Category: कविताएं
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भारत माँ के तारे
देखा नही खुदा कही घूमा मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे पता ना था वो पास है मेरे हम जीते है जिनके सहारे निकल पड़ते है वो हर सुबह अपने कर्म निभाने कुछ नही है अभिलाषा उनको वो जान बचाते हमारे पॉव पखेरना है हमको उनके जब द्वार आये वो हमारे हम पता नही क्यों भूल जाते है…
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मुझसे अब कुछ ना पूछो- हे प्रिये
कलमकार संदीप सिंह चाहत की भावना बता रहे हैं। कभी-कभी बोलने को तो बहुत होता है किंतु शब्द ही समाप्त हो जाते हैं मेरे लफ्जो से अब तुम क्या-क्या पूछोगीमेरा हर ख्याल तुम्हारा, मेरी हर सांस तुम्हारी,मेरी आवाज तुम्हारी, मेरी हर बात तुम्हारी।मेरी धड़कन हर पल तुम्हारे लिए धड़कती है।जब मैं पानी पीता हूं तो…
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उलझन में फंसा हूं
कलमकार अनिरुद्ध तिवारी जीवन की उलझनों का जिक्र अपनी कविता में करते हैं। हर इंसान कई तरह की कठिनाइयों से जूझ रहा होता है और इसका पूर्ण ज्ञान सिर्फ और सिर्फ उसे ही होता है। कुछ दिनों सेबड़ी उलझन में फंसा हूंऐसे संस्कारों में पला जहां सीखा दायित्व निभाने की कलाl पर दायित्व एवं व्यक्तित्व…
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अनुकरण डॉक्टर
अवनीश कुमार वर्मा ने इस कविता में एक बच्ची के सीखने की ललक और उसके खेल के अंदाज को चित्रित करने का प्रयास किया है। वह लड़की डॉक्टर साहिबा का अनुकरण करती है। रोज देखते हैं लड़की न्यूज़ हर दिन लड़की की कमाल, चौराहें पे जो वो लड़की रोज नर्स-डॉक्टर का खेल घास फूस से…
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इंसानी कठपुतलियाँ
इंसान बन रहा है कठपुतलियाँ। इंसान बन रहा है कठपुतलियाँ। जैसे कठपुतली करती है नर्तन दूसरे के इशारों पर। टिका है उसका जीवन दूसरों की उंगलियों के सहारे। साँस लेती है वो अपने शरीर पर बँधे हुए धागों से और वही करती है जो उसका मालिक करवाता है। ऐसे ही हम सब भी कठपुतलियाँ हैं…
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मत पगला, ऐ इंसान
मत पगला ऐ इंसान, खाक में मिल जाएगा तेरा स्वाभिमान, ये जवानी… ये ताक़त.. ये दौलत.. सब कुदरत की इनायत है। तू मर के संसार से चला जायेगा, इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जायेगा मैंने हर रोज.. जमाने को बदलते देखा है, उम्र के साथ.. जिंदगी को ढंग बदलते देखा है,…
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जीवन का सफर
चलती का नाम गाड़ी है ऐसा अक्सर सुना होगा। दरअसल यह बात जीवन पर भी लागू होती है। जीवन के सफर को बताने का प्रयास कलमकार रोहित यादव ने इन पंक्तियों के जरिए किया है। जिन्दगी चल रही है, जिन्दगी चलतीं रहेगी।जब तक है उसमें जान, तब वह चलतीं रहेगी।।राहों में आते हैं बहुत सी…
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बिसरते नहीं हैं
कलमकार अमित चौधरी भी पुरानी यादों की ही कुछ झलकियां इस कविता दर्शाईं हैं। आइए हम भी अपनी कुछ यादें इस कविता को पढ़ जीवंत करते हैं। बिसरते नहीं है, दिन-रात मेरेबचपन की बातें, खेल-खिलौनेंखेलते फिरते, साँझ-सवेरे। अम्मा का आँचल, ममता की छायेंपिताजी की स्नेहिल फटकारेंथप्पड़-तमाचे, रुला कर जो जातेदादी मुझे प्यार से फुसलातीदादा जी…
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मुझे याद है तेरा मुस्कराना
न भूली जाने चीजें ही याद बनती हैं और इन यादों को कोई मिटा भी नहीं सकता है। कलमकार हेम पाठक लिखते हैं कि किसी का मुस्कुराना भी लोगों को याद आता है। मुझे याद है तेरा मुस्करानालहरा के चलनाबल खा के सँभलनाभरी-भरी राहों में बच-बच के निकलना मुझको लुभाकरदिल को सतानालगाकर के आग फिर…
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छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत
छायावाद के प्रमुख स्तंभ सुमित्रा नंदन पंत साहित्य क्षेत्र मे आप का योगदान अनंत सौम्य वयक्तित्व के स्वामी स्वभाव से संत बचपन से कविता की और झुकाव विद्वान अत्यंत कौसानी उनका जन्मस्थान सौष्ठव शरीर घुंघराले बाल, आपकी पहचान आप के साहित्यिक कृतियों ने दिलाए अनेक सम्मान आप की रचनाओं के साहित्य प्रेमी हैं कद्रदान मार्क्सवाद…
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बालिका हूँ
आज जब हम बालक-बालिका में समानता की बात करते हैं तो क्या यह अपवाद होता है। कलमकारों को इस विषय पर लिखना ही पड़ता है। हम सभी समाज का हिस्सा हैं, आइए एक बेहतर कल के निर्माण की ओर अग्रसर हों। कलमकार मुकेश बिस्सा की यह कविता पढें। अजन्मी हूँ मैं भाग हूँ तुम्हारा मत…
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आजादी की हवा
और कब तक कैद रहेंगे हम? आज अहसास हो रहा है, पिंजरों में बंद पंछियों का मर्म, महसूस करते हो उनकी छटपटाहट? अब करो, कैद होने का दर्द क्या होता है, जानों सच ही कहा है किसी ने, जा तन बीते वा तन जाने सोचो तो, वो अपना दर्द किसी से कह भी तो नहीं…
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कहां खो गया खुशियों का संसार
कहां खो गया यह खुशियों का संसार नहीं कोई सुनता है उस दिल की पुकार जिन्होंने जोड़े तेरे दर पे दोनों हाथ माथा भी टेके तेरे द्वार तेरे ऊपर किया पूर्ण विश्वास दिया तुझे ऊंचा सम्मान कहां खो गया यह खुशियों का संसार मानव निर्मित पत्थर की मूरत को माना है अपना भगवान फिर भी…
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कोरोना चाइना का
चाइना तेरे कोरोना ने, ये क्या दहशत फैलाई है। याद रख परास्त करने की, हमने भी कसमें खाई है।। तेरे कोरोना सा इस जग में, दूजा कोई शैतान नहीं । हम ठोकर मार पछाड़ेंगे, रहेगा नामो निशान नहीं। इस वायरस की जड़ें हिलाने हमने फौजें लगाई है, याद रख परास्त करने की हमने भी कसमें…
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थोड़ी दूरियां बढ़ा लें
कितना हाहाकर है सितम ढाने को जो जन्मा है लाइलाज़ कोरोना! सक्षम है, नष्ट कर देने को समस्त मानव जाति। चिंतित है सम्पूर्ण विश्व इस भयावह स्थिति से बस आशा की एक किरण है सोसल डिस्टेनसिंग तो आओ, आज थोड़ी दूरियां बढ़ा लें अपनों से, अपनों के लिए। ~ अमित कुमार चौधरी
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प्रलय
कह गये राम सिया से- ऐसा कलयुग आयेगा, सांस-सांस पर टैक्स लगेगा, बस लट्ठों का उपहार मिलेगा। भोजन का अम्बार तो होगा, पर दाने-दाने को मनुज तरसेगा। भीषण महामारी में भी भ्रष्टाचार पनपेगा। सांपों में जहर न होगा पर आदमी जहर उगलेगा। रक्षक भक्षक बन जायेंगे झूठा देशधर्म का पाठ पढ़ायेंगे। सारे चोर-लुटेरे … भारत…
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मीठा बोलो
कलमकार कवि मुकेश अमन मीठा बोलने की सलाह इस कविता में दे रहें हैं। इसका प्रयास तो कीजिए जीवन में अनूठा परिवर्तन महसूस होगा और लोगों का व्यहार भी आपको पसंद आएगा। मीठा बोलो, मधुर बनो,सबसे मीठी, बात करो।मिले बाद फिर याद करें,ऐसी मन मुलाकात करो।। कौआ-कोयल एक रंग है,पर इनके है बोल अलग।एक सबका…
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दशरथ मांझी
कलमकार महेश ‘माँझी’ ने महान शख्सियत दशरथ मांझी के बारे में चंद पंक्तियाँ लिख प्रस्तुत की हैं। प्रेम ने पहाड़ का ह्रदय चीर डाला, मेने देखा ऐसा प्रेम करने वाला। राह के मझधार का वो माँझी कहा गया, प्रेम की डगर पे वो दशरथ यू छा गया। रात दिन, दिन रात, नही था कुछ ज्ञात,…
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बनारस की गली में
बनारस की गली में हुए प्रेम को कलमकार आलोक कौशिक अपनी इस कविता में लिख रहे हैं। बनारस की गली मेंदिखी एक लड़कीदेखते ही सीने मेंआग एक भड़की कमर की लचक सेमुड़ती थी गंगादिखती थी भोली सीपहन के लहंगामिलेगी वो फिर सेदाईं आंख फड़कीबनारस की गली में… पुजारी मैं मंदिर काकन्या वो कुआंरीनिंदिया भी आए…
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मैं मजदूर
मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ नदियों को मैं मजदूर मजबूत हौंसलों वाला चीर कर रख देता सागर का सीना भी…