मैं मजबूर हूँ

गरीबों पर सबसे बड़ा संकट काल है प्रवासी मजदूरों का देखो हाल बेहाल है महामारी में जीवन जीना बड़ा दुस्वार हैं गरीब तबके पर पड़ी सबसे भारी मार हैं गरीब मजदूर ही सबसे ज्यादा मजबूर हैं चारों तरफ देश मे…

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हाँ मैं एक मजदूर हूँ

हाँ मैं एक मजदूर हूँ तकलीफ़ों से भरपूर हूँ चुनाव तो अभी है नहीं हर सहूलियत से दूर हूँ औकात कुछ भी नहीं इसलिए तो मजबूर हूँ । उनकी रोजी-रोटी के लिए न्यूज चैनलों पे मशहूर हूँ । सच कहा…

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मजदूर

भारत के श्रमवीरों की मैं गौरव गाथा लिखता हूँ। जो रीढ़ है देश की उनकी पीड़ा लिखता हूँ। जो हर मौसम में पीड़ा सहकर हँसकर भी जी लेते हैं। जो कभी न मुँह से कुछ मांगते घर पैदल ही चल…

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मुश्किल में मुस्कान

चारों तरफ हीं अंधियारा है गलियां सब सुनसान मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं कहां जाए इन्सान नौनिहाल सब भूखे मरते हे देव करो अब त्राण अब कैसी विपदा आन पड़ी है मुश्किल में मुस्कान। गलतियों का पुतला मानव को तूने…

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महँगाई

महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का-बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। दुःख के आँसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल? तालाबंदी में…

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एक खिलौना

बच्चों को खिलौने कितने पसंद होते हैं- यह आप से बेहतर और कौन जान सकता है? याद करें बचपन में खिलौने न होने पर आप खुद ही बनाने में जुट जाया करते थे। कलमकार मुकेश बिस्सा ने एक यह बाल…

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कौन थी वो?

कलमकार खेमचंद कहते हैं- "कुछ बातें अल्फ़ाज़ों और किताबों में सच्ची लगती है, तुम नादान कलम को आज भी अच्छी लगती है" और उसके बारे में जानना भी चाहतें हैं। सभी पुछते हैं मुझसे कौन थी होगी वो हम भी…

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तुम पे लिखूँ ग़ज़ल व गीत

कलमकार लाल देवेन्द्र श्रीवास्तव लिखतें हैं कि अपने साथी/मीत पर तो अनेकों गजल और कविताएं लिखीं जा सकती हैं क्योंकि वह होता ही है इतना अच्छा कि उसकी हर एक बात प्रेरित करती है। तुम पे मैं लिखता हूँ ग़ज़ल…

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संकल्प की साधना

दृढ़ संकल्प शक्ति आपकी कभी हार नहीं होने देती है, यह तो सफलता के नए मार्ग दिखाती है। कलमकार मुकेश अमन की एक कविता संकल्प की साधना पढ़िए। संकल्प साधने वालों की, कभी हार नहीं होती है। केवल सपनों से…

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याद तुम्हें कर रो लेता हूँ

कुछ पुरानी चीजों से बहुत गहरी यादें जुड़ी होती हैं और वे ओझल हो चुके उस सख्श को हमारे सामने दिखा देतीं हैं जिनसे हमारा लगाव था। कलमकार विजय कनौजिया भी लिखते हैं उन्हें याद कर कई लोग रो देते…

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लॉकडाउन की बातें

अजब है ना, ये कमाल है ना रहती हैं याद तारीखें। ना याद रहते, ठीक से दिन और वार। हर दिन ही दिल को लगे है रविवार। शांति, संयम और घर ही है स्वस्थ जीवनोपचार। ना बाहर की बातें ना…

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पलायन करते मजदूर

कितना कुछ कहते रहे, मजदूरों के पाँव। तपती जीवन रेत में, कहाँ मिली है छाँव।। पैदल ही फिर चल पड़े, सिर पर गठरी भार। कैसा मुश्किल दौर यह, महामारी की मार।। पाँवों के छाले कहें, कर थोड़ा आराम। जब तक…

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मैं मजदूर

मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ…

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कोरोना कह रहा

कोरोना कह रहा-मरो ना, विकास की अंधी रफ्तार के आगे, कहां सोच पाया था इंसान कि जीवन का मतलब बारुद व जैविक हथियार नहीं होता, न ही इंसान से नफरत, न उच्च, न नीच, क्योंकि कोरोना ने सबको बना दिया…

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कोरोना से जंग

मैं तो चला था फ़क़त अपनी जिम्दारियों से लड़ने, क्या पता था जिंदगी और मौत से लड़ना पड़ जायेगा, कहता था जो अपनी जान से भी प्यारा मुझे, वो एक बीमारी के चलते मेरी परछाईं से भी डर जाएगा, पर…

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गरीबी

अख़बारों की फिर सुर्खी मिली। आज फिर एक गरीब की अर्थी चली। ओढ़ अरमानों की बलि। एक गरीब की अर्थी चली। आखिर क्या जल्दी थी, दुनियां छोड़ जाने की। सायद कफ़न के महंगे हो जाने की। थी, पहले से महंगाई…

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हिम्मत कायम हो

आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो…

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कोरोना काल

कैसी अबकी साल है ये कोरोना काल है कैसे करे सामना न हथियार न ढाल है दुनिया का जो हाल है ये कोरोना जाल है बच गए तो काल (कल) है नहीं तो पका काल है हम डाल डाल है…

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एक मजदूर की कहानी

आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी,…

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मेरी मजबूरी रोटी

कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा…

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