भगवन श्रीराम की भक्ति में अनेक कवियों ने काव्य रचनाओं की प्रस्तुति की है। राम महिमा का वर्णन करने के लिए कई महान ग्रन्थों की रचना हुई है। रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं जिनकी रामचरितमानस हिंदी साहित्य की एक महान कृति है। लोकभाषाओं और छंदों में रामकथा को कई कवियों ने लिखा है।
संत सरल चित जगत हित, जानि सुभाउ सनेहु।
बालबिनय सुनि करि कृपा, राम चरन रति देहु।१।
~ तुलसीदास
तुलसीदास जी कहते हैं कि संत पुरुष अत्यन्त सरल चित्त वाले, कल्याणकारी, दयालु, और निर्मल स्वभाव वाले होते हैं। उनसे विनती है कि मुझ पर कृपा करें जिससे श्रीराम के चरणों में मेरा मन भक्तिमय हो सके।
कबीर निरभै राम जपु, जब लगि दीवै बाति।
तेल धटै बाती बुझै, सोवैगा दिन राति।२।
~कबीरदास
कबीर कहते हैं कि जब तक शरीर रूपी दीपक में प्राण रूपी वर्तिका विद्यमान है अर्थात जब तक जीवन है, तब तक निर्भय होकर राम नाम का स्मरण करो। जब तेल घटने पर बत्ती बुझ जायेगी अर्थात शक्ति क्षीण होने पर जब जीवन समाप्त हो जायेगा तब तो तू दिन-रात ही सोएगा अर्थात मृत हो जाने पर जब तेरा शरीर निश्चेतन हो जायेगा, तब तू क्या स्मरण करेगा?
ऐसे श्रवण सुनत हुइ, सुनो ग्यान बिग्यान।
पीछे धारो परसराम, आत्म अंतर ध्यान।३।
~ परसराम
परसरामजी कहते हैं कि काम तभी सार्थक होते हैं जब मनुष्य ज्ञान-विज्ञान कि बातें सुनता है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद आत्म-साधना करनी चाहिए, उस ज्ञान से अपनी आत्मा और अन्तर्मन शुद्ध करो जिससे तुम्हारे परिसर में ज्ञान का प्रकाश बिखर जाएगा।
कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल।४।
~ तुलसीदास
कोसलपुर के रहने वाले स्त्री, पुरुष, बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्री रामचन्द्रजी प्राणों से भी बढ़कर प्रिय लगते हैं।
आगम निगम पुरान कहत करि लीक।
तुलसी राम नाम कर सुमिरन नीक।५।
~ तुलसीदास
तुलसीदासजी कहते हैं – राम नाम का स्मरण सबसे उत्तम होता है। यह बात तंत्र-शास्त्र, वेद, तथा पुराण आदि भी लकीर खींचकर बताते हैं, जिसकी सत्यता मिटाई नहीं जा सकती।