नाथपंथ के प्रेरणाश्रोत भगवान शिव हैं। हिन्दू धर्म में चार प्रमुख धार्मिक संप्रदाय हैं – वैदिक, वैष्णव, शैव, स्मार्त। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही ‘नाथ’ एक उपसंप्रदाय है। नाथपंथ में साधक को प्रायः योगी, सिद्ध, अवधूत व औघड़ कहा जाता है। नाथ-साधु हठयोग पर विशेष बल देते थे।
शिवजी के शिष्यों ने नाथ परंपरा को आगे बढ़ाने का महत्तवपूर्ण कार्य किया है। इनके बाद भगवान दत्तात्रेय ने इस परंपरा की बागडोर थामीं और इसका विकास किया। भगवान भोलेनाथ को नाथ परंपरा मे आराध्य देव और आदिनाथ तथा दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। कई महान संत हुए हैं जिन्होने अनेकों सिद्धियाँ प्राप्त कर जनकल्याण में खुद को समर्पित किया। इस दिशा में आगे आनेवाले प्रथम योगी मत्स्येन्द्रनाथ जी थे।
प्राचीन समय से अस्तित्व में रहे नाथ संप्रदाय को मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ ने एक व्यवस्था प्रदान कर संतो और शिष्यों को संगठित किया तथा पंथ को मजबूती दी। इन दोनों को तिब्बत बौद्ध-धर्म में महासिद्ध माना जाता है। महंत गोरखनाथ जी नाथ संप्रदाय के प्रमुख सिद्ध योगी और गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी के शिष्य थे। गोरखनाथ जी के कई शिष्य हुए, उनमें से तो कुछ तो गुरु गोरखनाथ की ही भाँति सिद्ध और प्रतिभावान थे और इन सब ने मिलकर नाथ परंपरा को नई उचाइंयों पर पाहुचाया। इन्होने नाथपंथ में कई उपशाखाएं बनाईं जिनसे ‘गोरखपंथी’ कहा जाता है।
नाथ साहित्य
भगवान शिव के उपासक नाथों के द्वारा रचित साहित्य नाथ साहित्य कहलाता है। सिद्धों के महासुखवाद के विरोध में नाथ पंथ का उदय हुआ। नाथों ने सिद्धों द्वारा अपनाये गये पंचमकारों, नारी भोग, बाह्याडंबरों तथा वर्णाश्रम का विरोध किया और योगमार्ग तथा साधना का अनुसरण किया। हिन्दी और संस्कृत में गोरखनाथ की कई साहित्यिक रचनाएं जैसे – अमवस्क, अवधूत गीता, गोरक्षकौमुदी, गोरक्ष चिकित्सा, गोरक्षपद्धति, गोरक्षशतक, सबदी, पद, प्राण, संकली, नरवैबोध आदि हैं। चौरन्गीनाथ, गोपीचन्द, भर्तृहरि आदि नाथ पन्थ के प्रमुख कवि हैं।
गोरखनाथ के पद
कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी।
बह्मना के घरि रान्डी आछे रान्डी सांडी हांडी।।
राजा के घर सेल आछे जंगल मंधे बेल।
तेली के घर तेल आछे तेल बेल सेल।।
अहीरा के घर महकी आछे देवल मध्ये ल्यंग।
हाटी मध्ये हींग आछे हींग ल्यंग स्यंग।।
एक सुन्ने नाना वणयां बहु भांति दिखलावे।
भणत गोरष त्रिगुंण माया सतगुर होइ लषावे।।
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हिरदा का भाव हाथ मैं जानिये
यहु कलि आई षोटी।
बद्न्त गोरष सुनो रे अवधू
करवे होइ सु निकसै टोटी।।
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नाथ कह्तां सब जग नाथ्या, गोरष कह्तां गोई
कलमा का गुर महंमद होता, पहलें मूवा सोई।।
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कैसे बोलों पंडिता देव कौने ठाईं, निज तत निहारतां अम्हें तुम्हें नाहीं।
पषाणची देवली पषाणचा देव, पषाण पूजिला कैसे फीटीला सनेह।
सरजीव तैडिला निरजीव पूजिला, पापची करणी कैसे दूतर तिरिला।
तीरथि तीरथि सनान करीला, बाहर धोये कैसे भीतरि मेदीला।
आदिनाथ नाती म्छीन्द्र्नाथ पूता, निज तत निहारे गोरष अवधूता।।
गोरखनाथ के संप्रदाय की मुख्य शाखाएं
कंठरनाथ, पागलनाथ, रावल, पंख या पंक, वन, गोपाल या राम, चांदनाथ कपिलानी, हेठनाथ, आई पंथी, वेराग पंथ, पावनाथ, घजनाथ, गंगनाथी, सत्यनाथ, दरियानाथ, धर्मनाथ, माननाथ, नाटेश्वरी
नाथ संप्रदाय के मूल प्रवर्तक- नवनाथ
मत्स्येन्द्रनाथ, गोरक्षनाथ, भर्तृहरिनाथ, रेवणनाथ, नागनाथ, चर्पटनाथ, गहनिनाथ, जालंधरनाथ, कृष्णपाद