Category: कविताएं

  • मैं मजबूर हूँ

    मैं मजबूर हूँ

    गरीबों पर सबसे बड़ा संकट काल है प्रवासी मजदूरों का देखो हाल बेहाल है महामारी में जीवन जीना बड़ा दुस्वार हैं गरीब तबके पर पड़ी सबसे भारी मार हैं गरीब मजदूर ही सबसे ज्यादा मजबूर हैं चारों तरफ देश मे देखो मची हाहाकार है चुनावों के वक्त ही जिनसे मतलब होई इनके दर्द को नहीं…

  • हाँ मैं एक मजदूर हूँ

    हाँ मैं एक मजदूर हूँ

    हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा है आपने अजय हुकुमतों के लिए फ़ितूर हूँ । – अजय प्रसाद

  • मजदूर

    मजदूर

    भारत के श्रमवीरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की उनकी पीड़ा लिखता हूँ। जो हर मौसम में पीड़ा सहकर हँसकर भी जी लेते हैं। जो कभी न मुँह से कुछ मांगते घर पैदल ही चल देते हैं।। ऐसे मजदूरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की…

  • मुश्किल में मुस्कान

    मुश्किल में मुस्कान

    चारों तरफ हीं अंधियारा है गलियां सब सुनसान मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं कहां जाए इन्सान नौनिहाल सब भूखे मरते हे देव करो अब त्राण अब कैसी विपदा आन पड़ी है मुश्किल में मुस्कान। गलतियों का पुतला मानव को तूने हीं तो स्वयं बनाया फिर उन की छोटी भूलों पर क्रोध है इतना क्योंकर आया…

  • महँगाई

    महँगाई

    महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में सब बंद ढुलक जाते आँसू। बढती महंगाई में ठहरी हुई जिंदगी में खुद को बोना…

  • एक खिलौना

    एक खिलौना

    बच्चों को खिलौने कितने पसंद होते हैं- यह आप से बेहतर और कौन जान सकता है? याद करें बचपन में खिलौने न होने पर आप खुद ही बनाने में जुट जाया करते थे। कलमकार मुकेश बिस्सा ने एक यह बाल कविता प्रस्तुत की है जिसमें लड़की ने पापा से खिलौने की मांग की है। पापा…

  • कौन थी वो?

    कौन थी वो?

    कलमकार खेमचंद कहते हैं- “कुछ बातें अल्फ़ाज़ों और किताबों में सच्ची लगती है, तुम नादान कलम को आज भी अच्छी लगती है” और उसके बारे में जानना भी चाहतें हैं। सभी पुछते हैं मुझसे कौन थी होगी वो हम भी कह देते हैं रहने दो जौन थी होगी वो। तुम कहो तो बता दूं ज़माने…

  • तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

    तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

    कलमकार लाल देवेन्द्र श्रीवास्तव लिखतें हैं कि अपने साथी/मीत पर तो अनेकों गजल और कविताएं लिखीं जा सकती हैं क्योंकि वह होता ही है इतना अच्छा कि उसकी हर एक बात प्रेरित करती है। तुम पे मैं लिखता हूँ ग़ज़ल व गीत, तुम हो मेरे जीवन के सच मनमीत। तुम बिन कुछ भी न अच्छा…

  • संकल्प की साधना

    संकल्प की साधना

    दृढ़ संकल्प शक्ति आपकी कभी हार नहीं होने देती है, यह तो सफलता के नए मार्ग दिखाती है। कलमकार मुकेश अमन की एक कविता संकल्प की साधना पढ़िए। संकल्प साधने वालों की, कभी हार नहीं होती है। केवल सपनों से सागर में, नाव पार नहीं होती है।।१।। संघर्षों के पथ को चुनना, चुनकर बाधाओं से…

  • याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

    याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

    कुछ पुरानी चीजों से बहुत गहरी यादें जुड़ी होती हैं और वे ओझल हो चुके उस सख्श को हमारे सामने दिखा देतीं हैं जिनसे हमारा लगाव था। कलमकार विजय कनौजिया भी लिखते हैं उन्हें याद कर कई लोग रो देते हैं। वही पुरानी पाती पढ़करअब भी खुद को समझाता हूँजो तुमने लिखकर भेजा थावही देख…

  • लॉकडाउन की बातें

    लॉकडाउन की बातें

    अजब है ना, ये कमाल है ना रहती हैं याद तारीखें। ना याद रहते, ठीक से दिन और वार। हर दिन ही दिल को लगे है रविवार। शांति, संयम और घर ही है स्वस्थ जीवनोपचार। ना बाहर की बातें ना यारों का दीदार, ना सड़कों पर लंबे-लंबे जाम ना ही कारों के हॉर्न की चीखपुकार।…

  • पलायन करते मजदूर

    पलायन करते मजदूर

    कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक मंजिल न मिले, मिले कहाँ विश्राम।। रोटी बिखरी राह में, खाने वाले मौन। सियासती माहौल…

  • मैं मजदूर

    मैं मजदूर

    मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ नदियों को मैं मजदूर मजबूत हौंसलों वाला चीर कर रख देता सागर का सीना भी…

  • कोरोना कह रहा

    कोरोना कह रहा

    कोरोना कह रहा-मरो ना, विकास की अंधी रफ्तार के आगे, कहां सोच पाया था इंसान कि जीवन का मतलब बारुद व जैविक हथियार नहीं होता, न ही इंसान से नफरत, न उच्च, न नीच, क्योंकि कोरोना ने सबको बना दिया है-अछूत व नीच और लोग मांग रहे जीवन की भीख, फिर भी नहीं मिल पा…

  • कोरोना से जंग

    कोरोना से जंग

    मैं तो चला था फ़क़त अपनी जिम्दारियों से लड़ने, क्या पता था जिंदगी और मौत से लड़ना पड़ जायेगा, कहता था जो अपनी जान से भी प्यारा मुझे, वो एक बीमारी के चलते मेरी परछाईं से भी डर जाएगा, पर मैं जानबूझ कर तो इस मैदान ए मौत में नही आया, फिर वो क्या था…

  • गरीबी

    गरीबी

    अख़बारों की फिर सुर्खी मिली। आज फिर एक गरीब की अर्थी चली। ओढ़ अरमानों की बलि। एक गरीब की अर्थी चली। आखिर क्या जल्दी थी, दुनियां छोड़ जाने की। सायद कफ़न के महंगे हो जाने की। थी, पहले से महंगाई की मार, गरीब और बिन रोजगार, युद्ध था, ये भयानक चढ़ गया फिर गरीब, गरीबी…

  • हिम्मत कायम हो

    हिम्मत कायम हो

    आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो क्या हो जब चारदीवारी कम सी हो अगर लोग चाहते हैं इमारत कायम हो बेखुदी,बे…

  • कोरोना काल

    कोरोना काल

    कैसी अबकी साल है ये कोरोना काल है कैसे करे सामना न हथियार न ढाल है दुनिया का जो हाल है ये कोरोना जाल है बच गए तो काल (कल) है नहीं तो पका काल है हम डाल डाल है ये तो पात पात है किस कोने में छुपे हम पूरी दुनियां इसका ताल है…

  • एक मजदूर की कहानी

    एक मजदूर की कहानी

    आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी, छप्पर सब के सब उजाड़ दिए जाते हैं जैसे, यहाँ कुछ पहले से था ही…

  • मेरी मजबूरी रोटी

    मेरी मजबूरी रोटी

    कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा निवाला निगलता है । अपने भार से भी ज्यादा वजन उठाता है।। पेट में ज्वाला…