लिखना जरूरी क्यों है?
एक साहित्यकार के जीवन में लिखना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।एक साहित्यकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि समाज में हो रहे अपराध, देश की व्यवस्था,आस पास का वातावरण और अन्य महत्पूर्ण बातों को अपने शब्दों में लिखें और समाज…
एक साहित्यकार के जीवन में लिखना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।एक साहित्यकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि समाज में हो रहे अपराध, देश की व्यवस्था,आस पास का वातावरण और अन्य महत्पूर्ण बातों को अपने शब्दों में लिखें और समाज…
एक विघ्न हरण मंगल करण, गौरी पुत्र गणेश।प्रथम निमंत्रण आपको, ब्रह्मा विष्णु महेश।१। भेज रहे है स्नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हे बुलाने को।हे मानस के राज हंस तुम, भूल ना जाने आने को।२। गंगा की आंचल से, सुर-सरिता की धार रहे।सफल…
अगर कुछ काम अच्छा है, तो याद रखती है नस्ले यह कहानी है गाँधी वाचनालय (पुस्तकालय) सिरोंज की पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ विविध प्रकार के ज्ञान, सूचनाओ, स्त्रोतो, सेवाओ, आदि का संग्रह रहता है। आइये आपको एक ऐसी शख्सियत…
माँ निशा सिन्हाकलमकार @ हिन्दी बोल India अब तो आदत सी हो गई है माँ!बिन तुम्हारे रहने कीजब याद तुम्हारी आती है,तुम्हारी तस्वीरें देखा करती हूँ माँ! जब भी करवट बदलती हूँयाद तुम्हारी हीं आती है माँ!जिस हाथ को थाम…
दोहा एक मात्रिक छंद है- चार चरणोंवाला प्रसिद्ध छंद। इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ…
सूफी काव्य निर्गुण भक्ति धारा की दूसरी शाखा है। भारत में सूफी संतों का आगमन १२वीं सदी से माना जाता है। सूफीमत इस्लाम धर्म की एक उदार शाखा है । सूफी फकीरों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रयास किया और दोनों संस्कृतियों…
भारतेंदु जी नारी को पुरुष के बराबर मानते थे और नारी शिक्षा के समर्थक थे। उन्होने 1874 से 1877 तक ‘बालाबोधिनी’ नमक हिंदी की पहली स्त्री-पत्रिका का संपादन महिलाओं को शिक्षित-सचेत करने के उद्देश्य से किया।
हिन्दी के प्रचार प्रसार में पत्र-पत्रिकाओं ने विशेष योगदान दिया है। यही वह समय था जब हिंदी पत्रकारिता फल-फूल रही थी। पत्रिकाओं के माध्यम से लेखकों ने समाज में नई चेतना का संचार किया। ब्रिटिश राज के दौरान सामान्य जन-मानस…
कृष्णा सोब्ती (२०१७)केदारनाथ सिंह (२०१३)अमरकांत (२००९)श्रीलाल शुक्ल (२००९)कुँवर नारायण (२००५)निर्मल वर्मा (१९९९)नरेश मेहता (१९९२)महादेवी वर्मा (१९८२)सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (१९७८)रामधारी सिंह "दिनकर" (१९७२)सुमित्रानंदन पंत (१९६८)
हम सभी में प्रेम, ईर्ष्या, दया, करुणा जैसे अनेकों भाव भरे पड़ें हैं, गुस्सा भी इसी श्रेणी में आता है। यह सारे भाव स्वाभाविक हैं और प्रत्येक स्त्री-पुरुष में समाहित हैं। इनपर नियंत्रण कर पाने की क्षमता सभी लोगों में…
यदि कलात्मक जवाब सुनने हों तो बच्चों से कुछ प्रश्न पूछिये, उनके उत्तर सुनकर आप अचंभित रह जाएंगे। ये उत्तर उन्होने कल्पना के सागर से काफी सोचकर दिया होता है। कभी-कभी बहुत ही जटिल सवालों का आसान सा उत्तर देकर…
एक से भले दो- यह कहावत जीवन में उपयोगी साबित होती है जिसके अनुसार अकेले रहने से किसी मित्र के साथ रहना भला होता है। इस मित्र की तलाश आज सभी को है क्योंकि व्यक्ति जब एकाकीपन से गुजरता है…
भगवन श्रीराम की भक्ति में अनेक कवियों ने काव्य रचनाओं की प्रस्तुति की है। राम महिमा का वर्णन करने के लिए कई महान ग्रन्थों की रचना हुई है। रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं जिनकी रामचरितमानस हिंदी…
भारत के संतों द्वारा रचित कुछ दोहा काव्य जिनके अर्थ सभी को भली भाँति पता हैं। इन अनमोल दोहों में जो ज्ञान/शिक्षा की बातें बड़ी सरलता से बताईं गईं वह अतुलनीय है। करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।रसरी आवत जात…
तुलसीदास के अनमोल दोहे देस काल करता करम, बचन विचार बिहीन। ते सुरतरु तर दारिदी, सुरसरि तीर मलीन।१। ~ स्थान, समय, कर्ता, कर्म और वचन का विचार करते ही कर्म करना चाहिए । जो इन बातों का विचार नहीं करते,…
बिन स्वारथ कैसे सहे, कोऊ करुवे बैन।लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन॥ ~ वृंद१ » बिना स्वार्थ के कोई भी व्यक्ति कड़वे वचन नहीं सहता। कड़वा वचन सभी को अप्रिय होता है लेकिन स्वार्थी लोग उसे भी चुपचाप सुन लेते…
‘संतोषं परमं सुखं’ – सन्तोषी सदा सुखी संतों ने कहा है कि जो आपका है उसे कोई आपसे छीन नहीं सकता और जो आपसे दूर/छिन गया वह कभी आपका था ही नहीं। इस तथ्य को यदि हम जीवन में अपनाने…
गुरु महिमा- गुरु ही भवसागर पार कराते हैं।हम सभी किसी न किसी उलझन में फंसे रहते हैं, हांलांकि उनसे छुटकारा पाने के लिए स्वयं ही लड़ना होता है किंतु कभी-कभी हमें सूझता ही नहीं कि कौन सा मार्ग अपनाएं। ऐसी…
नाथपंथ के प्रेरणाश्रोत भगवान शिव हैं। हिन्दू धर्म में चार प्रमुख धार्मिक संप्रदाय हैं - वैदिक, वैष्णव, शैव, स्मार्त। शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही 'नाथ' एक उपसंप्रदाय है। नाथपंथ में साधक को प्रायः योगी, सिद्ध, अवधूत व औघड़ कहा जाता…