हे मानव तू मीठा बोल

कलमकार रूपक कुमार मीठा बोलने की राय रख रहें हैं। आपने भी सुना होगा मीठी वाणी के कारण सभी आपसे प्रेम करते हैं। हे मानव तू बस मीठा बोल,क्यों बोले तू कड़वी बोल यही बोली तुम्हे मानव से दानव बना…

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स्वप्निल के हाइकू

(१)रात की गोदटिमटिमाता चाँदछाया आमोद (२)सोई-सी रातनिज साजन साथजागा प्रभात (३)जगते तारेनभ की रखवालीकरते सारे (४)अन्तस रंगमौन निर्लिप्त हैआत्म दीप्त है (५)क्षण की खोजसत चित आनन्दकोश में बंद (६)छोड़ हताशामनुपुत्र! जीवटअक्षयवट (७)अर्द्ध रात्रि मेंघबराया चन्द्रमापृथ्वी पे अमा जीवन की अनिश्चितता…

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हम किसान के बेटे हैं

भारत किसानों का देश है और हम किसान के बेटे हैं। कृषि क्षेत्र में शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है जिससे आज का युवा भी इससे जुडने का मन बनाए। कलमकर करन त्रिपाठी की कविता भी इसी विषय को उजागर…

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पानी है अनमोल

पानी बहुत ही अनमोल है, इसे सहेजकर उपयोग में लाना। कलमकार मुकेश अमन ने अपनी कविता में इस अनमोल संपदा का संचयन करने की सलाह दी है। पानी सबकी, प्यास बुझाता,सबमें जीवन आस जगाता।पानी है संसार, आबरू,पानी जीवन खास बनाता।।जल…

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मेरी मां और उसका मंदिर

माता सदा अपनी संतान की सलामती ही चाहती है और इसके लिए ईश्वर से भी प्रार्थना करती है। कलमकार विनीत पांडेय मां और उसके मंदिर के बारे में बताने का प्रयास कर रहें हैं। मेरी मां और उसका मंदिर संजोकर…

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ख़ामोशियाँ ही बेहतर है

डॉ. विभाषा मिश्र की एक रचना पढें जो कहती हैं कि खामोशी ज्यादा अच्छी होती है। दूर-दूर तक कोई तो होसुनने वाला जिसके लिएमेरी बातों का कोईमतलब भी निकलता होकोई तो हो जिसे सिर्फ़मेरी बातें सुनना पसंद होअगर कोई नहीं…

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कातिल इश्क

कलमकार प्रिंस कचेर "साक्ष" इश़्क को कातिल संबोधित करते हुए कुछ पंक्तियाँ लिखते हैं। तुम भी खामोश हो, मैं भी खामोश हूं फासले ही बचे, दोनों के दरमियां झूठे वादे किए,झूठी कसमें देिये क्यों बढ़ाई थी तुमने, यह नज़दीकियां मै…

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अब वो दोस्त बडे़ याद आ रहे हैं

अब वो दोस्त बड़े याद आ रहे हैं जिनसे गुफ्तगू किए बिना दिन बीते जा रहे हैं अब वो जमघट बड़ा याद आ रहा है जहां सन्नाटा अपना घर बना रहा है अब वो दिन बड़े याद आ रहे हैं…

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बहते आँसू

कोरोना का रोना रोते इंसानों के आँखों से बहते आँसू कह जाते हालातों को बिन बोले। तपती धूप में प्यासे कंठ लिए पाँवों में छाले लिए घर जाने की आस लिए भूखे प्यासे राहगीर चलते जाते मन से जलते जाते?…

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हर भूखे को रोटी खिलाने का वक़्त है

इंसानियत का रिश्ता निभाने का वक़्त है हर भूखे को रोटी खिलाने का वक़्त है..।। मजबूर जो बेबस हैं कोरोना की मार से हम साथ उनके हैं ये दिखाने का वक़्त है..।। ये दुःख भी बांट लो चलें मिलजुल कर…

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प्रकृति अब खिल रही है

प्रकृति अब खिल रही है कैद करके हमें घरों में वो स्वतंत्र जी रही है कुछ अलग ही रौनक है अब पत्ते-पत्ते में, डाली-डाली में फूल भी खिलखिला रहें है भौंरे भी गा रहें हैं पंछी भी चहचहा रहे हैं…

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तेरी बनाई इस सृष्टि में इंसान

तेरी बनाई इस सृष्टि में भगवान, इंसान अब डरा-डरा सा हैं। कहने को सिर्फ वो जी रहा, लेकिन अंदर से मरा-मरा सा है।। हर जगह सिर्फ मौत की खबरे, सुना पडा ये संसार है। बच गये तो समझो सुन ली…

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मजदूर की दुर्दशा

दिखा रहा अपना रौद्र रूप ये महामारी हैं,गरीब मजदूरों की बढ़ती ये लाचारी हैं।लॉक डाउन के दौरान,फैक्ट्री में फंसे थे मजदूर चार।मालिक मौका देख हो गया फरार,छोड़ दिया तड़पते उन्हें बिना अनाज।भूख ने ले ली उसकी जान,देखने न गया कोई…

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मैं मजदूर की बेटी हूँ

आओ दोस्तों मजदूरोंकी दास्तां सुनाती हूँ।दूसरों की छोड़ो मैं खुदमजदूर पिता की बेटी हूँ। ज़िन्दगी के हर उतर चढ़ावको मैंने आँखों से देखा है।भूख से अपनी माँ को पेट मेंगमछा बांधते देखा है। एक-एक रूपये कमाने कादर्द मैं अच्छे से…

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जिंदगी सड़कों पर

जिंदगी सड़कों पर,लाचार बैठी है। अपने घर और काम से,बेजार बैठी है। कोरोना क्या मारेगा।इन जिंदगियों को, जो जिंदगीयां,जिंदगी से लड़ने को,तैयार बैठी हैं । जिंदगी सड़कों पर,लाचार बैठी है। घर -काम से,निकाल दिया इनको,गाड़ी -बसों के लिए,अपने घर तक…

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पथिक तुम सुनो

ख्वाब में आते हो,चले भी जाते होगरीबी सहते हो, गरीबी खाते हो ऐ निकलने वालों पथिक तुम सुनोबहुत रोने वालो श्रमिक तुम सुनो तेरे पेट में जो, इक दाना नहींकैसे भूख मिटे, कोई खाना नहींतेरा प्यास बुझे, कतरा पानी नहीं…

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बेबसी

भस्म कर दूं स्वयं कोअंगारों को पाल रखूँ सीने में। देश जिनके कर्मों पर खड़ा हैसड़कों पर आज बेबस लाचार रह गया है। मर रहे हैं सड़कों पर इसे कफ़न नसीब कर दोजिंदा ना सही, लाशों को उसके घर वालों…

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सब भूल गये

वो ईफ्तार और शेहरीवो धूप और दुपहरीसब भूल गये मदद को निकल पडे़अम्मी की बनाई रोटीयाआचार और पानीदेख उसे भूखे को होती है परेशानी अल्लाह ने दिया नही ज्यादा उसेकैसे वो करे किसी पर मेहरबानीजो रूखी सूखी मिलीहर भूखे की…

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हाँ! मैं मजदूर हूँ

हाँ! मैं मजदूर हूँकड़ी मेहनत करता हूँपसीना बहाता हूँधूप, वर्षा,शीत से लड़ता हूँ हाँ! मैं मजदूर हूँमजदूरी करना मेरा काम हैमेहनत से रोटी खानामेरा धर्म हैराष्ट्र निर्माण में योगदान देता हूँहाँ! मैं मजदूर हूँ कठिन से कठिन कार्यको सरल बना…

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मजदूर की आवाज

चारों ओर से सवालों का बौछार था,अपने ही व्यवस्था से बीमार था,लेकिन रेल की पटरी से उठ खड़ा जवाब तैयार था,मैं मजदूर था साहब!अपने ही घर की छतों से दूर था,बस रोटी के लिए मजबूर था। परिस्थितियों का मारा था,पर…

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