आज दीवाली है
मिठाई ले आना बापू आज दीवाली है।
सूखी रोटी खाऊंगा न आज दीवाली है।।
नये कुर्ते और पाजामे ले आना मेरे।।
मैं भी राजकुमार बनूँगा आज दीवाली है।।
घर आंगन सबके सजे हैं कितने लगते प्यारे हैं।
एक दीप जलेगा अपने घर आज दीवाली है।।
अरमानों की फटी रजाई ओस की बूंदें टपकी है।
महंगाई के इस युग में फिर से आई दीवाली है।।
साहूकार से कह देना ब्याज समेत ले लेना।
एक बार और दे उधार मुन्नू ने कहा दीवाली है।।
इक दीप नया
आओ इस दीवाली एक दीप नया जलाए
समाज में व्याप्त बुराइयों को जलाकर भगाएं
इस बार हम मिट्टी के ही दीप जलाए
भारतीयता का परचम इस जग में लहराये
राम लला जब बुराई को हराकर घर पर आए
जब ही सब ने सुंदर सुसज्जित दीप सजाए थे।
इस बार कुम्हार से दीप ले हर जगह जलाएगें
हर घर में खुशियों के लिए लाखों दीप सजाएं।
इक दीप नारी के सम्मान के लिए भी जलाए ।
गौ माता की रक्षा के लिए सुंदर दीपमाला बनाए।
एक ऐसा दीप जलाए,
जो सैनिकों का यश दसो दिशायो में गुंजाए।
जो वीर शहीदों का मान बढ़ाकर गुणगान कर जाए।
इक सुंदर सा दीप जलाकर किसानों का मान बढाएं
अन्नदाता पर इस त्योहार हजारों खुशियां न्योछावर हो जाए।
इक दीप ऐसा हो जो शोले सा दहकता हो,
दुश्मन की आंखो मै खूब चुभता, चहकता हो।
इक दीपक का तेज अति निराला हो।
हर गरीब के तन पर कपड़े,
मन में खुशियां, मुंह में निवाला हो।
सब पर मां लक्ष्मी की माया हो ,
कुबेर की छत्रछाया हो,
विघ्न हरने वाले हर घर में विघ्न विनायक हो।
आओ इस दीवाली दीवाली दीप नया।
इक दीपक ऐसा जलाए गुरु के चरणों में शीश नवाए
ज्ञान का दीप नया जलाए।
आओ इक दीपक शिव के नाम का भी जलाए
शिव के धाम पर दीपमाला सजाएं,
शिव के चरणों में नित नित शीश निवाए।
दीपावली संकल्प
जला कर एक दीया विश्वास का,
हमें मानव सभ्यता में,
विजयी उद्घोष जगाना है ।
हम हैं भारत की संतान,
कोरोना से टूटी अर्थव्यवस्था को,
फिर से मजबूत बनाना है।
जलाकर दूसरा दीया प्रेम का,
हमें आपसी भाईचारा लाना है।
धर्म की आड़ लेकर लड़ाने वालों को,
मुंहतोड़ जवाब दे जाना है।
जलाकर तीसरा दीया देश हित में लगे ,
असंख्य जनों के प्रति,
कृतज्ञ हो जाना है।
अपने देश के सैनिकों,
और किसानों के हित के लिए,
दुआ में हाथ उठाना है।
जलाकर चौथा दीया बुराई से लड़ने के लिए,
आवाज उठाना है।
यह कैसा समाज दे रहे हैं।
जीवन त्रासदी का अंत पाना है।
जलाकर पांचवा दीया कुदरत का उपकार मनाना है।
बहुत गलतियां कर चुके,
हम कुदरत के साथ,
अब समस्त भूले सुधारते जाना है।
जलाकर छठा दीया स्वच्छ भारत का मान बढ़ाना है।
गंदगी को आसपास से ही नहीं,
गंदी सोच से भी हटाना है।
जलाकर सातवां दीया सत्य का पथ अपनाना है।
मिलावट, धोखेबाजी, भ्रष्टाचार,
समाज से तभी निकलेगी,
पहले अपने भीतर का,
रावण मार गिराना है।
जलाकर आठवां दीया अपनी अमर,
सभ्यता का ध्यान कर जाना है।
विदेशी भीड़ का हिस्सा होने से,
च्छा स्वदेशी संस्कार अपनाना है।
जलाकर नौवां दीया संकट के काल में,
जीवन को संकट मुक्त बनाना है।
जरूरतों के हिसाब से हो जिंदगी,
हर जिंदगी को जीवन में खुशहाल बनाना है।
इस दीपावली देकर रोजगार हर नागरिक को
आत्मनिर्भर भारत बनाना है।
दीपोत्सव
अंतःकरण में ज्योति जलाकर,
घृणा द्वेष को दूर भगायें।।
प्रेम नाम की बाती डालकर,
आओ सब दीवाली मनायें।।
हृदय से ईर्ष्या ऐसे निकालो
जैसे घर से कूड़ा करकट।।
मन में इंसानियत जगाओ,
हो जाये फिर घर में बरक़त।।
महल, अटारी, द्वार सजायें।।
आओ सब दीवाली मनायें।।
हर बेटी को लक्ष्मी समझो,
वही तो सबकी दौलत है।।
झूठी शान पैसे से होती
ये न सच्ची शौहरत है।।
दिलों में प्रेम के दीप जलायें।।
आओ सब दीवाली मनायें।।
माँ बेटी की आन बचाना,
सबकी जिम्मेदारी है।।
लक्ष्मी मां आशीष दे सबको,
ऐसी विनय हमारी है।।
आओ अब मानवता दिखायें।।
आओ सब दीवाली मनायें।।
अब न कोई निर्भया मरे,
न किसी मासूम की माँ रोवे।।
करे कृत्य जो इतना घिनौना,
सज़ा उसे फाँसी की होवे।।
कानून को अब कुछ तगड़ा बनायें।।
आओ सब दीवाली मनायें।।
वो शाम चिरागों वाली
याद आती है आज भी
वो दीपों की लड़ियां
नन्हें हाथों में चहकती
फुलझड़ियां
छत के ऊपर लटके आकर्षक
रंग बिरंगे कंदील
छज्जों पर झिलमिलाते
छोटे छोटे दीपों की कतारें
मुझे याद है अब भी
वो रात सितारों वाली
काश लौट आए फिर इक बार
वो शाम चिरागों वाली
दीवाली
रोशन हो गयी देखो ये अंधकारमय रातें
दीपों की रोशनी ने की है गज़ब की बरसातें।
सर्द ऋतू और पतझड़ में मिल जाए एक चाय की प्याली
हर दिलों में और हर घर- परिवार में खुशियां लाई है फिर से “दिवाली”
कड़वाहट मिटे रिश्तों से और मिश्री सी ये मिठास लाये
दूर- दूर से भी कुटुंब को कुटुंब के पास पहुंचाए।
आओ मिलकर सभी गाओं- कस्बों में दीपों की कतार सजायें
सबके दिलों से दीप अन्धकार मिटाये।
खेत- खलिहान के पुष्प, गेंदा सभी अपनी महक बिखेरे
दीप दिखाए रास्ता सबको हार जाए अँधेरे।
मिठास हर रिश्तों में ये घोले
बोल प्रेम के हर इंसान बोले।
सब घरों में माता लक्ष्मी करे निवास
कोई भी ना हो इस जग में उदास।
दीन- दुःखियों और सब प्राणीयों का घर रोशनी से भरे।
दीयों की रोशनी में आज नहाये हैं सभी आँगन और घर- द्वार
माँ लक्ष्मी खुशियां लाई है आपार।
प्रज्वलित हो दीप सा जीवन सबका प्यारा
सबकी ज़िन्दगी में हो उजियारा।
बागों में लगे हैं नभचर मधुर संगीत लगाने
दिवाली की सब बच्चे खुशियां मनाने।
मिठाइयों से सज गयी दुकानें सभी बाजार
महीनों से रहता है दिवाली का सबको इंतज़ार।
शान्ति और भाई- चारे के साथ “दिवाली ” मनायें
आओ मिलकर दिया मानवता का जलाएं।
प्रण लें और सभी मिलकर एक वादा भी निभाएं
अत्याधिक आतिशबाज़ी कर पर्यावरण को नुक़सान ना पहुंचाएं।
दीप
दीप है तो रोशनी है,
दीप है तो राह खोजनी है,
दीप है तो जीवन आसमानी है,
दीप है तो अंधेरी रातें पुरानी है,
दीप है तो भोर सी है,
दीप है तो रोशनी चहुँ ओर सी है,
दीप सत्य की खोज है,
दीप कामयाब सोच है,
दीप प्रकाश का स्त्रोत है,
ऊर्जा से ये ओत-प्रोत है,
दीप है तो खुशहाली है,
हर त्यौहार की छटा निराली है,
दीप है तो ज्योति है,
सकारात्मकता की जो जड़ होती है,
दीप अँधेरे का अन्त है,
महिमा इसकी अनन्त है,
दीप एक सटिक उदाहरण है,
इसका जीवन भी एक रण है,
दीप लड़ता और जगमगाता है,
प्राण त्यागने तक फर्ज निभाता है,
दीप अगली सुबह फिर तैयार है,
काली रात इसके आगे लाचार है,
दीप का जीवन उन्मुक्त है,
बहती हवा में भी ये सशक्त है,
दीप की बात निराली है,
खूबियाँ न कभी खत्म होने वाली है।
ज्योति पर्व
ज्योति पर्व आया नई खुशियां लाया
तमस को दूर भगा नया उजास लाया
अरमानों के पंख लगे उम्मीदों के संग
जीवन में भरने लगे देखो इंद्रधनुषी रंग
आस्था के दीप से हुआ अन्तर्मन रोशन
प्रेम व विश्वास से सजा मन का आंगन
भावों की रंगोली संग बिखर गए हैं रंग
रिश्तों के अपनत्व से जिओ सबके संग
इस दीवाली जगमगाओ दीनों के घर
रखो न मन मे जरा अंधविश्वास व डर
दीपोत्सव
चलो मिलकर दीपमल्लिका सजाते है,
इस गुलशन को प्रदूषण मुक्त बनाते हैं,
हृदय कलुष तम को निर्मल करते हैं,
दिलों के तार को जोड़ने का कार्य है,
बाहर की रंगीनियों को उर में भरते है,
तन मन संसार को आलोकित करते हैं,
दीपावली में दीपों को अवलि सजातें है,
आज संसार को फिर नवतम बनाते हैं.
चलो एक दीप हम भी जलाए
चलो एक दीप हम भी जलाए,
इस दीपावली में
उन खुशियों के नाम,
जो आने वाली हैं।
उस गम के नाम,
जो जा चुका हैं।
चलो एक दीप हम भी जलाए,
इस दीपावली में।
उन अपनो के साथ जो साथ है,
उन अपनों के नाम जो जा चुके हैं ।