तालाबंदी के बीते क्षण (संस्मरण) – इमरान संभलशाही

जब जन समुदायों की दैनंदिन दिनचर्या अचानक से ठप होने लगी। प्राण सिसकने से लगे। वातावरण सारे विस्मय होने लगे। सूरज भी फीका पड़ने लगा। चांद भी अपने बारी आने के इंतजार में सुस्ताने लगी। मौसल बेताल हो गया। पशु पक्षियों सहित सारे जीव जंतु चिंतित हो उठने लगे। आसमान का रंग गहराता चला जाने लगा। सागर सभी तरंगों से चिपटने लगे। सारी झरने झर झर करना बन्द करने लगी। नदियां कल कल से मद्धम मद्धम मौन होने लगी। धरती के अरण्य कुम्हलाने लगे। शस्य श्यामला भूमि रंगत नापने लगी। ऊर्ध्व भूधर भरभराने लगे, तभी पता चलता है कि सारा जगत ही कोरोना वायरस के चपेट से संकमित होने लगा है और उसका प्रभाव जन जन में प्रवेश करने लगा है, जिसके कारण विश्व के कोने कोने को लोग बहुत परेशान होने लगे है।

इसी बीच में हमारा हिन्दुस्तान भी इसी वायरस को झेलता हुआ पूर्णतः लॉकडाउन हो गया। मेरा प्रथम दिन था, जब मैंने यूपी बोर्ड की कॉपी चेक करने के बाद, घर पर ही संध्या काल विश्राम कर रहा था और अपने परिवार संग मस्त था। कुछ देर बाद मै आदतन एनडीटीवी खोलकर बैठ गया।अचानक से देश कि प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की घोषणा होती है कि 21 दिन के लिए सम्पूर्ण देश को लॉकडाउन किया जाता है। देशहित में उनके मुख से मुखरित हुई, कई महत्वपूर्ण बातों को सुना और बैठे बैठे सोचने लगा गया कि ये क्या हो गया? स्कूल, कॉलेज,माल आदि सभी बन्द कर दिए गए। ट्रेन प्लेन और गाडियां रोक दी गई। आह! अब क्या था? जीवन की पटरियां रुक गई थी। बैठे बैठे मेरा सोचना, यह लाज़िम हो गया था कि आख़िर इन छुट्टियों में किया क्या जाएगा? कुछ समझ नहीं आया। दो चार दिन तक खाना खाया। खूब टीवी देखा और खूब सोया।

अचानक से एक दिन मुझे लगा कि यार ऐसे तो काहिल हो जाऊंगा मै। कुछ रचनात्मक कार्य किया जाय, नहीं तो संपूर्ण शरीर विश्राम करते करते रोगमय हो जाएगा। ऐसे कब तक काम चलाएंगे। आज अगर ईश्वर ने कुछ पल दिया है तो उसे आगोश में भर लेना चाहिए और उसे महसूस करते हुए अपने आपको ऊर्जावान बनाकर रचनात्मकता की दुनिया में कुछ पल सैर करना चाहिए। इसी सोच में हम बैठे हुए थे तो मुझे यह लगने लगा कि बेटा! आज तुम अपने घर को ही साफ वाफ कर डालो। सोचना ही भर था कि फौरन उठा और घर के सारे सामान को करीने से रखने लग गया। घर की सारी खिड़कियां, दरवाज़े, दीवारें और फर्शों समेत टेबल, कुर्सियां आदि सभी को रगड़ रगड़कर पूरा दिन साफ किया और अगले ही दिन समय का सदुपयोग करते हुए वॉशरूम और बाथरूम की भी चमका दिया। सारे कपड़े धूल डाले अपना और सुकून से उस रात खूब सोया क्योंकि जो सोचा था, उस निपटा दिया था।

अगले दिन जब सोकर उठा, जाकर बालकनी में थोड़ी देर भर अंगड़ाई लिया और आकर कुर्सी पर बैठ गया। अखबार उठाकर पढ़ने लगा।अखबार के एक हेडिंग से मुझे याद आई कि क्यों ना लॉकडाउन के दिनों को लेखन कार्यों के लिए इस शीर्षक का उपयोग किया जाए। इससे बेहतर समय और क्या हो सकता है? कोरोना, लॉकडाउन, महामारी, मजदूर, भूख, बेरोजगारी, प्रकृति आदि बहुत सारे ऐसे मौजू है, जिस पर कुछ ना कुछ लिखा जा सकता है। क्यों नहीं लिखते हम और सारी रचनाओं को एकत्र कर एक किताब की शक्ल भविष्य में दे देते। तभी मुझे याद आया कि इंक पब्लिकेशन को मैंने कुछ रचनाए भेजा था, एक काव्य संग्रह के प्रकाशन के लिए। भेजे हुए रचनाओं को चार महीने हो गए है। सर्वप्रथम प्रकाशक से संपर्क ही कर लें और उसी काम को पूर्ण कर लिया जाए, अगर प्रकाशक चाह ले तो, कुछ फल प्राप्त हो सकता है। मैंने काल प्रकाशक को तुरंत किया और बात किया कि भाई मेरी काव्य संग्रह का क्या हुआ? उसको कब तक फाइनल करेंगे? उधर से बड़ा ही सकारात्मक जवाब आया। पब्लिकेशन वाले बोले कि टाइपिंग का काम हो चुका है और प्रूफ रीडिंग पे काम चल रहा है। आप जान ही रहे है कि लॉकडाउन के कारण सारा कार्य ठप पड़ा हुआ है। अगर आप चाहे तो ऑनलाइन होकर एक दूसरे से बात करते हुए करेक्शन कर लिया जाए। कुछ दिन में काम पूरा भी हो जाएगा और समय का अच्छा सदुपयोग हो जाएगा।

फिर क्या था? जुट गए दोनों लोग अपने अपने कामों में और किताब को घर बैठे ही फाइनल कर डाले। अब बस छप कर आना बाकी है। इसी दौरान गीत, कविताएं लिखने का कार्य करता रहा और आज लगभग सौ से अधिक रचनाएं लिख चुका हूं, जो कोरोना और लॉकडाउन से जुड़ी हुई रचना व अन्य मौज़ू पर है। मेरे मन में विचार आया है कि इस पूरी रचना को एक काव्य संग्रह के रूप में अवश्य छपवाएंगे। रचनाए लिखने के दौरान मैंने साहित्यनामा पत्रिका में दो रचनाएं भी भेजा और वो मार्च महीने में प्रकशित भी हो गई। तभी पता चला कि साहित्यनामा पत्रिका लॉकडाउन में साहित्यकारों के लिए साप्ताहिक कविता लेखन, ग़ज़ल लेखन, दोहा लेखन आदि विधाओं की प्रतियोगिता कराने जा रही है। मैंने जब पता किया तो पता चला पहली साप्ताहिक प्रतियोगिता में “उम्मीद” शीर्षक पर कविता लिखने के लिए आमंत्रित किया गया है। फिर क्या था! नियम आदि को पढ़कर एक सुंदर कविता रचकर भेज दिया और जब एक हफ्ते बाद परिणाम आया तो मुझे “उम्मीद” शीर्षक पर अच्छी कविता लिखने हेतु “सर्टिफिकेट ऑफ इमरजेंस” पुरस्कार मिल गया है। दस रचनाकारों में मेरा भी नाम है। यह जानकर, जैसे मेरे अंदर आत्मविश्वास का संचार आ गया हो। मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी कविता लेखन में भाग लिया था और पहली बार में ही चयनित भी हो गया। इससे कहीं ना कहीं मेरे अंदर जिस ऊर्जा का संचार हुआ, पुनः प्रतिष्ठित साहित्यिक हिंदी पत्रिका “साहित्यनामा” द्वारा आयोजित राष्ट्रीय काव्य लेखन प्रतियोगिता में ग़ज़ल के लिए “क्रिएटर ऑफ़ वीक” से सम्मानित किया गया व साहित्यिक ई-पत्रिका “हिंदी काव्य कोश” की तरफ से आयोजित राष्ट्रीय काव्य लेखन प्रतियोगिता में “मौन हूँ लेकिन अनभिज्ञ नही” के लिए भी उत्कृष्ट रचनाकार के रूप में सम्मानित किया गया। उसी का नतीजा यह हुआ कि चल रहे पूरे लॉकडाउन के दौरान विभिन्न साहित्यिक प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित कविताएं पढ़ना, लेख पढ़ना और अपनी रचनाएं लिखकर भेजना शुरू कर दिया और ऑनलाइन प्रतियोगिताओं में भाग लेना भी शुरू कर दिया। इसी दौरान पुनः मेरी एक कविता “बन्दी जीवन भी क्या जीवन!” के लिए “हिंदी काव्य कोश” की तरफ से प्रशंसित भी किया गया। इस बीच मैंने विभिन्न कविताओं को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके विभिन्न मित्रो और परिवार के सदस्यों को भी भेजा ताकि सभी रसास्वादन ले सके। एक दिन इलाहाबाद शहर के फिल्म निर्देशक अजित दुबे जी का काल आया कि इमरान जी कुछ पंक्तियां कोरोना पर लिखिए, उसको लेकर जागरूकता भरा एक वीडियो बनाना चाहता हूं, जिसमे कई कलाकारों की आवाज़ ली जाएगी। “यूं तो देखें है संसार में महामारी बहुत” नामक कुछ पंक्तियां लिखकर दिया और उन्हें पसंद आ गई और बना डाली एक संदेशात्मक वीडियो और यू ट्यूब पर डाल दिया गया है। लोग उसे देखकर खूब पसंद भी कर रहे है।

फेसबुक पर धूम मचा रही गमझा चैलेंज, चश्मा चैलेंज और हैंडराइटिंग चैलेंज में भी भाग लिया। इस बीच अपनी हस्तलेखन में चार पंक्तियों के साथ या पूरी कविता भी लिखकर पोस्ट किया और पहली बार महसूस हुआ कि मै सुन्दर लिखता भी हूं। लोगो ने मेरी राइटिंग की बहुत प्रशंसा किए। अभी हाल में अभिनेता इरफान खान की मृत्यु हो जाने पर मैंने अनपर चार पंक्ति लिखी और उसे पोस्ट कर दिया। जब कुछ घंटों बाद देखता हूं कि, दो हजार लाइक से ज़्यादा आ गए है, संतोष मिला, जबकि इससे पहले हमारी किसी भी पोस्ट पर दो ढाई सौ से ज़्यादा लाइक नहीं आते थे लेकिन लॉकडाउन ने वो भी कमाल कर दिखाया।

लॉकडाउन के दौरान ही जब मुझे पता चलता है कि भारत सरकार पुनः रामायण और महाभारत सीरियल प्रसारित करेगा। यकीन मानिए मै फूला नहीं समाया था। मुझे याद है जब मै छोटा था, तब मेरे बाबा मेरी उंगली पकड़कर पड़ोसी ठाकुर साहब के घर महाभारत और रामायण दिखाने ले जाते थे। तब मै बहुत छोटा हुआ करता था। संवाद तो समझ नहीं पाते थे, लेकिन चलते हुए दृश्यों को देखकर खूब मनोरजन किया करते थे। आज जबकि पुनः प्रसारित हो रहा है तो मैंने शुरू से ही देखना प्रारम्भ किया, दो उद्देश्य से। पहला संवादों के माध्यम से मेरी हिंदी बेहतर होगी और दूसरा पूरी कथा को नए सिरे से समझने का अवसर मिलेगा। वहीं किया। आज जब रामायण ख़तम होने के बाद उत्तर रामायण भी समाप्त हो गया है। मैंने पूरे एपिसोड को समय पर देखा। आज यह लेख लिखते हुए याद आया कि दिनांक 2 मई को उत्तर रामायण भी समाप्त हो गया था या कुछ भाग तीन मई को दिखाकर समाप्त हो गया था। दोनों पौराणिक सीरियलों को लॉकडाउन ही के कारण देख पाया नहीं तो कहां समय था? इसे समय से देखने के लिए। महाभारत भी देखते देखते कहानी पांडवो और कौरवों के युद्ध के बाद तक देखता गया था और समाप्त कर दिया था। इसी बीच दूरदर्शन पर अपने पसंदीदा अभिनेता शाहरूख खान अभिनीत सीरियल सर्कस को भी देख ले रहा था। अब जब उत्तर रामायण ख़तम हो चुका था तो पता चल रहा था कि “जय श्री कृष्णा” सीरियल ठीक बाद प्रसारित होने वाला है, तो बाकी के बचे लॉकडाउन में उसे देखकर, हम अपने समय का सदुपयोग करेंगे, यह निर्णय ले लिया था और पूरा भी किया।

लॉकडाउन के दौरान सभी सगे संबंधियों से बात किया, उनका हाल जाना और जो भी लोग परदेश में फंसे है, उनकी समस्यायों को जानने का प्रयास किया और घर रहते हुए जो भी मदद कर पाया, किया। हमेशा खाना तभी खा रहा था, जब तक घर के नीचे एकांत में पड़े बाबा को खाना नहीं खिला देता था। बाबा ना जाने कहां से आए थे? न उनके घर का पता और ना ही उनके बारे में कुछ जानते थे। बस इतना जानते थे कि कुछ महीना पहले ही आए थे, घर के नीचे पड़े रहते थे। अब उनको अपने परिवार का सदस्य समझते हुए देखना, ताकना, अब अपना कर्तव्य समझने लगा हूं।

पूरे लॉकडाउन के दौरान जो भी देखा, सीखा, किया और करने का प्रयास किया, उसे अब पूरे जीवन भर उसी रचनात्मकता के साथ करना चाहता हूं। जब बाहर झांकता हूं तो आकाश को इतना नीला देखकर हृदय गदगद हो उठता है।पेड़ पौधों को इतना स्वच्छ कभी नहीं देखा था। पंक्षियों के कलरव व शाखाओं के अगड़ाई लेते हुए ध्वनियों को सुनना, पहले ऐसा कदापि नहीं सुना था। मुझे लॉकडाउन ने यह सीखा दिया है कि मानव ने ही प्रकृति को बरबाद किया है और प्रकृति इतनी शक्ति रखती है कि मानव को बरबाद कर अपना हिफाज़त भी कर सकती है। आज जबकि कोरोना वायरस है तो देखिए, सारे मानव कैसे उससे डरकर एकांत वास हो चुके है? प्रकृति अपनी अलहड़ काल में पहुंचने लगी है। गंगा, यमुना इतना स्वच्छ कैसे हो गया? जिसे सरकार अरबों रुपए खर्च करके भी नहीं कर पाई थी।

लॉकडाउन जब तक था, तब तक था लेकिन ख़तम होते ही मैंने वादा किया है कि प्रकृति से प्रेम करना सीखूंगा और अपनी रचनात्मकता को खूब विकसित करूंगा।

~ इमरान संभलशाही

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