Category: कविताएं
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जिंदगी सड़को पर बेहाल पड़ी है
जिंदगी सड़को पर बेहाल पड़ी है। जो बिना सुख सुविधा के खुश रहा करते थे आज सड़को पर इन्तहां दे रही हैं। जो भड़ता सभी का पेट यहां-वहां पर, आज तड़पते गां जा रही हैं कुछ सपनों की चाहत में, अपनो को छोड़ आसमा उड़ी थी आज सड़को पे बेहाल पड़ी हैं। देखने हो अग़र…
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देश लड़ रहा है
देश लड़ रहा है हम जरूर जीतेंगे, कोरोना जैसी महामारी से, हर वो इंसान कोरोना योद्धा है जो अपने परिवार को बचा रहा है, देश लड़ रहा है, हाथ मिलाने व गले मिलने की परंपरा अब खत्म हो रही है, मानो ऐसा लग रहा है जैसे हम सब पुराने समय में पहुँच चुके है। देश…
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मानवता के शत्रु
कुछ दिन पहले यह समाचार पढ़ कर मेरा मन द्रवित ह़ो गया कि मजदूरो ने आगरा से लखनपुर तक पहूंचने का भारी भरकम किराया अदा किया क्या इंसान अपनी इंसानियत खो चुका है कि इस त्रासदी मे भी लूटपाट और उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है धिक्कार है ऐसे नरभक्षियों पर इसी बिषय पर…
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स्वदेशी हम अपनाएँगे, देश भक्त कहलाएँगे
ये दौर अभी कुछ ऐसा है, अब खुद पे भरोसे जैसा है, ये मौक़ा मिला है हम सब को, अपना कुछ हुनर दिखाना है, विदेशी समान तिरस्कृत कर, उनको अब पीठ दिखाना है, अपने आन्तरिक जज़्बातों को, कुछ ऐसी राह दिखाएँगे, स्वदेशी हम अपनाएँगे, देश भक्त कहलाएँगे। अपनी शक्ति को पहचानो, अपने विवेक से काम…
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मजदूर- राष्ट्रनिर्माता
मजदूर हैं भले वो मजबूर बो नही है गलती है रोटियों की मगरूर वो नहीं है मरते है वो सड़क पर सरकारी आंकड़ों में देकर के चंद पैसे भिखमंगे वो नही है हर अमीर से छले वो पैदल ही तो चले वो मंजिल है दूर कितनी लेकिन तो क्या करे वो है आस जिनसे उनकी…
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मैं एक मजदूर हूं
मैं एक मजदूर हूं मैं ठोकर खाने को मजबूर हूं दो रोटी पाने की चाह में मैं घर परिवार से दूर हूं जी हां मैं एक मजदूर हूं सरकारें आती रही जाती रही कठिनाइयां हमारी और बढ़ाती रही अपनी आउंछी राजनीति के लिए मोहरा हमे बनाती रही मुद्दाओं में भटकने को मैं मशहूर हूं जी…
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प्रवासी मजदूर
देख पीड़ा श्रमिक की मन रहा है डर स्याह हर उम्मीद है जाए तो किस दर रेल की पटरी हो या हो कोई सड़क हो रक्त रंजित चीखती है सभी डगर धैर्य की भी सीमा, होती है संसार में पार उसके पार करलूँ कैसे ये सफर पीड़ा उनकी आज साहिब जरा सुनो चिलचिलाती धूप है…
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जवाब वक्त को देना होगा
जवाब वक्त को देना होगा सच को तुमको लेना होगा आह लगेगी मजदूरों की तब तुमको हिसाब देना होगा जवाब वक्त को देना होगा हर तरफ मौत का मातम है प्यासा भूखा है हर कोई चलने को मजबूर है लेकिन नही यहाँ पर साधन कोई डरता है ये देख के वो भी पर खतरा अब…
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सड़क और मजदूर
सड़क कहती मजदूर से तुम मेरे साथी हो जिस प्रकार साथ निभाया है ये लाइट पोल और ठीक तुम्हारे बगल वाली नाली चलो तुम भी परमामेन्ट हो जाओ ठीक एक दाद और खुजली की तरह मजदूर ने अपनी आँखों से एक आँख निकालकर कहा- “आखिरकार कब-तक? एक सरकार की तरह मैं भी अनियंत्रित रहूंगा…” कभी…
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आत्मनिर्भरता
छोड़ आसरे गफलत के खुद को मज़बूत बनाना है। स्वावलंबी बन करके, खुद आत्मनिर्भर कहाना है।। गैरों के कंधों पर अपनी, बंदूक नहीं रखना सीखे! खुद की मेहनत से ही, खाना, जीना, रहना सीखे!! जिम्मेदारी और परिश्रम से, हर पथ अब चमकाना है। स्वावलंबी बन करके, खुद आत्मनिर्भर कहाना है।। भाग्य भरोसे बैठे कायर, उठो…
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मजदूर के विचार
अपने अंतःकरण में जिज्ञासाओं का बोझ लिए हुए मैं चले जा रहा हूं खुद में खुद की सोच लिए हुए महामारी के दरमियां जीने की सारी उम्मीदें खोकर मैं खुद के आंसू पोछने लगा, अपनी आंखों से रोकर जब सोच रहा था मैं कि मेरा जन्म ही क्यों हुआ तभी मेरी पीठ पर सवार मेरी…
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मेरे हिस्से में
क्या मिला मेरे हिस्से में, बताऊगां बच्चो को किस्से में। मै कितना मजबूर था? क्यो कि मै मजदूर था। हर रोज नया तमाशा था, मन में मेरे भी आशा था। मिल जायेगी सहयोग हमे, खुशिया होंगी मेरे भी घर में जब वो ऐलान किये, मन में मेरे कई फूल खिले। पर ये तो सारे वादे…
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एक मजदूर का प्रश्न
ये मजदूर है हाँ, वही मजदूर जिसने तुम्हारे लिए निर्मित किया गगनचुंबी इमारतों को और स्वयं के रहने के लिए अपना घर भी नहीं बना पाया तुम्हारे रहने के लिए उसने सुंदर भवनों, आलीशान महलों को बनाया और खुद रहा झोपड़ियों में गुजार दिया उसने अपना पूरा जीवन एक छत के नीचे उसने ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं…
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निगल गया वो मजदूरों को
औरेया हादसे में मारे गये सभी मजदूर भाइयों को भावभीनी श्रद्धांजलि बीमारी का संकट था फैला काम का पड़ गया टोटा था, जिंदगी मानो ठहर गई थी घर मे सबको रोका था।जिनके घर थे ठहर गए वो पर उनके लिए वो धोखा था, रोज कमाते रोज थे खाते प्राणों को ऐसे ही रोका था।पेट की…
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इंतजार
कलमकार अमित डोगरा इंतजार की परिभाषा अपने अनुभवों के अनुसार इस कविता में प्रस्तुत कर रहें हैं। आप भी बताएं- आपके अनुसार इंतजार क्या है? इंतजार क्या है? इंतजार से पूछो इंतजार क्या है? इंतजार क्या है मुझसे पूछो? उसके आने से पहले भी उसका इंतजार था, उसके आने पर भी उसका ही इंतजार है,…
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जाने वो लम्हा कब आएगा
कलमकार अजय प्रसाद उस घड़ी का इंतज़ार कर रहें हैं जब लोग एक दूसरे की मदद करने हेतु स्वयं आगे आएं। आइए उनकी एक गजल पढ़ते हैं। जाने वो लम्हा कब आएगा जब कुआँ प्यासे तक जाएगा। झाँकना अपने अन्दर भी तू खोखला खुद को ही पाएगा। कब्र को है यकीं जाने क्यों लाश खुद…
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मैं नहीं जानता
जोड़ियाँ भगवान बनाता है – यह तो आपने सुना ही होगा। परंतु अपने साथी की कल्पना कर या फिर अपने संग उसे पाकर आप क्या कहोगे? कलमकर स्वाति बर्नवाल ने उस अभिव्यक्ति को इन पंक्तियों में लिखा है आप भी पढ़ें। मैं नहीं जानता कि सुंदर लड़कियां कैसी होती है?मुझे नहीं पता कि शांत लड़कियां अच्छी…
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बस स्टैंड
बस का सफर तो हर किसी ने किया है, लेकिन बस स्टैंड पर इसका इंतज़ार करना किसी को भी नहीं भाता है। यह बस कईयों को उनके गंतव्य स्थानों पर आसानी से पहुचाती है, कलमकार प्रीति शर्मा की एक कविता “बस स्टैंड” पढ़ें। कितने कस्बों, कितनी राहों को, अनगिनत लोगों को, दिन-रात, मंजिल तक पहुंचाती…