आजा परदेसी ~ शुभम पांडेय गगन
सावन की बहार है,बाहर गिरी बौछार है
आज मेरे परदेसी,तेरा इंतज़ार है।
तुझसे मिलन की आस है, जिया मेरा उदास है
आज मेरे साजन, मिलन की प्यास है।
दूर दूर से होती बात है, देखने की आस है
नयनों से गिरते आँशु, लगता है उपवास है।
तुमसे मिलने को तड़पे, मेरे जिया जब जब धड़के
तेरे चेहरा सामने आए, जब जब बाहर गड़के।
तुमसे ही तो प्यार है, आज सावन की बहार है
आजा मेरे परदेशी, तेरा इंतज़ार है।
सावन आया ~ चुन्नी लाल ठाकुर
सावन आया सावन आया
शीतल हवा संग बारिश लाया
जलती धूप से राहत देकर
मौसम सुहावना लेकर आया।
फूल-पते सब महक उठे
डाली पर बैठे पक्षी भी चहक उठे
बादलों ने डाला आसमान में डेरा
इंद्रधनुष ने भी अपना रंग बखेरा।
नदियां, झरने कर रहे कल-कल सब
प्रकृति सौन्दर्यमयी हो गयी है अब
धरती का है बना मनमोहक नजारा
सभी को लगता यह दृश्य प्यारा।
आस्था भक्ति का लाता यह त्यौहार
भक्तों को देता शिव आशीर्वाद की बौछार
सब खीर रूपी प्रसाद है खाते
और मुख से बम-बम भोले गाते।
सन्न-सन्न पवन भी कर रही है शोर
तक-धिन,तक-धिन नाच रहे है मोर
जीवन में है खुशियां लाया
सावन आया सावन आया।
सावन ~ मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
यौवन ने ली अंगड़ाई
मदमस्त पवन लहराई
आई सावन की ऋतु आई
कानों में चमके कुंडल
पैरों में बजी पायल
तेरा रूप देख गोरी
‘ऋषि कुमार’ हुआ घायल
अधरों से मधुशाला छलकाई
प्यासे पपिहे की पिहुकाई
आई सावन की ऋतु आई
मन हरा और तन हरा
तेरा गोरा वदन सोने सा खरा
तेरी मुस्कान गुलाबों सी
प्रिये मैं मर्यादा से ड़रा
काली जुल्फों सी बदरी छाई
न सही जाये तेरी जुदाई
आई सावन की ऋतु आई
साजन बिन सावन ~ मनीषा कुमारी
हो पिया जब परदेश में
सावन भी सूखा लगता है
सजनी का हर श्रृंगार भी
पी बिन अधूरा लगता है
बारिश की हरेक बूंद भी
तब आग ही बन जाती है
सावन की सुहानी रातों में
जब याद पिया की आती है
इंतज़ार होता है नैनों में
देखने को तरस जाता है
बिना साजन सारा सावन
आंखों से ही बरस जाता है
सावन का महीना ~ ट्विंकल वर्मा
प्रभु तुझे
शत-शत नमन,
नव-जीवन है,
पुलकित तन-मन
सावन का
महीना आया है
खुशियाँ भी
साथ लाया है
प्रकृति भी हरे रंग के
परिधान किए है
अबुंद साथ बरसात
की बौछार लाए हैl
धरा झूम रही
है, मगन में
न मुरझाए खुशियाँ
कभी जीवन में
खिल-खिलाती
हँसती सखियाँ,
मन में लहर
उठती जैसे नदियाँ
पपीहा, कोयल की मधुर
स्वर मनमोह लेती है
प्रिय से मिलन को जी
झकझोर देती है
मन:पटल पर
तुम ही विराजे हो,
बारह मास में एक
तुम ही प्यारे हो।
ओ…. सावन
अतरंगी सा खेल है, तेरा
सतरंगी सा भेष तेरा
तेरे आते ही
जग झूम उठा है
प्यास बुझाने में
तू कभी न चूका है
निदाध हर
लेता है, तू
शीतलता सा जीवन
दान देता है, तू
सावन का महीना प्रतिक है,
बेटियों का
जीवन में सदा ख़ुशहाली छाए,
बरसात की तरह
सारे दुःख बरस जाए
नवांकुर के समान
फिर से शुरुआत की जाए।
प्यार वाला सावन आया ~ अभिषेक प्रकाश
सुनो न!
अब लौट भी आओ…
देखो न मौसम कैसा पावन आया है!
तेरी यादें हर रोज आँखों को भींगा जाती है…
देखो फिर से प्यार वाला सावन आया है!
तुम सजाना अपने हथेलियों को मेरे नाम से,
मैं चुमा करूंगा हथेलियों से आती हिना कि खुशबू को,
तुम झटक के दोनों हाथों से फिर चेहरा छिपाना,
फिर वही हसीन पल मनभावन आया है!
देखो फिर से प्यार वाला सावन आया है!
बरखा रानी ~ सविता मिश्रा
गर्मी ने कितना तरसाया
कितना है झुलसाया
ठंडी हवा ने जख्मो पे
आकर के मरहम लगाया।
मौसम में आया बदलाव
दूर हुआ गर्मी का ताव
सूर्य देवता विलीन हुये
फैल गई मेघों की छाँव।
नभ में काले बादल छाये
नाच रहे मोर पंख फैलाये
प्यासी धरती निगल रही
बूँदे मानो मुंह बाये।
पतझग का असर मिटाती
गुलशन में बहार है लाती
दादुर पपीहरा की प्यास बुझाती
लो बरखा रानी आई।
चम चम चम चम बिजली चमके
गड गड गड गड मेघ गरजते
टप टप टप टप बूँदे गिरते
मन प्राण शीतल हो जाते।
मेरे बादल ~ संजय वर्मा ‘दॄष्टि’
आकाश मे जाते बादल
जमीन पर गर्म हवाओं
धूल भरी आँधियों के संग
उड़ रहे
सूखे कंठ लिए
हर कोई निहार रहा
मानों पेड़ कह रहे
थोड़ा विश्राम करलो
हमारे गावँ में भी
सूखे कुएं,सूखी नदियां से भी
गीत नही गाया जा रहा
धूप तेज होने से
बेचारे पत्थरों को
चढ़ रहा बुखार
मेहंदी बिन त्योहारों के
आ धमकी पगथली औऱ हाथो में
कच्ची केरिया दे रही आहुति
तपन के इस लू के खेल में
सड़के हुई वीरान
वृक्ष बुला रहे राहगीरों को
ऒर उस पर रहने वाले रहवासियों को
वृक्ष के पत्ते
बादलो से कह रहे
जरा जल्दी आना
बस तुम जरा जल्दी आना
ताकि मैं तुम्हें ही
गंगाजल मान कर
तुम्हारे शुद्ध जल से तृप्त हो
जीवित रह सकूँ
जल्दी आओगें ना
मेरे सखा बादल।
सावन में किसान ~ विमल कुमार वर्मा
लहलहाती धुपों में तपु मै,
लोगो का उद्धार करू मै,
इस सृष्टि का विधाता बना रहूं मै।
कमल पुस्प सा न कोमल,
कंकड़ पत्थर में बसा है जीवन,
खेत खलिहानों से प्रेम करू मैं
मिट्टी को पोशाक समझू मै।
जब – जब देश में दुविधा आयी है,
किसान ने सुविधा लाई है,
खुद घाटे में रह करके,
पूरे देश को खिलाई है,
बारिशों के बुंदो से मन चंचल हो उठता है,
मयूर की भांति किसान झूम पड़ता है,
फसलों में रोनक और हृदय में मनोबल बढ़ जाता है,
सावन के मौसम में दिल पंखुड़ियों सा हो जाता है।
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SWARACHIT1415B | प्यार वाला सावन आया |
SWARACHIT1415E | सावन का महीना |
SWARACHIT1415F | मेरे बादल |
SWARACHIT1415G | सावन में किसान |
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SWARACHIT1415D | मेरे बादल |
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