
उर्जा और स्फूर्ति भरे सबमें
गुरु के सानिध्य में रहकर
राम लखन महान बने
गुरु की कृपा से ही बाल शिवाजी
छत्रपति महाराज बने
गुरु ~ प्रीति शर्मा “असीम”
जीवन को,
जो उत्कृष्ट बनाता हैं।
मिट्टी को,
जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है।
बाँध क्षितिज रेखाओं में,
नये आयाम बनाता हैं।
जीवन को,
जो उत्कृष्ट बनाता हैं।
ज्ञान को,
जो विज्ञान तक ले जाता है।
विद्या के दीप से,
ज्ञान की जोत जलाता है।
अंधविश्वास के,
समंदर को चीर,
नवीन तर्क के,
साहिल तक ले जाता है।
मानवता की पहचान से,
जो परम ब्रह्म तक ले जाता है।
सत्य-असत्य,
साकार को आकार कर जाता है।
जीवन-मरण,
भेद-अभेद के भेद बताया हैं।
वह प्रकाश-पुंज,
ईश्वर के बाद गुरु कहलाता हैं।
गुरु ग्यान का सागर है ~ करन त्रिपाठी
गुरु ग्यान का सागर है, है गुरु प्रभुत्व और माया।
बनता वो ही बीज़ वृक्ष, जिस पर गुरु का साया।।
जीवन का जो पाठ पढ़ा दे,
भटके जो राह दिखला दे।
क्षमतायें विकसित करके,
पत्थर गढ़ जो मूर्ति बना दे।।
गुरु बिन भव निधि पार न, लाख जतन करे काया।
बनता वो ही बीज़ वृक्ष, जिस पर गुरु का साया।।
खुले हमेशा ही रहते हैं,
शिष्यों को गुरुकुल द्वार।
गुरु चरणों में नित बहें,
ग्यान अमृत की धार।।
सदाचार और ग्यान का है, संगम हम सबने पाया।
बनता वो ही बीज़ वृक्ष, जिस पर गुरु का साया।।
हम जीवन में धारण करें,
निज गुरूओं के संस्कार,
उज्जवल बने भविष्य तब,
मिटे दुर्गुण तम, अभिसार,
दूर कर सारे अवगुण, सतपथ चलना सिखलाया ।
बनता वो ही बीज़ वृक्ष, जिस पर गुरु का साया ।।
गुरु पूर्णिमा ~ स्नेहा धनोदकर
गुरु ज्ञान रूप मानु, ब्रह्म का स्वरूप जानू,
गुरु ही पूजा हैं, गुरु ही हैं भक्ति,
गुरु ही शिव हैं, गुरु ही हैं शक्ति..
कोकिला की आवाज़ हैं, वीणा का साज हैं,
विद्या का अंजाम हैं, अनंत का आगाज़ हैं..
गणेश की विधि हैं, चाणक्य की बुद्धि हैं,
शारदा का ज्ञान हैं, कर्ण का दान हैं,
राम की मर्यादा हैं, कुबैर की सम्पदा हैं,
लक्ष्मी की आराधना हैं, दुर्गा का वरदान हैं,
कुरान की शान हैं, गीता का व्याख्यान हैं,
बाइबल का मान हैं, गुरुग्रंथ साहिब का बखान हैं,
गुरु ही कर्म हैं, गुरु ही कर्म हैं,
गुरु ही ज़ख्म हैं, गुरु ही मर्म हैं,
जिंदगी की शुरुआत हैं, रिश्तो की बिसात हैं,
अनुभव का सिलसिला हैं, कर्तव्य का काफिला हैं,
ह्रदय की तस्वीर हैं, आचरण की ताबीर हैं,
निश्चय की जंजीर हैं, वक़्त की तकदीर हैं,
नीर की लहर हैं, उड़ानों का सागर हैं,
संकल्प का किनारा हैं, ज्ञान का गागर हैं,
गुण हैं, संवाद हैं, शब्द हैं, शब्दार्थ हैं,
निर्मल हैं, सुन्दर हैं, भाव हैं, भावार्थ हैं,
विस्मय हैं, आश्चर्य हैं, उत्साह हैं, अभिलाषा हैं,
अद्भुत हैं, अलौकिक हैं, स्नेह की परिभाषा हैं,
निश्छ्ल हैं, निरंतर हैं, विलक्षण हैं, अर्पण हैं,
नक़्क़ाश हैं, ललित हैं, उपासक हैं, दर्पण हैं,
परिणय हैं, सौभाग्य हैं, वादा हैं, सौगंध हैं,
विवेक हैं, कला हैं, मधुर हैं, सुगंध हैं,
संक्षिप्त हैं, सहिष्णु हैं, अमर हैं, उज्जवल हैं,
क्षितिज हैं, कान्ति हैं, प्रबल हैं, प्रज्जवल हैं,
यज्ञ हैं, वेद हैं, गीता का उपदेश हैं,
धैर्य हैं, नीति हैं, ऐश्वर्य की विभूति हैं,
रहस्य हैं, विचार हैं, शास्त्रों का विस्तार हैं,
इंद्र का अहंकार हैं, वरुण सा निर्विकार हैं,
उतकर्ष हैं, ओजस्वी हैं, आराध्य हैं, उपासना हैं,
श्रध्दा हैं, सुमन हैं, कीर्ति की कामना हैं,
सुर हैं, ताल हैं, सरिता का राग हैं,
सुगम हैं, सौम्य हैं, ममता का त्याग हैं,
प्रतिष्ठा हैं, अभिमान हैं, दिव्य का अनुष्ठान हैं,
आर्य हैं, अक्षत हैं, अभिव्यक्ति की खान हैं,
नूपुर की झंकार हैं, शब्दों का श्रृंगार हैं,
स्वप्न एक साकार, उर्वी का आकार हैं,
अरदास हैं गुरु, गुरु ही कीर्तन हैं,
गुरु ही रामधुन, गुरु ही आव्हन हैं ।
गुरु वंदना ~ रुचिका राय
गुरु की महिमा का क्या करूँ बखान,
वह हैं सारे गुणों का एक अमूल्य खान,
दुनिया के रंग से हमको परिचित करवाया,
जीने का सारा हुनर उन्होंने सिखाया।
ईश्वर कौन है उन्होंने ही बतलाया,
अपने जीवन में ईश्वर का रूप उनको ही पाया।
पहली गुरु मेरी माँ है जिनकी बदौलत मैं यहाँ हूँ,
जो आज मैं दिख रही हूँ उनके समर्पण से बनी हूँ।
दूजे गुरु पिता है जिन्होंने ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया,
दुनिया की भीड़ में मुझे बढ़ना सिखाया।
उसके बाद वो सारे गुरु मेरे हैं जिन्होंने मेरे अस्तित्व को जमाने से परिचित करवाया।
आज जो भी मैं हूँ उनकी बदौलत ही हूँ,
मेरे कर्मो का फल ही है जो ऐसे गुरु मिले हैं।
ब्रह्मा के रूप में उन गुरुओं का करूँ मैं वंदन,
जिन्होंने मुझको तराशा उनका है अभिनंदन।
है आसान नही उनका ऋण उतारना,
पर कोशिश जरूर है खुद को निखारना।
उनके बताये मार्गो पर जो चल सकूँ बस यही आरजू है,
कर सकूँ उनका नाम रोशन बस यही जुस्तजू है।
देवों से भी ऊपर है मेरे जीवन में वो,
प्रकाश जीवन में लाये ऐसी रोशनी हैं वो।
हाथ मेरे शीश पर बना रहे बस इतनी सी विनती है,
सदा आशीर्वाद दें वो बस इतनी सी ख़्वाहिश है।
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