लेखकों की आपबीती

मेरा 2020 का सफर

वाह! क्या साल रहा 2020!
नहीं मतलब क्या-क्या नहीं दिखा गया। जितना जिन्दगी के बाकी बसन्त में कभी नहीं देखने को मिला, उतना ये साल अकेला दिखा गया। क्या अमीर-क्या गरीब, क्या रंगमंच-क्या सच्चाई, क्या सरकारी-क्या निजी, क्या मित्र-क्या शत्रु और क्या जरूरत-क्या आपूर्ति? समझ आया कुछ? मैंने जहाँ से जो समझा, बता रहा हूँ। ये साल हमें नकारात्मकता और अपनों से बिछोह के लिये याद रहेगा, ये साल कठिन दौर और बदतर हालात के लिये याद रहेगा, ये साल हमेशा खलनायक की तरह हमारी यादों में रहेगा।

लेकिन आपका तो पता नहीं पर मैंने एक पुलिसवाला होने के नाते हर पल नौकरी की। बाहर के हालात करीब से देखे। अपनों की अपने प्रति हरदिन चिन्ता देखी। सुबह,दोपहर,शाम सबके फोन के जबाब दिये। उच्चतम स्तर का स्वास्थ्य रखने की कोशिश की। खुद को सुरक्षित रखने के लिये लड़ा और लोगों को सुरक्षित रखने के लिये उनसे तर्क किये और बेतुकी बहस में कई बार खुद को असहाय पाया। कभी-कभी लगता था कि ये लोग घर पर रूक क्यों नही रहे हैं? हमसे कह दो तो हम 03 माह तक घर से न निकलें पर कुछ मजबूरियाँ सबकी होती है।

मैंने अपने शहर में लोगों को एकजुट देखा, जरूरतमंदों की मदद करते देखा। खाने और चाय पानी का इन्तजाम करते देखा। बहुत से लोग मिले मुझे इस मुश्किल वक्त में जो हम पुलिसवालों के लिये चाय, जूस या बिस्कुट लाते थे। मैं व्यक्तिगत अपनी बताऊ तो मैंने कभी खाना नहीं बनाया मगर इन हालातों में जब जान पर बन आयी तो लैमार्क और डार्विन सब याद आ गये। उपार्जित और विकासवाद के सब सिद्धांत मेरे मस्तिष्क पटल परएकदम से चमकने लगे। मैं रातोंरात महामानव बन गया था और एक उम्दा रसोईया भी। 12 घन्टे की ड्यूटी के बाद भी मैं अपना दोनों वक्त का लाजवाब खाना खुद बनाता था। शुक्रगुजार हूँ अपनी पत्नी का, उसको जब भी फोन किया, फोन पर ही पूरी सब्जी बनबा दी और इस भाषण कोरोनाकाल में जीवित रहने में मेरी मदद की।

भाई साहब चाय भी मैं खुद बनाता था, दूध भी हल्दी वाला रोज रात को पीता था। मतलब समझ रहे हैं आप? मैं अमर होने के चक्कर में था। तीन महीने तो मैंने अपने शरीर की वो खुशामद की है कि जितनी मेरे माँ-बाबू जी ने बचपन में मालिश नहीं की होगी और ससुराल में इतनी आवभगत नहीं हुई होगी। मैं रोज अकेला दूरी बना के 2.5 किमी दौड़ रहा था, ये तो रोज का ही था। अमर होने की राह में रोज आधे घन्टे योग करता था और हाथ धो-धो के तो मैंने लालिमा गायब कर दी थी नसों की। नथूनों में सरसों का तेल भरकर में रोज फुफकारता था। वर्दी रोज धुलती थी मेरी खुद। सलाद इतना खाया की कभी-कभी सब्जी खत्म हो जाती पर सलाद नही निबटता था।

दूसरों को छोड़िए खुद को बिना हाथ धोये छूना बन्द कर रखा था। घर तो जाना ही बन्द कर दिया था बिल्कुल। इस तरह बड़ी मुश्किल से अक्टूबर-नवंबर तक मैं नौकरी को सुचारू और खुद को सुरक्षित रखते हुये पहुंच गया। इस बीच कई बार 50 सेकेण्ड तक साँस रोकी, जुकाम में नाक बहने से रोकी ताकि सामने वाले को पता न चल जाये, कई बार तो झींक रोकी क्योंकि खुद को दूसरों की नजरों से बीमार, बहुत बीमार देखना अति कष्टदायक होता है और हां गर्म पानी के गरारे, नमक के पानी का कुल्ला सच में मैंने अपने सर के पीछे खुद का चक्र बना लिया था।

इस तरह से इस साल के अन्तिम दिन को देख पा रहा हूँ। समझ नहीं आ रहा बधाई दूँ या कोई सलाह दे दूँ। क्योंकि साल का अन्त मेरे लिये भयावह रहा है। 15 दिसम्बर को मेरा एक दुर्घटना में पैर टूट गया और अब तक बिस्तर पर हूँ और आगे भी दो माह रहूँगा। गनीमत मानिये और गंगा मैया व राधा रानी की कृपा भी कि सुरक्षित हूँ। बाकी चलिये ये साल तो जीत लिया हमने, 2021 और देखते हैं अब। ख्याल रखिये, सुरक्षित रहिये। राधे राधे! और हाँ शराबियों से बचकर रहिये।

~ लेखक : सुमित सिंह पवार “पवार”
उत्तर प्रदेश पुलिस, आगरा


Comments

One response to “लेखकों की आपबीती”

  1. Suniti Kesharwani Avatar
    Suniti Kesharwani

    बहुत अच्छा

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