जड़ की परवाह

जड़ की परवाह

जड़ से जुड़े रहे है जो भी,
वो ही सदा बड़े हुए है।
छोड़ सहारा सब गैरों का,
अपने पैरों खड़े हुए है।।

हमने देखा है पेड़ों को,
जमीं में अपनी जड़े जमाएं।
सर्दी, गर्मी, वर्षा के दिन,
आंधी, तूफां हिला न पाएं।।

चिड़ियां के पंख, उड़ती नभ में,
लेकिन लौट धरा पर आती।
मिट्टी के संग मिलकर रहना,
बात पत्ते की है अपनाती।।

और एक हम जिनको नही है,
अपने कल की, जड़ की परवाह।
जड़ को भूलें, खाक हुए है ,
जिनका है इतिहास गवाह।।

जिनको हुआ गुमां, जड़ छोड़ी,
वो गुम कोने पड़े हुए है।
हम सब कल से और आज तक,
जड़ पकड़े ही बड़े हुए है।।

~ मुकेश बोहरा अमन

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