हमारे सामने कई विकट परिस्थितियाँ निर्माण हो जातीं हैं जिनका सामना धैर्य के साथ करना पड़ता है। कलमकार डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘शिक्षक’ का इन परिस्थितियों के बारे में जो मत है वह उन्होंने अपनी रचना में प्रकट किया है।
परिस्थितियाँ तरह तरह की होती है।
सुख की भी परिस्थितियाँ होती है और दु:ख की भी।
सुबह की भी होती है और शाम की भी।
परिस्थितियों के कई रंग होते हैं।
परिस्थितियाँ जीवन को निखारने का कार्य करती है।जो व्यक्ति परिस्थितियों को अपने बस में कर लेता है।
सच में वही व्यक्ति पुरुषार्थी होता है।
सिद्धांत तो सभी व्यक्ति पढ़ते हैं।
जीवन के ककहरे से सबको रुबरु होना पड़ता है।कुछ अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह के
अंतिम दरवाजे पर जाकर दम तोड़ देते है।
तो कुछ पाण्डव बनकर लाक्षागृह से
निकलने में सफल हो जाते हैं।कुछ की परिस्थितियाँ बड़ी भिन्न होती है।
जो कर्ण की तरह शापित हो
निष्पाप हो कर भी जीवन दांव पर लगाते हैं।
कुछ की परिस्थितियाँ ऐसी होती है
कि सबल होने के बावजूद भी
भीष्म की तरह शरशैय्या पर सोना पड़ता है।जो परिस्थितियों को समझ जाता है और
उसके अनुरूप अपनी रणनीति का निर्माण करता है,
वही मानव कहलाता है और
दुनिया उसी का लोहा मानती है।~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त ‘शिक्षक’
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