दस हिन्दी उपन्यास आपको अवश्य पढ़ने चाहिए

दस हिन्दी उपन्यास आपको अवश्य पढ़ने चाहिए

उपन्यास हमारे समाज और उसकी व्यवस्था की झलक होते हैं। सभी भाषाओं के साहित्यकारों ने अपने उपन्यासों में समाज की विसंगतियों, कुरीतियों, परंपराओं, आचरण और बहुत सारी अच्छी बातों का उल्लेख किया है। हर वर्ष अनेक लेखक और लेखिकाओं द्वारा कई उपन्यास लिखें जाते हैं किन्तु हर रचना को श्रेष्ठ माना जाए यह संभव नहीं है। अब तक अनगिनत साहित्याहिक रचनाएँ प्रस्तुत की जा चुकीं हैं और अब तो पढ़ने का ढंग भी बदल चुका है। कई लोग नए माध्यम जैसे ई-बुक/पीडीएफ़/किंडल इत्यादि का प्रयोग करते हैं जबकि अधिकांश अभी भी छपी हुई पुस्तकों को ही पढना पसंद करते हैं।

हिन्दी भाषा के कुछ ऐसे उपन्यास हैं जिसे हर किसी को एक बार अवश्य पढना चाहिए। इन उपन्यासों के लेखक हिन्दी साहित्य जगत के प्रणेता माने जाते हैं। आईए ऐसे दस उपन्यासों के बारे में जानते हैं जो पाठकों के हृदय पर एक अमिट छवि बना चुके हैं। यदि आपने इन्हें नहीं पढ़ा है तो शीघ्र ही अवश्य पढ़ें।

१) प्रतिज्ञा ~ मुंशी प्रेमचंद

प्रेमचंद की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक प्रतिज्ञा भारतीय समाज में विधवाओं के कष्टमय जीवन को दर्शाती है। विधुर अमृतराय अपनी मृत पत्नी की बहन प्रेमा से प्यार करता है। आर्य समाज मंदिर में पंडित की बात सुनकर अमृतराय एक विधवा से विवाह करने का वचन देता है। अमृतराय को उनके मित्र द्वारा उनकी प्रतिज्ञा के लिए तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। अमृतराय की प्रतिज्ञा उनके जीवन और आसपास के लोगों के जीवन को इस तरह प्रभावित करती है, यह इस उपन्यास में पढ़ें। उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नए रूप में प्रस्तुत किया है एवं विकल्प भी सुझाया है।

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२) गुनाहों का देवता ~ धर्मवीर भारती

गुनाहो का देवता एक मध्यवर्गीय जीवन, अंग्रेजों के समय का इलाहाबाद और वहाँ रहनेवाले चन्दर, सुधा और पम्मी की कहानी है। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है।

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३) कितने पाकिस्तान ~ कमलेश्वर

साहित्यकार कमलेश्वर द्वारा रचित उपन्यास है – कितने पाकिस्तान; भारत-पाकिस्तान के बँटवारे और हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है। इसके लिए उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास उनके मन के भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता हे।

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४) रागदरबारी ~ श्रीलाल शुक्ल

श्रीलाल शुक्ल ने रागदरबारी उपन्यास को राज-मजदूरों, मिस्त्रियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों और शिक्षित बेरोजगारों के जीवन पर केंद्रित किया है और उन्हें एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए एक दिलचस्प कथाफलक की रचना की है। यह कथाकृति बीसवीं शताब्दी के इन अंतिम दशकों में ईंट-पत्थर होते जा रहे आदमी की त्रासदी को अत्यंत मानवीय और यथार्थवादी फलक पर उकेरती है।

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५) मैला आँचल ~ फणीश्वरनाथ रेणु

पूर्णिया जिले के मेरीगंज ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। ‘मैला आँचल’ का नायक अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा इसी क्रम में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दुःख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अन्धविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण-चक्रों में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता है।

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६) ओस की बूँद ~ राही मासूम रज़ा

यह बहुचर्चित उपन्यास हिंदू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बेहद यथार्थवादी धरातल पर विश्लेषित करता है! हिंदू-मुस्लिम समस्या राजनीति का एक मोहरा है, जिसे वह जब चाहे अपने हक में इस्तेमाल करती है। सांप्रदायिक दंगों के बीच सच्ची इंसानियत के तलाश करनेवाला यह उपन्यास एक शहर और एक मज़हब का होते हुए भी हर शहर और हर मज़हब का है। इसके माध्यम से लेखक राही मासूम रज़ा ने दो संप्रदायों के बीच बीच के तरह डाले गए संदेह, अविश्वास, अलगाव और विद्वेष के ऊपर मानव-मन की सच्चाई और सौहार्द पारस्परिक समझदारी को स्थापित किया है।

७) वैशाली की नगरवधू ~ आचार्य चतुरसेन शास्त्री

महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना उपन्यास में वैशाली की नगरवधू में अम्बपाली/आम्रपाली की कहानी तो है किन्तु उससे अधिक बौद्धकालीन सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक स्थितियों का चित्रण उपलब्ध है। यह उपन्यास भारतीय जीवन का जीता-जागता खाका है। इसमें चतुरसेन शास्त्री जी वैशाली के पक्षधर हैं; उनका मानना है कि राजतन्त्र और तानाशाह की जीत, दुश्मन को पूरी तरह बरबाद कर देती है जबकि जनप्रतिनिधियों और लोकतन्त्र की जीत उतनी हिंसक नहीं होती।

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८) चित्रलेखा ~ भगवतीचरण वर्मा

चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका न कहाँ है? भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलानेवाला पहला उपन्यास चित्रलेखा है। महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी- ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’’.

९) तमस ~ भीष्म साहनी

आज़ादी से पहले हुए सांप्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है। यह केवल पाँच दिनों की कहानी है, वहशत के अँधेरे में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी, जिसे लेखक ने इस खूबी के साथ बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्घाटित हो जाता है।

१०) मानस का हंस ~ अमृतलाल नागर

लेखक अमृतलाल नागर के इस उपन्यास में पहली बार व्यापक कैनवास पर “रामचरितमानस” के लोकप्रिय लेखक गोस्वामी तुलसीदास के जीवन को आधार बनाकर कथा रची गई है, जो विलक्षण के रूप से प्रेरक, ज्ञानवर्धक और पठनीय है। इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया है, वह एक सहज मानव का रूप है।

This Post Has 2 Comments

  1. Samir Kumar

    बेहतरीन उपन्यास

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