विश्व पर्यावरण दिवस
World Environment Day: 5 June 2021
Theme: Ecosystem Restoration
• प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा ~ प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रकृति वसुंधरा का आवरण
सभी के जीवन का आधार
पुष्य लताओं से करती मां का श्रृंगार
बनी सब का खेवनहार
मां की तू असली सेवक
अदम्य साहस धीरज धैर्य तुझमे
तेरे आगे नतमस्तक होते
सूरज सागर मेघ पर्वत
पशु पक्षी जन विचरण करते
कोयल गाती मल्हार
नदियां बहती कल कल करती
कोई नया संगीत सुनाती
सावन आते मेघ बरसाते
बागो में मोर झूमते
प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा
चहुं ओर अमृत बरसाती।।
• पेङ लगाओ रे ~ अवि राठौड़
चारो तरफ मच रहा हाहाकार,
ख़त्म हो रहा पूरा संसार ।
अब तो सब जगह यही है पूकार।।
मंदिरों में बँटे अब यही प्रसाद,
एक पौधा और थोड़ी सी खाद
हर मस्जिद से यही अजान,
दरख्त लगाए हर इंसान ।
अब गूंजे गुरूद्वारों में वानी,
दे हर बंदा पौधों को पानी ।
सभी चर्च दें अब ये शिक्षा,
वृक्षारोपण यीशु की इच्छा ।
नित हो रहीं हैं सांसें कम !
आओ पेड़ लगाऐं हम !
• आस ~ माजिदा खान
न रुका है न रुकेगा
वक्त बुरा है बीत जाएगा
आने वाला कल बेहतर होगा
यही आस लगाए बैठे हैं।
ऊँची इमारतों की खातिर
हरियाली को नष्ट करने वाले
आज आक्सीजन की
आस लगाए बैठे हैं।
तरक्की की दौड़ में
जिन्हें करते रहे दरकिनार
आज उन्हीं अपनों से मिलने की
आस लगाए बैठे हैं।
अनदेखी सी बेड़ियों में जकड़े हुए
घर से निकलने को बेताब
कर लेंगे पार यह मरहला भी
यही आस लगाए बैठे हैं।
एक सुबह वो भी आएगी
जब पलट जाएंगे पांसे वक्त के
खुशियों की नई बहार आएगी
यही आस लगाए बैठे हैं।
• गज भर जमीन ~ हुमांशु साहू
प्रेम को आश्रय दिया ,
पथिक को आगे बढ़ने का साहस
और पूंजीपतियों के धन के लिए
लुटा दिया तन का अंग – अंग;
पर दे न पाया कोई उसे
गज भर जमीन का विश्वास कि
बचा रहेगा उसका अस्तित्व भी
दो पैर वालों के साथ के साथ ही ,
न पूंजीपति, न पथिक और न ही प्रेमी ।
• प्रकृति ~ मुकेश कुमार
इस प्रकृति की भी अपनी अलग माया है,
इनको वारों से अब तक कौन बच पाया है,
जमाने से इस प्रकृति को हम बीच-बीच में कोसते हैं,
इसके बावजूद इनकी अपनी अलग निराली माया है ।
हम सब अभी गर्मी से खूब परेशान हैं,
जिनको देखो अब प्रकृति से हैरान है,
कभी-कभी बिजली है चली जाती फिर देर से आती,
इन्वर्टर उस समय साथ देता, यह उसका एहसान है ।
प्रकृति ने पूरी मानव जाति के आंखों को खोला है,
इशारों से वह सब कह जाती,
किसी को कुछ ना बोला है,
आओं मिलकर प्रकृति के संतुलन के लिए कार्य करें,
अभी भी गर हम ना संभलें, तो फिर यह शोला है ।
प्रकृति ने अपनी गोद में हमें, संभाले रखा है,
यह परिवार से बढ़कर हमारा मित्र है, सखा है,
यह आंधी, भूकंप, बाढ़, तबाही है लाती,
इसके स्वाद को पूरी मानव जाति ने चखा है।
आओ मिलकर पेड़ लगाएँ,
खलिहानों को सुंदर बनाएँ,
प्रकृति के घटकों को बेहतर बनाएँ,
ऐसा करके हम अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाएँ ।
• पेड़ हूँ मैं, फल दूँगा, मत काटो~ प्रदुम्न उपाध्याय
पेड़ हूँ मैं, फल दूँगा, मत काटो
भविष्य हूँ मैं, कल दूँगा, मत डाटों
जो करता हूँ करने दो
गलतियों से ही सही, मुझे तुम सीखने दो
मत डाटों, बच्चा हूँ मैं
करने दो जो, करता हूँ मैं
पेड़ हूँ मैं, फल दूँगा, मत काटो
मुझमें है क्या?. एक बार देखो तो सही
बच्चा हूँ मैं, करता हूँ जो, करने दो वही
बस तुम देखो, भटकता हूँ अगर, तो तुम रोको
करता हूँ जो करने दो, हर बात पर मुझे तुम मत टोको
मुझमें है क्या?. एक बार तो देखो – २
मैं किसलिए बना हूँ, मैं क्या कर रहा हूँ और मैं क्या कर सकता हूँ
एक बार इसपे विचार करो, प्लिज़ तुम मुझसे प्यार करो
बच्चा हूँ मैं, कल दूँगा, एक बेहतर कल दूँगा
मुझे तुम मत काटो, पेड़ हूँ मैं,
फल दूँगा, मुझे तुम मत काटो
• पर्यावरण हमारा हो अच्छा ~ तुलसी सोनी
हो रहा है पर्यावरण में परिवर्तन
मानव कर रहा है प्रकृति का हनन
हो रहा है नदियों से रेतों का खनन
जोरों पर है मृदा अपरदन
हो रहा है जंगलों का पतन
प्रदूषण से ग्रसित हैं हर वतन
पर्यावरण दिवस पर ले हम वचन
करेंगें पर्यावरण व वृक्षों का जतन
हे मानव! करो ना प्रकृति का हनन
हमारा धर्म हो पर्यावरण की रक्षा
हमारा कर्म हो पर्यावरण की सुरक्षा
पर्यावरण हमारा हो अच्छा
हां पर्यावरण हो अच्छा
हां पर्यावरण हो अच्छा।
• देवता पेड़ ~ खुशी प्रसाद
कहीं पेड़ कट रहा है,
लोगों में बांट रहा है।
कहीं आग जल रही है,
यह पानी उबल रहा है।
धूंआ यह बढ़ रहा है,
यह सर पर चढ़ रहा है।
इंसान कितना लालची हो जाए,
पेड़ काटकर लकड़ी बनाएं।
और उसे चूल्हे में जलाए,
उसकी आह से खाना पकाए।
मन तृप्त करके वह खाए,
वन विनाश कर घर बनाएं।
निर्दोषों को बेघर कर आए,
यह पेड़ भी कितना पागल है,
हम को जीवनदान कराएं।
शुद्ध हवा हमको दे जाए,
भूखे का मन तृप्त कराएं।
उसको अपने फल खिलाए ,
धूप जो रंग अपना दिखलाएं।
सभी पेड़ से छाया पाय,
स्वादिष्ट फल हमें दे जाए।
ठंडी हवा हम पर बरसाए,
उससे प्रदूषण भी रुक जाए।
पर्यावरण को वह संतुलित कराएं,
हमें भी कुछ करना होगा,
वन विनाश हो रहा है।
पेड़ों का नाश हो रहा है,
प्रदूषण बढ़ रहा है।
तेजी पकड़ रहा है,
आओ मिलकर सोचे उपाय।
इसकी तरफ एक कदम बढ़ाए,
सबको हम जागरूक कराएं।
बात दिलों में घर कर जाए,
कि आओ मिलकर पेड़ बचाएं,
हर जगह दो पेड़ लगाएं।
• उन्मुक्त प्रकृति प्रेम ~ जय अग्निहोत्री ‘यथार्थ’
बरसे जो बारिश उन्मुक्त गगन से,
प्रेम का अंकुरण होने दो।
उन्मुक्त गगन के नीचे,
उन्मुक्त प्रेम पनपने दो।
लगने दो पंख प्रेम में,
पक्षियों सा उड़ने दो।
हवा के हर झोंके में,
उन्मुक्त प्रेम लिपटने दो।
खिलने दो फूलों को,
इत्र सा महकने दो।
मांडने दो भौरों को,
सुरों की ताल मिलाने दो।
बहने दो नदियों को,
प्रेम का संगम मिलाने दो।
निकलने दो चाँद को,
चकोर को प्रेम जगाने दो।
• आओ पर्यावरण दिवस मनाएं ~ अतुल पाठक “धैर्य”
आओ पर्यावरण दिवस मनाएं,
पहले इसे बचाने की कसम खाएं।
पेड़ कभी न काटे जाएं,
गर स्वार्थी मानव इंसान कभी बन पाएं।
परिवेश में पेड़-पौधे पशु-पक्षी और जन-मानस सब एक हैं,
फिर क्यों नहीं करते प्रेम सभी को और क्यों नहीं बनते नेक हैं।
हम लोग अपनी और अपने परिवार की देखभाल तो कर लेते हैं,
पर कभी हमारे परिवेश की सोच न पाते हैं।
आज बाग देखने को नहीं मिलते,
हरियाली सुख से वंचित रह जाते हैं।
आख़िर हम पेड़ क्यों नहीं लगाते हैं,
जबकि पेड़ ही हमें फल फूल सब्जी यहां तक कि हमें प्राणवायु ऑक्सीजन छाँव भरा सुकून इतना सब कुछ तो देते हैं।
पशु पक्षियों को मार काट कर क्रूर मानव घोर कलियुग परिभाषित करते हैं,
अब हाय कोरोना हाय कोरोना तौबा तौबा क्यों करते हैं।
सज्जन बनकर इंसान बनो,
प्रकृति से निश्चल प्यार करो।
क्या कुछ नहीं देती प्रकृति हमको,
पर कभी हमसे है क्या लेती
सदा ही देती सदा ही देती।
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SWARACHIT2925I – आओ पर्यावरण दिवस मनाएं
SWARACHIT2925H – उन्मुक्त प्रकृति प्रेम
SWARACHIT2925G – देवता पेड़
SWARACHIT2925F – पेङ लगाओ रे
SWARACHIT2925E – आस
SWARACHIT2925D – गज भर जमीन
SWARACHIT2925C – प्रकृति
SWARACHIT2925B – पेड़ हूँ मैं, फल दूँगा, मत काटो
SWARACHIT2925A – पर्यावरण हमारा हो अच्छा
21SAT02222- प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा