लॉकडाउन 2020

लॉकडाउन और मेरा अनुभव ~ शिवम झा (भारद्वाज)

किसी ने ठीक ही कहा है किस समय से बड़ा बलवान कोई नहीं है समय का चक्र कब किस ओर करवट लेगी ना कोई इस बारे में जानता है और ना कोई इस बारे में सटीक अंदाजा लगा सकता है। समय व्यक्ति के अनुकूल रहा तो उन्नति उन्नति वही प्रतिकूल हो जाए तो उन्नति से कब अवनति की और मानव जीवन अग्रसर हो जाएगा इसका कुछ कहा नहीं जा सकता।मानव चाहे जितना मर्जी शक्तिशाली प्रबल हो जाए किंतु प्रकृति के आगे कुछ भी नहीं है इतिहास से लेकर वर्तमान तक देखें तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाते हैं जब प्रकृति नहीं मानव को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिए जी हां आज भी एक ऐसा उदाहरण देखने को मिल जाता है जिसे प्रकृति का प्रकोप ही कहा जा सकता है हम बात कर रहे हैं कोविड 19 की अर्थात कोरोना वायरस की यह एक वैश्विक रूप से पूरे विश्व में फैल चुका है तथा मानव के सर्वनाश का कारण बनता जा रहा है यह एक भीषण महामारी का रूप ले चुका है इसका कोई उपचार नहीं है ना कोई इसकी दवाई है सरकार द्वारा यह निश्चित किया गया है कि इससे बचने का केवल एक ही उपाय है अपने आप को घरों में कैद कर लेना अर्थात लॉकडाउन सरकार द्वारा यह घोषणा की गई कि जब तक यह बीमारी कम ना होगा इसका प्रभाव कम ना होगा तब तक पूरे देश में लोग डाउन जारी रहेगा इसके तहत कोई कहीं भी नहीं लगा सकता बिना अनुमति के कहीं जा नहीं सकता सब अपने-अपने घरों में कैद हो चुके हैं। मानव जीवन पर लॉकडाउन का विशेष प्रभाव पड़ा है इसका प्रभाव प्रकृति पर भी उसी रूप से पड़ा है।

मानव ने लॉकडाउन के जरिए असल जिंदगी जीने का अनुभव किया है परिवार क्या है परिवार के सदस्य क्या है उनकी कीमत क्या है इन सब का पहचान लॉकडाउन के दौरान अधिक स्पष्ट हो पाई है पहले भी मानव रहता तो परिवारों में था किंतु एक मशीन की भांति अपना जिंदगी व्यतीत करता था परिवारों से कटा कटा अपने कार्यों में व्यस्त लोक डाउन की सबसे बड़ी खूबी यही रही है कि व्यक्ति को समय मिला है अपने परिवारों में जीने का रहने का तन और मन से सबसे बड़ी बात कि अपनों के बीच अपनापन का भाव अधिक हुआ लोगों के बीच सौहार्द बढ़ा।

प्रकृति पर लॉकडाउन का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है मानव मांस भक्षण आदि का आदी हो चुका था किंतु इस दौरान मांस भक्षण कम हो पाया ना के बराबर हो गए मानव प्रकृति को प्रदूषित करने में बड़ा योगदान निभाता था लॉकडाउन के चलते हैं इसमें भी काफी गिरावट आई गंगा नदी यमुना नदी बाकी नदियां हवा प्रदूषित होती थी किंतु इस दौरान इनकी प्रदूषण की मात्रा में काफी गिरावट आई है।

लॉकडाउन के चलते लोगों ने यह पहचाना कि जिंदगी को जीने के लिए जरुरते कितनी कम है उनकी आदतों पर अंकुश लगा है और यह अंकुश काफी हद तक नेक साबित होता हुआ दिखाई देता है जो लोग शराब के आदि थे उन्होंने क्या पहचाना है जिंदगी की शराब के बिना भी जी जा सकती है पूरी तरह से कम नहीं हो पाया किंतु कुछ हद तक कम जरूर हुआ है जो मानव की जरूरत थी वह काफी हद तक कम होती दिखाई प्रतीत होती है तथा लोगों ने प्रकृति के प्रकोप को पहचाना है लोगों ने यह जाना है कि किस तरह उन्होंने अपने ही द्वारा अपने ही कब्र को खोदा है।

~ शिवम झा (भारद्वाज)


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.