Category: COVID19
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कोरोना की कहानी
कहानी एक दिलचस्प सुनाती हूँ आओ तुम्हे एक बात बताती हूँ समय एक आया बड़ा भारी फ़ैलाने लगा जग में महामारी देश विदेश में मचाया तांडव हाहाकार करती जनता बेचारी कोविड-१९ नाम दिया उसको ना जाने कब हो जाये किसको सोच के भी जनता डर जाती घर में अपना समय बिताती मेल जोल थे उसके…
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कोरोना से जीतेंगे
घर में रहकर स्वच्छता को अपनाकर सामाजिक दूरी का पालन करेंगे हा, हम कोरोना से जीतेंगे अफवाहों से बचकर कोरोना फाइटर्स की सलाह मानकर समाज और देश को सुरक्षित करेंगे जी हाँ, हम कोरोना से जीतेंगे हम तब तक इससे लड़ेंगे जब तक इसका वजूद ना मिटाएंगे डॉक्टर्स, पुलिस और सफाईकर्मियों का हौसला बढ़ाएंगे जी…
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खतरा अभी टला नहीं है
लॉक डाउन के चौथे चरण में खुलने लगी दुकान, झट पट अधिकतर दौड़ पड़े हैं, खरीदने सामान। पर इतना समझ लीजिए, खतरा नहीं अभी टला, सोशल डिस्टेंस न बनाया, जीना न होगा आसान।। अभी संभल कर रहना होगा, इसी में समझदारी, वरना चपेट में ले लेगा, न पहचाने यह महामारी। सड़कों पर अब बढ़ रही,…
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मैं मजबूर हूँ
गरीबों पर सबसे बड़ा संकट काल है प्रवासी मजदूरों का देखो हाल बेहाल है महामारी में जीवन जीना बड़ा दुस्वार हैं गरीब तबके पर पड़ी सबसे भारी मार हैं गरीब मजदूर ही सबसे ज्यादा मजबूर हैं चारों तरफ देश मे देखो मची हाहाकार है चुनावों के वक्त ही जिनसे मतलब होई इनके दर्द को नहीं…
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हाँ मैं एक मजदूर हूँ
हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा है आपने अजय हुकुमतों के लिए फ़ितूर हूँ । – अजय प्रसाद
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मुश्किल में मुस्कान
चारों तरफ हीं अंधियारा है गलियां सब सुनसान मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं कहां जाए इन्सान नौनिहाल सब भूखे मरते हे देव करो अब त्राण अब कैसी विपदा आन पड़ी है मुश्किल में मुस्कान। गलतियों का पुतला मानव को तूने हीं तो स्वयं बनाया फिर उन की छोटी भूलों पर क्रोध है इतना क्योंकर आया…
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महँगाई
महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में सब बंद ढुलक जाते आँसू। बढती महंगाई में ठहरी हुई जिंदगी में खुद को बोना…
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लॉकडाउन की बातें
अजब है ना, ये कमाल है ना रहती हैं याद तारीखें। ना याद रहते, ठीक से दिन और वार। हर दिन ही दिल को लगे है रविवार। शांति, संयम और घर ही है स्वस्थ जीवनोपचार। ना बाहर की बातें ना यारों का दीदार, ना सड़कों पर लंबे-लंबे जाम ना ही कारों के हॉर्न की चीखपुकार।…
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पलायन करते मजदूर
कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक मंजिल न मिले, मिले कहाँ विश्राम।। रोटी बिखरी राह में, खाने वाले मौन। सियासती माहौल…
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मैं मजदूर
मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ नदियों को मैं मजदूर मजबूत हौंसलों वाला चीर कर रख देता सागर का सीना भी…
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कोरोना कह रहा
कोरोना कह रहा-मरो ना, विकास की अंधी रफ्तार के आगे, कहां सोच पाया था इंसान कि जीवन का मतलब बारुद व जैविक हथियार नहीं होता, न ही इंसान से नफरत, न उच्च, न नीच, क्योंकि कोरोना ने सबको बना दिया है-अछूत व नीच और लोग मांग रहे जीवन की भीख, फिर भी नहीं मिल पा…
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कोरोना से जंग
मैं तो चला था फ़क़त अपनी जिम्दारियों से लड़ने, क्या पता था जिंदगी और मौत से लड़ना पड़ जायेगा, कहता था जो अपनी जान से भी प्यारा मुझे, वो एक बीमारी के चलते मेरी परछाईं से भी डर जाएगा, पर मैं जानबूझ कर तो इस मैदान ए मौत में नही आया, फिर वो क्या था…
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हिम्मत कायम हो
आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो क्या हो जब चारदीवारी कम सी हो अगर लोग चाहते हैं इमारत कायम हो बेखुदी,बे…
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कोरोना काल
कैसी अबकी साल है ये कोरोना काल है कैसे करे सामना न हथियार न ढाल है दुनिया का जो हाल है ये कोरोना जाल है बच गए तो काल (कल) है नहीं तो पका काल है हम डाल डाल है ये तो पात पात है किस कोने में छुपे हम पूरी दुनियां इसका ताल है…
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एक मजदूर की कहानी
आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी, छप्पर सब के सब उजाड़ दिए जाते हैं जैसे, यहाँ कुछ पहले से था ही…
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मेरी मजबूरी रोटी
कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा निवाला निगलता है । अपने भार से भी ज्यादा वजन उठाता है।। पेट में ज्वाला…
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भारत माँ के तारे
देखा नही खुदा कही घूमा मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे पता ना था वो पास है मेरे हम जीते है जिनके सहारे निकल पड़ते है वो हर सुबह अपने कर्म निभाने कुछ नही है अभिलाषा उनको वो जान बचाते हमारे पॉव पखेरना है हमको उनके जब द्वार आये वो हमारे हम पता नही क्यों भूल जाते है…
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लॉकडाउन और मजदूर
किसी भी आपदा, महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव कमज़ोर और गरीब वर्ग पर ही होता है। कोरोना जैसी महामारी जिसे लेकर तो विदेशों से आए अमीर मेहमान थे लेकिन इस महामारी के बाद भारत में लोकडाउन होने से सबसे ज्यादा असर उन गरीब मजदूरों पर हुआ जो हर रोज मेहनत मजदूरी करके कमाते थे और…