कैसा यह खेल है जो विधाता ने रचा है। विधाता का खेल तो देखिए कि आज इंसान घरों में कैद है और प्रकृति, पशु-पक्षी सब आजाद हैं। कहीं यह प्रकृति और विधाता का सम्मिलित खेल तो नहीं है, हम इंसानों को सबक सिखाने का, हमें यह बताने का कि प्रकृति से ऊपर कुछ भी नहीं है। यदि हम प्रकृति का दोहन करेंगे तो प्रकृति भी हमारा शोषण करेगी। यदि हम प्रकृति का क्षरण करेंगे तो प्रकृति भी हमारे लिए मरण का संदेश लेकर आएगी। कभी किसी वायरस के बहाने तो कभी भूकंप और सुनामी के बहाने।
इस घटना ने संपूर्ण मानव जाति को हिला दिया है और यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि विश्व में महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका भी आज एक छोटे से वायरस के सामने बौना पड़ गया है। इस एक घटना से संपूर्ण मानव जाति को यह सबक लेना होगा कि हम प्रकृति का दोहन ना करें बल्कि उसका संरक्षण करें, उसकी पूजा करें।
आज मुझे भारतीय संस्कृति पर अपार गर्व है। आज मुझे समझ आया कि क्यों भारतीय संस्कृति में प्रकृति को पूजा जाता है, क्यों भारतीय प्रकृति के कण-कण की पूजा करते हैं फिर चाहे अंतरिक्ष के नवग्रह हो या धरती के पेड़-पौधे और नदियाँ हो। भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई वृक्ष नहीं है जिसे आदर का पात्र ना समझा जाता हो, ऐसी कोई नदी न होगी जिसे माता ना कहा जाता हो। कवि काका कालेलकर ने तो नदियों को लोकमाता तक कह दिया है। भारत तो संस्कृति की सनातन धरा है। जहाँ प्रकृति को प्राचीन काल से ही पूजा जाता रहा है और यही परंपरा हमें भी निभानी होगी। यही वह देश है जो प्रकृति को अपना जीवनदाता मानता है परंतु अन्य देशों का क्या जो जीवनदायिनी प्रकृति से ही खिलवाड़ कर रहे हैं और उसे खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था कि भारत की हर एक नदी हमारे लिए गंगा है, हर कंकड़ में शंकर है। ऐसी सोच रखने वाले भारत से विश्व के अन्य देशों को सीख लेनी होगी।
अब जरूरत है संपूर्ण मानव जाति को यह बात समझने की कि जब हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे तभी हम भविष्य में मानव जाति को बचा पाएँगे। अन्यथा प्रकृति और विधाता का यह सम्मिलित खेल संपूर्ण मानव जाति को विनष्ट कर देगा।
~ लेखिका: शिम्पी गुप्ता, होशंगाबाद
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