संत शिरोमणी सेन महाराज की ७२०वीं जयंती

संत शिरोमणी सेन महाराज की ७२०वीं जयंती

19 अप्रैल 2020: संत शिरोमणी सेनजी महाराज की 720 वी जयंती पर विशेष लेख

सेनजी महाराज का इतिहास
संहिता 132 के आधार पर श्री सेनजी महाराज की जन्म तिथि बैसाख बदी 12 विक्रम संवत 1357 मानी गई है। पूर्व भाद्रपक्ष नक्षत्र तुला लगन ब्रह्म योग माना गया हैं। इतिहासिक शोध के आधार पर मध्यप्रदेश में बान्धवगढ़ जन्मस्थान प्रमाणित माना है। इसका पता हमें भक्तमाला – राम सीतावली में रीवा नरेश रघुराज सिंह जी ने निम्न रूप स्पष्ट किया है –

“बान्धवगढ़ पूरब जो गायों,
सेन नाम नापित तह पायों
ताकि रहे सदा यही रीति
करत रहे साघन सो प्रीति
तह को राजा राम घेला
बरन्यो जेही रामानंद को चेलों
करे सदा तिनकी सेवा का ही,
मुकर दिखावें तेल लगाई”

रीवा राज्य के राजाराम या रामचंद्र का समय संवत 1611 से 1648 तक माना गया है। इसी अवधि में रामानंद जी से सेनजी ने दीक्षा ली और सेन भक्त कहलायें। भगवत् भक्ति में लीन सेन जी को प्रभु में देखकर नाई का रूप धारण कर बांधवगढ़ में महाराज रामसिंह का क्षौर कर्म करने वाली घटना भी इसी संदर्भ में प्रसिद्ध हुई। जो संक्षिप्त में इस प्रकार है – कि जब श्री सेन अपने घर में भगवान का कीर्तन और संतसंघ में मग्न थे। तब उन्हें ध्यान न रहा नित्य कर्म की भांति महाराजा रामसिंह की हजामत व तेल मालिश करना है। उधर महाराजा सेन जी की प्रतिक्षा कर रहे थें। उनके समय पर नहीं पहुचने से बैचेनी और क्रोध आ रहा था। अपने दूतों को उन्हें लाने भेजा। दूतों को देखकर सेन जी की पत्नि ने उन्हें मना कर दिया कि वे घर पर नही हैं क्योंकि उस समय वे भक्ति में लीन थे । दूत चले गये और घटना राजा को सुना दी । सेन भक्त को न आता देखकर महाराजा का क्रोध और बढ़ा और उन्हे जेल में बन्द कर नदी में बांधकर फैंक देने या सूली पर चढा़ने का आदेश दे दिया। भक्त सेन अपनी भक्ति में लीन थे । ऐसी अवस्था में भगवान ने स्वयं नाई का रूप धारण कर राजमहल में पहुंचे राजा ने जब उन्हें देखा तो आग बबूला हो गये परंतु ज्यों ज्यों सेन जी उनके पास आते गये उनका क्रोध दूर होता गया और पास आने पर देरी का कारण भी नही पूछ सके। सेन भक्त के रूप में भगवान ने वही कार्य किया जो सेन करता था। राजा को उनके स्पर्श से नई अनुभूति हुई और सुख का अहसास हो रहा था। उन्होंने प्रसन्न होकर सेन के जाते वक्त पेटी में सोने की एक मोेहर डाल दी। सेन सीधे घर आये और अपनी रछोनी (हजामत की पेटी) खुंटी पर टांग दी। कहते है उस घर में भगवान के कुमकुम के पगलिये मंड गये और वे भक्त को देखते हुए अपने धाम चले गये। सेन जी महाराज को इस अद्भूत घटना का कुछ भी ज्ञान नही था। वे जब भगवत् भक्ति से निवृत हुये तो दिन काफी चढ़ चुका था। वे घबराये, हाॅंफते हुए अपनी पेटी को लेकर राजा के महलों में पहुॅचे। राजा ने अपने यहां दुबारा आता देखकर आश्चर्य के साथ चकित होते हुए पूछा कि अभी अभी तो आप आकर गये थे आज दुबारा कैसे आये, सेन जी ने सारी बात बतला दी। इस पर राजा ने सेनजी की रछोनी खोली और देखा कि वह मोहर जो राजा ने दी थी वह उस में है। यह देखकर राजा और सेन दोनों को पूर्ण विष्वास हो गया कि भगवान ने ही अपने भक्त कि लज्जा रखने के लिए सेन का रूप धारण कर राजा की सेवा की है। सेन कि उपस्थिति में ही राजा के शरीर में एक अदभुद सा परिवर्तन होने लगा उसके शरीर का कोढ धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और राजा का शरीर निरोगी की तरह चमकने लगा। राजा को आत्मलानि हुई और वह तुरंत उठकर सेन के चरणों में गिर पडें और बार-बार क्षमायाचना करने लगेे। उन्होनें सेन भक्त के चरणों को धोया। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार श्री कृष्ण ने सुदामा के चरणो का धोया था। सेन भक्त अपनी भक्ति में दिन रात व्यस्त रहने लगे। भजन कीर्तन सत्संग ही उनका जीवन था। अनेको भक्त उनके घर में उपस्थित होकर भगवत् भक्ति का आनन्द लेते थे। सेन भक्त की भगवत् भक्ति का ये प्रमाण अभी दर्शाया गया है।

ऐसे कई प्रमाण उनके भक्ति संबंध में प्राप्त हुये है। उन सभी का उल्लेख करना यहां संभव नहीं होगा। अतः मैं आपका ध्यान उनके द्वारा रचित भजन की ओर आकषित कर उनकी महानता का परिचय देना अपना कर्तव्य मान रहा हूॅ। उन्होंने संकेत दिया है कि “जन्म लोक न्हीवीन चे उदरी” अर्थात नायिन माता के गर्भ से मेरा जन्म हुआ है। जिनका गौत्र बनभैरू (गौहिल) था। पिता का नाम श्री देवीदास जी, माता कुवंरबाई, पत्नि गजरा देवी और उनके दो पुत्र व एक पुत्री का उल्लेख भी मिलता है। सेन जी महाराज रामानंद जी के समावत सम्प्रदाय से दीक्षित थे। वे श्री राम सीता और हनुमान जी की उपासना करते थे। अपने भजनों में उनका गुणगान करते थे। वे एक उच्च कोटी के भक्त कवि माने गये है। उन्होंने हिन्दी मराठी गुरुमुखी और राजस्थानी में सेन सागर ग्रंथ रचा जिसमेें 150 गीतों का उल्लेख मिलता है। गुरुग्रंथ साहब में भी श्री सेन जी के कुछ पद संकलित है। भक्त सेन ने उस समय की एकता व प्रेम मूलक समाज को अपने भजनों में माध्यम बनाये रखा।

लेखक- विनोद सेन, सिरोंज
अध्यक्ष, मध्यप्रदेश केश शिल्पी कांग्रेस | सचिव, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी

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