हम सभी में प्रेम, ईर्ष्या, दया, करुणा जैसे अनेकों भाव भरे पड़ें हैं, गुस्सा भी इसी श्रेणी में आता है। यह सारे भाव स्वाभाविक हैं और प्रत्येक स्त्री-पुरुष में समाहित हैं। इनपर नियंत्रण कर पाने की क्षमता सभी लोगों में एक समान नहीं होती है और इसी कारणवश गुस्से को सभी लोग बराबर काबू में नहीं कर पाते। कोई गुस्से पर संयम रख शांत बना रहता है तो कोई इसपर सवार हो अशांति मचा देता है। बातें छोटों हों या बड़ी, अप्रिय लगीं तो आखिरकार गुस्सा आ ही जाता है।
“क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।” ~ भगवान कृष्ण
गुस्से के प्रकोप से थोड़ा कम या ज्यादा हम सभी लोग ग्रसित हैं; सीधे शब्दों में कहें तो कोई भी इससे अछूता नहीं है। काफी सारे गुस्सैल स्वभाव के लोगों को शांत लोगों का उदाहरण देकर समझाया जाता है कि इनके जैसे बनने कि कोशिश करो। दरअसल यह स्वभाव है, जैसे हम सच या झूठ बोलने कि आदत डालते हैं ठीक उसी तरह गुस्सा होने की भी आदत डालते हैं।
लोगों से सुना होगा कि ‘अरे! ऐसी बातें सुनकर मुझे गुस्सा आ गया’, जबकि वास्तव में गुस्सा आया नहीं बल्कि उसे जताने का माहौल तैयार कर लिया गया। गुस्सा कब और कहाँ आना है, यह भी हमने सुनिश्चित किया होता है। यह गुस्सा हम हर किसी पर नहीं जताते, जहां यह लगता है कि इन लोगों पर यदि गुस्सा करूंगा तो मेरा कुछ न बिगड़ेगा, वहीं पर हमारा गुस्सा विशेष रूप से दिखाई पड़ता है। यदि हमारा मालिक हमे कोई अप्रिय बात बोल दे तो हमें बहुत गुस्सा आता है लेकिन वह मन के भीतर ही रहता है, उसे हम जताते नहीं हैं और इसके विपरीत कोई बालक हमें अपमानजनक बात कहता है तो उसे हम अपना गुस्सा दिखा भी देतें हैं।
जब हम एक स्थान पर अपने गुस्से को नियंत्रित कर सकते हैं तो हमें चाहिए कि अन्य जगहों और लोगों के साथ भी इसपर लगातार काबू हो सके। यदि हम यह समझ जातें हैं कि गुस्सा अपने आप नहीं आता बल्कि हम जब उसे आमंत्रित करते हैं तभी अशांति फैलाने के लिए धमक पड़ता है तो हम एक शांत और सहज माहौल बनाने में सक्षम होंगें। अत: संयम के साथ और क्रोध से बचकर रहना बहुत ही आवश्यक है। ऐसा होने पर ही- ‘आखिर गुस्सा आ ही जाता है’ – कहने से छुटकारा मिल पाएगा।
क्रोध अगिन घर घर बढ़ी, जलै सकल संसार।
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार।।
~ कबीरदास कहते हैं कि घर-घर क्रोध की अग्नि से सम्पूर्ण संसार जल रहा है परंतु ईश्वर का समर्पित भक्त इस क्रोध की आग से अपने को शीतल कर लेता है। वह सांसरिक तनावोंऔर व कष्टों से मुक्त हो जाता है।