साकेत हिन्द लिखित कुछ दोहे

साकेत हिन्द लिखित कुछ दोहे

दिखावा बहुत हो चुका, बढ़ गया ताम-झाम।।
सत्य पुरुष तो हैं अब, सदा भरोसे राम।।

अधम कार्य हम करते, कहें आया कलयुग।
अपनी गलती मानकर, कर लो सुंदर यह युग।।

चोरी गुस्सा छल अहम, ईर्ष्या गरम मिजाज।
सब इंसानी फितरत है, दिल पर मत लो आज।।

हाजिरजवाबी देखी, माना हो चालाक।
इज्ज़त देना भी सीखो, समझ न इसे मज़ाक।।

खुशामद कर लोगों की, ख़ुद मत जाना भूल।
चमन में मौजूद रहे, बनकर तुम इक फूल।।

नेतागीरी का चक्कर, हुए कितने बर्बाद।
पाकर रौब धौंस नशा, हो न पाए आबाद।।

पूजा कैसे करें हम, आते नहीं सारे नियम।
विनय सुनेंगे जगदीश, त्यागो अपना अहम।।

रूठे हों जब प्रियजन, लगे है सब नीरस।
उन्हें मनाऊं कि तुम्हें, क्या होगा अब सरस।।

सियासती जुमले बने, दोधारी तलवार।
आया चुनावी मौसम, हो तुम अब तैयार।।

होगी सेवा देश की, कहकर लड़े चुनाव।
सेवा छोड़ धन लूटें, ऐसे खेलें दांव।।

रोज खुशियाँ फैलाओ, आया है रमजान।
नेकदिल कर लो पूरे, अब सारे अरमान।।

परेशान हैं सोचकर, क्या कहेंगे चार लोग।
इतनी परवा न करिए, उन्हें लगेगा ढोंग।।

तमाशबीन है दुनिया, बनिए न अब जोकर।
सब सुनिए आप मन की, फिर मिले कब औसर।।

हे जननी ममतामयी, माता तुझे प्रणाम।
धन्य हुआ जीवन मेरा, संग पाकर हर शाम।।

फिक्र हो सबकी जिसे, माँ है हर परिवार।
आश्वस्त हुए माँ से, जग के पालनहार।।

मां के प्यार-उपकार, तले दबे इन्सान।
बड़प्पन माँ का देखो, कभी न बने महान।।

भूल जाओ गम को तुम, राय दिए हैं लोग।
वक्त को बना लो मरहम, यादें हों यदि रोग।।

वक्त है ऐसा मरहम, भरता सारे घाव।
बनो वक्त के हमसफ़र, जीवन है धूप-छांव।।

मनाकर जन्मदिन हम, बढ़ते हैं हर साल।
साथ उम्र बढ़े खुशियां, हो अनुभव हर हाल।।

हमने दुनिया देखी है, यूं न बनी कहावत।
तजुर्बा झलके उनमें, पहुंचें न बिन दावत।।

मानो न मानो बातें, सुना करो दे कान।
रोचक बात भी होगी, जिनसे हो अनजान।।

माना हम नहीं भाते, किया है दरकिनार।
अवगुण किसमें है नहीं, सोचो तो इक बार।।

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.