दोहा एक मात्रिक छंद है- चार चरणोंवाला प्रसिद्ध छंद। इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। दोहे में चारों चरणों को मिलकर कुल ४८ मात्राएं होती हैं। द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है तथा इसके विषम चरणों के प्रारंभ में स्वतंत्र जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है।
दोहे लिखना बहुत ही आसान है, बस मात्राओं का ध्यान रखें। इसकी रचना करते समय एक बार इसे जरूर गायें और उसके बाद लिखकर मात्राओं की जांच करिए।
मात्राएं: लघु एवं गुरु- ह्वस्व को लघु वर्ण एवं दीर्घ को गुरु वर्ण कहा जाता है। ह्वस्व अक्षर का चिन्ह ‘।’ है जबकि दीर्घ का चिन्ह ‘s’ है।
लघु (१)- अ, इ, उ एवं चन्द्र बिंदु वाले वर्ण लघु हैं।
गुरु (२)- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वर, विसर्ग युक्त वर्ण गुरु होते हैं। संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण भी गुरु माना जाता है।
सूफी संत अमीर खुसरो का एक दोहा उदाहरणार्थ प्रस्तुत है-
गोरी सोयी सेज पर, मुख पर डारे केस। चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस।।
पहला पद
चरण १: गोरी सोयी सेज पर (मात्राएं: ४-४-३-२ =१३)
चरण २: मुख पर डारे केस (मात्राएं: २-२-४-३ =११)
दूसरा पद
चरण ३: चल खुसरो घर आपने (मात्राएं: २-४-२-५ =१३)
चरण ४: रैन भई चहुँ देस (मात्राएं: ३-३-२-३ =११)
दोहे लिखती हूं पर सलीके सै सीखकर लिखना चाहती हूं। आशा है सफल होउंगी।
बहुत अच्छी जानकारी।