शिक्षक-गुरु
मेरी प्रथम गुरु मेरी माता हैं,
वो बोलना-चलना सिखाती हैं,
वो हमें संस्कार सिखाती हैं,
तभी तो सौ गुरुओं के बराबर होती हैं,
दूसरा गुरु मेरा शाला-शिक्षक हैं,
जो जीवन के कठिन डगर पर
चलने की राह बताता हैं,
जो खुद दीपक की तरह जलकर,
हमारे जीवन को रोशन कर जाता हैं,
कुछ इस तरह,
गुरु अपना फर्ज निभा जाता हैं,
गुरु ही समाज-देश का भविष्य हैं,
गुरु गुणों की खान हैं-गुरु ही निर्माण-कर्ता हैं,
गुरु बिना कहाँ मिलता ज्ञान हैं,
गुरु खुद ही अंधेरे और अभावों में रहता हैं,
पर शिष्यों को पार लगा जाता हैं,
क्योंकि मानव जीवन तो हैं विष की बेल,
गुरु मेरा हैं अमृत की खान,
शीश काट कर भी दे दो,
और सच्चा गुरु मिल जाय तो भी सस्ता जान।
जिंदगी तुझे सलाम
हर वो चीज़
जो हमे पढाये
आगे बढना सिखाये
मेरी नजर में
वही गुरु कहलाये।
सबसे बडी गुरू
तो जिंदगी है
कभी गिराती है
तो कभी उठाती है
सम्हलने का पाठ
ऐसे ही पढाती है
हर रोज एक
नयी परीक्षा
एक नयी कसौटी
पै कस के
हमें होशियार
करती है।
सुख दुःख
की आग मे तपाकर
हमे सोना बनाती है
उतार चढावो से
लडना सिखाती है
ऐ जिंदगी तुझे सलाम
गुरु और शिक्षक
सब तेरे ही है नाम।
शिक्षक
शिक्षक!
हाँ, हाँ, मैं एक शिक्षक हूँ।
मौर्य साम्राज्य का नहीं,
बिहार सरकार में, एक नियोजित शिक्षक हूँ
और, उसी देश में जन्मा हूँ;
जहाँ कभी, शिक्षक के चरणों में,
राजा भी नतमस्तक हुआ करता था।
पर, आज वह समय;
कितना कुछ बदल गया है,
राजनीति के विषधर सर्प
अपने दो मुँहे विषैले फन से
शिक्षक की मर्यादा को ही डस रहे हैं।
कल जिसके गोद में सृजन था
जो, समाज का कहलाता आदर्श था,
वह आज बहुमत के पद-तले
मर्माहत हो रहा है ।
सत्ता के आपादमस्तक वे ऐसे चूर हैं,
भूल गए हैं, वह शिक्षक की शक्ति को
हाँ, हाँ, शिक्षक वही शिक्षक
जिसके गर्भ में पलता है,
सर्वांगीण विकास का नूतन बीज।
गुरु
गुरु वंदन कर लगाऊँ, मैं चरणों की धूल।
वह भी पुष्प बन जाता, जो रहा कभी शूल।।
पहला जनम तब पाया, जब देखा संसार।
दूजा जनम तब पाया, जब गुरु दे संस्कार।।
पहली गुरु होय माता, देवे मौलिक बोध।
इससे ही जाना हमने, संसार कैस होत।।
गुरु बिन जीवन न होवे, मिले न कोई ज्ञान।
अंधकारमय जनम का, गुरु ही है वरदान।।
ईश्वर से गुरु श्रेष्ठ है, ईश्वर ने दी जान।
जान को कैसे जीना, गुरु देवें संज्ञान।।
पुरातन काल में विद्या, संस्कृति व संस्कार।
अब जीविकोपार्जन है, वर्तमान आधार।।
गुरु वह श्रेष्ठ जो न करे, शिक्षा का व्यापार।
संग किताबी शिक्षा के, ज्ञान भी दे अपार।।
गुरु के लिए सब सम है, कोई ऊंच न नीच।
बनकर के स्वयं माली, दे हर पौधा सींच।।
कुम्हार जैसे भू को, देता है आकार।
गुरु वैसे ही शिष्य का, जीवन देत सुधार।।
गुरु की बाते मानिए, कभी न लीजे आह।
गुरु वाणी अनमोल हैं, दिखावे प्रभु राह।।
महफूजियत
ज़िंदगी महफूज़ है रब वो ख़ुदा महफूज़ है
आज़ भी दामन में माँ के हर दुआ महफूज़ है
कब है करता छोड़ माँ के शर्त बिन कोई दुआ
छोड़ माँ का दिल कहाँ वादे सफ़ा महफूज़ है
दुख रहे या सुख रहे माँ साथ देती हर घड़ी
शख्सियत इक माँ ऐसी जिसमें वफ़ा महफूज़ है
माफ कर देती है माँ हो गलतियाँ जितनी कभी
मोह माया प्यार ममता दिल दया महफूज़ है
कौन देगा कब किधर महफूजियत इतनी कभी
साँस दिल धड़कन जहाँ हर आसरा महफूज़ है
बात हो गर सीख की तो माँ गुरू सबसे बड़ी
वक़्त जैसा हो मगर पर हौसला महफूज़ है
आज शिक्षक दिन “सुदामा” करता हर माँ को नमन
पाठशाला माँ जहाँ हर कायदा महफूज़ है
गुरु
जिसके पास धन हो
वो अभिमानी होता है,
एक सच्चा गुरु है पास जिसके,
केवल वह ज्ञानी होता है।
गुरु मिलना, ना कोई बात आम है,
मेरे गुरु, मेरा तुम्हें सादर प्रणाम हैं।
आसान नहीं, एक गुरु हो जाना
आसान नहीं, हर किसी को शिक्षित कर पाना,
आजीवन पुस्तकों को ढोना और पड़ते जाना,
आसान नहीं होता, सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहलाना।
धन की अधिकता में
लोग भोग में डूब जाते हैं।
पिता के नाम के साथ जीते,
और बेनाम मर जाते हैं।
हो सच्चा गुरु पास जिनके,
वे ज्ञानी कहलाते हैं,
शब्दों को कभी शस्त्र, कभी मोती,
रूपी उपमा देना, ना बात आम हैं,
श्यामपट्ट के सफ़र को, जिंदगी के सफ़र की
रफ़्तार तक पहुंचना, ना बात आम हैं,
मेरे गुरु को मेरा सादर प्रणाम हैं।
वक्त सबसे बड़ा गुरु
“माँ” से बड़ा कोई और कहाँ होता है,
जगत गुरु भी माँ की अर्चना करता है।
शिक्षा धनागार झोली में अर्पित कर,
हर “शिक्षक” कर्तव्य निर्वाहन करता है।
“समय” हर पल एक नई सीख देकर,
शिक्षा के अनेक भावों को जगाता है।
माँ गुरु और समय तीन अमूल्य निधि,
हरदम सीख देकर ऊर्जा से भर देता है।
स्वयं में दृढ़ इच्छाशक्ति भर के चलते रहें,
वक़्त से बड़ा गुरु दूजा कोई ना होता है।।
विषय गुरु का उपकार
मेरे शिक्षक ने बहुत कुछ दिया मुझे
मुझे उनके उनके सिवाय कुछ ना सुझे
जो आपका आशीष किसी को प्राप्त हो जाए
तो किसी का अंधकार में प्रकाश ना बुझे।।
आशीष देकर किया आपने मेरा उपकार
सभी को आपने दिए उचित संस्कार
क्या कहूं मै जगजाहिर कर सकता हूं
हमने तो आपके आशीष में भरी है हुंकार।।
मै माताओं पिताओ का भी उपकार मानता हूं
संसार में मैं उनका भी सम्मान करना जानता हूं
अगर इन सभी का आशीष मिल जाए,
मै पूरी दुनिया को मुट्ठी में करना जानता हूं।।
इतनी सी पंक्ति में कुछ कह नहीं सकता
उनका शिष्य आशीष के लिए दिन-रात मरता
सदा कृपा आपकी बस हमारे उपर बनी रहे
उनके उपकार को यह शिष्य नमन है करता।।
मेरे प्यारे अध्यापक
जिन्होंने हमें जीवन से लड़ना सिखाया,
हर अच्छे बुरे का फर्क करना सिखाया।
वह हैं “मेरे प्यारे अध्यापक”
वह जो जीवन के सार्थकता लाए,
जो हर रोज नई सीख सिखाए,
जो दुनिया को बदलना सिखाए,
वह हैं “मेरे प्यारे अध्यापक”
कभी मस्ती में, कभी गंभीरता से नए पाठ पढ़ाए,
हमे सही दिशा दिखाए
वह हैं “मेरे प्यारे अध्यापक”
डांट में छिपी सीख नई
जीवन का हर एक नया पहलू समझाए।
वह लेते कभी परीक्षा तकनीकी,
कभी जीवन का सार बताए।
वह हैं “मेरे प्यारे अध्यापक”
गुरु माँ
सिखायें जो नीति का पाठ
वो शिक्षक कहलाये
करें जो नैतिक मूल्यों का बीजारोपण
वो शिक्षक कहलायें।
पाठ्य-पुस्तकों को रख दरकिनार
जो जीवन रूपी मंत्र बतलाएँ
वो भी शिक्षक कहलायें।
हर मुश्किल-बाधा में संग तुम्हारे
जो अड़ जाए
वो शिक्षक कहलाये।
संस्कारों की नींव में
एक ईट जो रख पायें
वो शिक्षक कहलायें।
जो साथ तुम्हारे बैठ कर
हर पल तुम्हें समझायें
वो माँ भी शिक्षक कहलाये।