Category: COVID19
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जंग हमारा देश जीतेगा
जीतेगा जीतेगा ऐ कोरोना से जंग हमारा देश जीतेगा, हारेगा कोरोना जंग हरेगा और हमारा देश छोड़कर भागेगा! देश की रक्षा करने के लिए देश के लाल पथ पर खड़े है, अपने घर और परिवार को छोड़कर अपने कर्तब्यों पर अड़े है! सत्ययुग में राक्षसो से रक्षा करने के लिए, भगवान विष्णु ने रामा अवतार…
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कोरोना- लॉक डाउन का प्रभाव
आज प्रभात पत्नी बोली एक बात हे आर्यपुत्र, कुल भूषण मेरी माँग के आभूषण लॉक डाउन का प्रभाव मन्द हो गया है, मास्क पहनकर जाने का प्रबंध हो गया है। रसोई में रखे आटा दाल मसाले सब के सब हो गए हैं खाली, आज पड़ोसन के घर से भरवाई थी शक्कर की एक छोटी प्याली।…
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भारत को बचाना है
आओ मिल को बचाना है घर पर रहना कहीं न जाना है व्यर्थ ना इसमें समय गवाना है हाथ पे हाथ रख न बैठना है। हमको भारत को बचाना है कुछ सोच कर हल सुझाना है जो हैं सक्षम उनको आगे आना है सब मिल जुल कर हाथ बढ़ाना है सही सूचना सर्वत्र हमें फैलाना…
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मैं और मेरा गाँव
कविता का कवि लॉकडाउन में दिल्ली में है और वह उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में स्थित अपने गाँव को याद कर रहा है जाने की सोचता हूंँ जहाँ, रहते हैं मेरे लोग वहाँ, खेतों की हरियाली देखि, पानी के तालाब यहाँ, गाय माता के सब छूते पांव, वही तो है मेरा गांव। अजब गजब…
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अघोषित युद्ध
यह कविता उन योद्धओं को समर्पित है जो अघोषित युद्ध लड रहे हैं और कोरोना को मिटाने हेतु कृतसंकल्प हैं। पूरा देश लड़़ रहा कोरोना से अघोषित युद्ध देशवासियों मे जोश हैं लडने की भावना है शुद्ध सारे नागरिक एकजुट हैं कोई नहीं है गुट देश प्रेम की भावना अत्यंत अद्भुत इस संकट के समय…
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कोरोना को हराये
मुझे मेरे हिन्दू होने पर नाज है तुझे तेरे मुस्लिम होने पर नाज है लेकिन राम मेरा भी मुझसे नाराज है और खुदा तेरा भी तुझसे नाराज है पाप मैंने भी किए होंगे कभी गुनाह तूने भी किए हों शायद कभी इंसानियत को खोने की सजा शायद मालिक हमको दे रहा है ना राम मुझे…
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कर्तव्य निभाएं
कोरोना के इस समय में आओ अपना कर्तव्य निभाएं, कुछ खुद समझ करें और कुछ औरों को भी समझाएं। न निकलें स्वयं वेबजह न किसी ओर को भी बुलाएं, कभी निकले बहुत जरूरी तो याद रहे सामाजिक दूरी सदा बनाएं। हाथ साबुन से बार बार धोएं और अन्यों को भी याद कराएं, मास्क से ढके…
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हंस रही थी जिंदगी
कोरोना से जीतने के लिए शीला झाला ‘अविशा’ का संदेश इस कविता में पढ़ें। हंस रही थी जिंदगी आंगन और गलियों में खिल रहे थे फूल नवयौवन से बगिया की कलियों मे आ गया पिशाच अकस्मात जिसका नाम था कोरोना निवेदन है आपसे आप लापरवाही करो ना निबोध जीवों की पीड़ा आज समझ है आई…
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अब रुक जाओ, हे! इन्द्र प्रभु
दुनिया लूट रही कृषकों को अब और ना लूटो आप प्रभु देश ये चलता कृषियों से है अब रुक जाओ हे इन्द्र प्रभु। फसल कट रही खेतों में है हर अन्न में बसती जान प्रभु अभी ना बरसों गर्जन करके अब रुक जाओ हे इन्द्र प्रभु। इस कोरोना से दुःखी सभी और दुनिया हुई बेहाल…
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कोरोना की सीख
संघर्षों में जीना, मुश्किलों से लड़ना निराशा का आशा में बदलना पतझड़ में वसंत मनाना कोरोना ने सिखाया है। घरों में रहना, अपनों संग जीना बड़ो से सीखना, छोटों को सिखाना दुखों को बाँटना खुशियों को फैलाना कोरोना ने सिखाया है । व्यस्तताओं का कम होना सुकून से जीना कम आवश्यकताओं में रहना खर्चों का…
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ये कैसा वक़्त आया है
ये कैसा वक़्त आया है कोरोना संग लाया है, मना सड़को पर जाना है बना घर कैदखाना है, अजब अदृश्य दुश्मन है इसे मिलकर हराना है, रखकर हौसला हिम्मत हमें जंग जीत जाना है, सुरक्षित स्वमं को रखकर हमें सबको बचाना है ये ऐसी रेस है जिसमें ठहर कर जीत जाना है, ये मुश्किल दौर…
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जानने पर यही सोचेंगे
चीत्कार व सिसकियों के बीच में कुछेक किलकारियां भी सुनाई दे रही है जिन्हे पता ही नहीं है कि आधुनकि दुनिया में कोरोना वायरस तो प्राणों को लील ही रही है लेकिन कितने अपने भी है, जो सांप बिच्छू बनकर अपनों को ही डंक मार रहे है यथा बलात्कार, हत्या खून खराबा चोरी, छिनैती, अपहरण…?…
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सपनो का संसार
खुले गॉव को छोड करआया था शहर, करने व्यापारतंग गलियो मे सिमट गया, सपनो का संसार काम-धन्धा सब चौपट हुआछुट गया घर बार जब से फैला है महामारी का प्रसार रातो मे अब नीद ना आती गॉव कि चिन्ता मूझे सताती कैसे होगें मॉ बाप अब आस लगा रखी है सरकार से मदद मिल जाये…
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खामोशी की चादर में लिपटा शहर
कलमकार महेश राठोर शहर के हालात का जिक्र कर रहे हैं, उन्होंने अपना अनुभव इस कविता में साझा किया है। इंसानो तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हरखामोशी की चादर में लिपटा है सारा शहर,सुनसान सी हर गली सुनसान सा हर चौराहा। अकेले अकेले खाली-खाली जलती दोपहरइंसानों तुमने घोला है इन हवाओं में ज़हर,खामोशी की…
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पृथ्वी के घाव भर रहे हैं
पृथ्वी के घाव भर रहे हैंजी हाँसही सुना, आपनेपृथ्वी के घाव भर रहे हैंहाँ, वही घावजो उसे मनुष्य ने दिए थेअपनी अनगिनत महत्वाकांक्षाओं की तृप्ति के लिएअपनी अपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिएअपने निर्मम स्वार्थ की सिद्धि के लिएअपनी बेशर्म लिप्साओं के वशीभूत होकरआज जब मानव घरों में कैद हैदर्द से कराह रहा हैऔर उसके…
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सब कुछ एक व्यापार है
सब कुछ एक व्यापार हैं सौदे को तैयार सब के बीच दलाल है क्रय विक्रय को तैयार सत्य बलि चढ़ जाता है असत्य खिलखिलाता है बातों में उलझाता है आगे बढ़ जाता है इस मंडी में भगवान बेचे जाते हैं रूप अलग-अलग मगर बिक जाते हैं इंसान भी बिकने को है तैयार बस एक बोली…
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काश! मानव समझ सकते
आज सारा देश, कोरोना के कारण है, ख़ामोश। सहम सा गया है, प्रत्येक मानव का दिल वजह सिर्फ मानव और मानव की अभिलाषा। कभी वृक्षों को काट बनाते है, होटल, मकान, फैक्टरी तो कभी मासूम पशु-पक्षी को मार कर खाते है, चाव से। हजारों अनगिनत कार्य है ऐसे जो है प्रकृति के विपरीत, पर मानव…