भारत के संतों द्वारा रचित कुछ दोहा काव्य जिनके अर्थ सभी को भली भाँति पता हैं। इन अनमोल दोहों में जो ज्ञान/शिक्षा की बातें बड़ी सरलता से बताईं गईं वह अतुलनीय है।
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान॥
~ वृंददास
प्रेम प्रेम सब कोऊ कहत, प्रेम न जानत कोई।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोई॥
~ रसखान
पहिला नाम खुदा का, दूजा नाम रसूल।
तीजा कलमा पढ़ि नानका, दरगाह परे कबूल॥
~ गुरु नानक देव
राम नाम की लूट है, लूट सकै तो लूट।
अंतकाल पछतायेगा,जब प्राण जायेगो छूट॥
~ तुलसीदास
बावन अक्षर सप्त स्वर, गल भाषा छत्तीस।
इतने ऊपर हरि-भजन, अनअक्षर जगदीश॥
~ संत रज़्जब
हाथां सै उद्यम करैं, मुख सौ ऊचरै राम।
पीपा सांधा रो धरम, रोम रमारै राम॥
~ संत पीपा
बखना हम तो कहेंगे, रीस करो मत कोई।
माया अरु स्वामी पणी, दोइ-दोई बात न होइ॥
~ संत बखना
जहाँ कलह तहँ सुख नहीं,कलह सुखन को सूल।
सबै कलह इक राज में,राज कलह को मूल॥
~ नागरीदास
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
~ बिहारीलाल
खुसरो ऐसी पीत कर, जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने, जल जल कोयला होय॥
~ अमीर खुसरो
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
~ रहीमदास
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर।।
~ कबीरदास
ऐसा चाहूँ राज मैं, मिलै सबन को अन्न।
छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।
~ रैदास
अमिय हलाहल मदभरे, सेत स्याम, रतनार।
जियत मरत झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत इक बार॥
~ रसलीन
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कह गए, सब के दाता राम॥
~ मलुकदास
कोटी-कोटी मतिराम कहि, जतन करो सब आय।
फाटे मन अरु दूध मैं, नेह नहीं ठहराय॥
~ मतिराम
पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी, याद पड़ै जब नाम।
लगन महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम॥
~ पलटूदास
सतगुरु संगति नीपजै, साहिब सींचनहार।
प्राण वृक्ष पीवै सदा, दादू फलै अपार॥
~ दादूदयाल